केरल के एर्नाकुलम जिले के अनाथालय से मुक्त कराकर झारखंड लाए गए 119 बच्चों की कहानी में नया मोड़ आता दिख रहा है. अब अधिकारी भी यह मानने लगे हैं कि इतनी बड़ी संख्या में बच्चों के बाहर जाने में स्थानीय और प्रशासनिक स्तर पर चूक हुई है. इस पूरी घटना में परदे के पीछे एक मजबूत गिरोह काम कर रहा है.
वैसे यह कोई अकेली घटना नहीं है. दरअसल झारखंड के दूरदराज और ग्रामीण इलाकों से प्रलोभन देकर और बहला-फुसलाकर नाबालिगों को बाहर भेजा जाता रहा है. लेकिन इस बार की घटना इसलिए भी काफी संगीन है क्योंकि सारे बच्चे तीन से 12 साल के उम्र के हैं जिनमें आधे से अधिक लड़कियां हैं. बताया ये भी जा रहा है कि इन्हें खाड़ी के देशों में भी भेजा जाना था. मामले की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एसआईटी जांच के आदेश दिए हैं.
अनाथालय से मुक्त कराए गए 119 बच्चों में 44 लड़के और 75 लड़कियां हैं. ये बच्चे मानव तस्करों के शिकार बनते-बनते रह गए. सवाल उठता है कि इतनी बड़ी संख्या में बच्चों के बाहर जाने पर प्रशासन की नजर क्यों नहीं पड़ी. वैसे अधिकारी भी मानते हैं कि इस पूरी घटना के पीछे एक रैकेट काम कर रहा है. देवघर के उपायुक्त अमित कुमार कहते हैं कि सारे बच्चे गोड्डा जिले के हैं. पोडैयाहाट (गोड्डा) की सीडीपीओ खालिदा फरजाना कहती हैं, 'यह बहुत बड़ी चूक है. देखना होगा कि जमीनी स्तर पर कहां चूक हुई है.
बताया जाता है कि इन बच्चों को दो रिजर्व बोगियों में जसीडीह से एर्नाकुलम के अनाथालय ले जाया गया था. सवाल यह भी उठता है कि जब इन दिनों रेल टिकटों के लिए इतनी मारा-मारी हो रही है तो इन बच्चों के लिए दो पूरी बोगियां कैसे रिजर्व करा ली गईं. सीएम हेमंत सोरेन कहते हैं, 'सचाई का पता लगाने के लिए विशेष जांच दल का गठन किया गया है.
आरोप है कि मानव तस्करों के इस गिरोह में कथित तौर पर पुलिस और प्रशासन से जुड़े लोग भी शामिल हैं. वैसे इस मामले में सच घटना की गहन जांच के बाद ही सामने आ सकेगा. लेकिन इस रैकेट से जुड़े लोगों ने जिस बेखौफ अंदाज में इस पूरी वारदात को अंजाम दिया है, उससे यह बात तो साबित हो ही जाती है कि इन सबके पीछे बड़े-बड़ों का हाथ है.
राज्य में बच्चों की तस्करी के हजारों मामले दर्ज हैं. इनमें बच्चों के मां-बाप को प्रलोभन देकर या उनकी गरीबी का फायदा उठाकर जानवरों के भाव पर उनसे खरीद लिया गया. कुछ खुसकिस्मत थे जो उनकी चंगुल से छूट गए लेकिन अधिकतर अब भी गुमशुदा हैं. बहुत से ऐसे मामले भी है जो पुलिस तक पहुंचे ही नहीं. ऐसे में पक्के तौर पर इन बच्चों की संख्या बता पाना काफी मुश्किल है.
(साथ में, देवघर से शैलेन्द्र मिश्रा की रिपोर्ट)