मोदी कैबिनेट ने फसलों की बिक्री पर किसानों को हो रहे नुकसान को देखते हुए इसी जुलाई में करीब 14 फसलों की एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी कर दी थी, लेकिन क्या किसान को उसका फायदा मिल रहा है? आजतक ने भोपाल की करोंद मंडी में जाकर पड़ताल की तो पाया कि सरकार के दावों से उलट एमएसपी से कम दाम पर किसान की उपज बिक रही है.
दरअसल, इसी साल जुलाई में मोदी कैबिनेट ने धान समेत कई फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाते हुए किसानों को एक बड़ा तोहफा दिया था. सरकार ने तब इसे किसानों के लिए बड़ी राहत करार दिया था. सरकार के दावे की पड़ताल करने के लिए आजतक की टीम भोपाल की करोंद मंडी में पहुंची, जहां इन दिनों किसान अपनी सोयाबीन और मक्का की फसल बेचने आ रहे हैं.
MSP से नीचे बिक रहा सोयाबीन
मंडी में हमें सोयाबीन के ढेर दिखे जहां अलग-अलग गांवों से आए किसान अपनी सोयाबीन बेचने आए थे. मंडी में एक जगह सोयाबीन की सफाई होते देख हम वहां रुके और बातचीत शुरू की. यहां हमें बकानियां गांव से 40 क्विंटल सोयाबीन लेकर आए अखिलेश नागर मिले. आपको बता दें कि सरकार ने सोयाबीन पर न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी तय की है ₹.3399 रुपए प्रति क्विंटल लेकिन जब हमने पूछा कि उसकी सोयाबीन क्या भाव बिकी तो अखिलेश ने बताया उसे सोयाबीन का भाव ₹.3240 रुपये प्रति क्विंटल मिला. यानी एमएसपी से पूरे 1060 रुपये कम.
सिर्फ अखिलेश ही नही, बल्कि सीहोर जिले के शाहजहांपुर से आए किसान पर्वत सिंह की सोयाबीन भी एमएसपी से कम भाव मे बिकी. पर्वत सिंह ने बताया कि उसकी सोयाबीन ₹.3252 प्रति क्विंटल के भाव से बिकी जो कि एमएसपी से ₹.1050 कम था. पर्वत सिंह ने अपना दुखड़ा बताते हुए कहा कि डीजल, कीटनाशक, खाद, मजदूरी और फसल को ट्रैक्टर ट्रॉली से मंडी तक लाने का किराया जोड़ दिया जाए तो प्रति क्विंटल खर्चा ही करीब करीब ₹.3500 से ₹.4000 तक हो जाता है ऐसे में किसान का सिर्फ मरण ही हो रहा है फायदा नहीं.
किसानों की मांग है कि सोयाबीन की एमएसपी को बढ़ाकर कम से कम ₹.5000 प्रति क्विंटल कर दिया जाए जिससे फसल पर लगने वाली लागत तो वसूल हो ही साथ ही में थोड़ा फायदा भी हो जाए. हालांकि, इस बारे में मंडी के मुनीम का कहना है जब मार्किट में डिमांड ही कम है तो एमएसपी कैसे मिले?
हमने मुनीम बादाम सिंह से बात की तो उसने बताया कि किसान नुकसान में नही है क्योंकि ₹.3399 के एमएसपी पर उसे ₹.3200 रुपये मिल ही रहे हैं और ₹.500 सरकार की तरफ से भावान्तर के लेकिन जब हमने पूछा कि भावान्तर की रकम इस बार मिलेगी तो खुद मुनीम बादाम सिंह ने माना कि इस बार भावान्तर की रकम शायद ही किसान को मिले. बादाम सिंह ने भाव कम मिलने की एक और वजह बताई. उसने बताया कि सोयाबीन की फसल में मिट्टी बहुत होती है इसलिए कई बार सोयाबीन की गुणवत्ता पर भी दाम नीलामी के जरिए तय होते हैं.
मक्का पर भी एमएसपी को ना
मंडी में सोयाबीन के अलावा इन दिनों मक्का भी अच्छी तादाद में आ रहा है. आपको बता दें कि मक्के पर एमएसपी ₹.1700 है लेकिन मक्का भी एमएसपी से काफी कम भाव पर बिक रहा है. रातीबड़ गांव से मक्का बेचने आए किसान आमिर अली को भी एमएसपी से कम भाव पर ही अपनी उपज बेचनी पड़ी. आमिर को मक्का ₹.1421 प्रति क्विंटल के भाव से बेचना पड़ा यानी एमएसपी से ₹.279 का घाटा.
आमिर अली ने बताया कि कैसे दिन ब दिन किसानों के लिए खेती करना मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि बाकी सभी चीजों के दाम तो बढ़ रहे हैं, लेकिन फसलों पर मिलने वाली रकम लगातार कम ही बनी हुई है. आमिर की ही तरह कोड़िया गांव के किसान महेंद्र गौर भी एक ट्रॉली भर के मक्का बेचने आए लेकिन उन्हें भी एमएसपी से नीचे ₹.1400 के करीब ही मक्का बेचना पड़ा.
इनकी उपज खरीदने वाले व्यापारी से जब हमने पूछा कि क्यों एमएसपी से कम भाव मिल रहे हैं तो उसने कहा कि जो भाव नीलामी में तय हुए उसके हिसाब से ही मक्का खरीदा गया है. यहां भी किसानों के नुकसान को भावान्तर की राशि से कम किया जाने का दावा तो किया लेकिन जब पूछा कि उसकी राशि कब आएगी तो इसका जवाब व्यापारी के पास भी नहीं था.
साफ है बीते साल के मुकाबले एमएसपी बढ़ाकर सरकार ने वाहवाही तो लूट ली लेकिन किसानों को भूल गई क्योंकि किसान आज भी वहीं खड़ा है और लागत से बेहद कम कीमत पर फसल बेचने को मजबूर है.