झारखंड सरकार ने आरोप लगा दिया है कि केंद्र उसके साथ सौतेला व्यवहार कर रहा है. कहा जा रहा है कि राज्य को अभी केंद्र द्वारा सवा लाख करोड़ मिलने वाले हैं और प्रदेश में ही संचालित PSUs से 1400 करोड़ मिलने हैं, बावजूद इसके झारखंड के साथ अन्याय हो रहा है. कहा गया है कि केंद्र फिर DVC के बकाया भुगतान के लिए 1100 करोड़ रुपये काटने की तैयारी में है.
किस बात पर है विवाद?
अब इसी कड़ी में राज्य सरकार ने केंद्र पर निशाना साधा है. जोर देकर कहा गया है कि 5600 करोड़ रुपये DVC का बकाया रघुवर सरकार के वक़्त का है और तब पैसे नहीं काटे गए थे. हेमंत सरकार के सत्ता में आते ही केंद्र को त्रिपक्षीय एग्रीमेंट की भी याद आ गई और पैसे काटने की भी. राज्य सरकार तर्क दे रही है कि क्योंकि पैसे ऑटो डेबिट हो जाते हैं, ऐसे में अब उन्हें अपने विकास के बजट को सीमित करना पड़ रहा है. वहां पर वे कटौती करने को मजबूर हो गए हैं.
जानकारी मिली है कि अभी तक केंद्र 2845 करोड़ रुपये की कटौती कर चुकी है. कुल 5600 करोड़ रुपये अभी DVC का बकाया है. 2017 में तत्कालीन रघुवर सरकार ने केंद्र और RBI से एक त्रिपक्षीय समझौते किया था. समझौते के तहत 60 दिनों में ऊर्जा मंत्रालय के अधीन ऊर्जा कंपनी के बिल का भुगतान किया जाना था. लेकिन अब वहीं समझौता राज्य सरकार के लिए गले की फांस बन गयी है.
राज्य सरकार क्या करेगी?
ये दलील भी दी जा रही है कि केंद्र क्यों सवा लाख करोड़ की भुगतान राज्य को नही करती. राज्य को केंद्र से सवा लाख करोड़ और राज्य में जो PSU हैं उनसे 1400 करोड़ बिजली बिल का भुगतान लेना है. अगर केंद्र का रवैया नही सुधर पाया तो वित्त मंत्री ने यहां चल रहे PSU के साथ उसी तरह का रवैया अपनाने के संकेत दिए हैं. उनका साफ कहना है कि केंद्र की वजह से राज्य के खजाने पर बोझ बढ़ गया है और विकास की राशि मे कटौती करनी पड़ रही है.
इस मुद्दे पर BJP का कहना है कि जब से हेमंत सरकार सत्ता में आई है खज़ाना खाली होने का रोना रो रही है. जब हालात ऐसे हैं तो राज्य सरकार एक श्वेत पत्र क्यों नही जारी करती कि आखिर उसका राजस्व प्राप्ति कितना है, सत्ता में आने के बाद और खर्च कितने हुए हैं?