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हरियाणा चुनाव की गुत्थी... BJP के बराबर वोट शेयर पाने के बावजूद कैसे हार गई कांग्रेस?

हरियाणा में बीजेपी और कांग्रेस के लगभग बराबर वोट शेयर होने के बावजूद बीजेपी ने ज्यादा सीटें जीतीं. इसका कारण बीजेपी का अपने वोटों को सही इलाकों में केंद्रित करना और कांग्रेस का वोट शेयर को सीटों में तब्दील न कर पाना रहा.

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हरियाणा में बीजेपी ने कांग्रेस से सिर्फ 1 प्रतिशत से भी कम वोटों से बढ़त बनाई.
हरियाणा में बीजेपी ने कांग्रेस से सिर्फ 1 प्रतिशत से भी कम वोटों से बढ़त बनाई.

बीजेपी ने हरियाणा में तीसरी बार जीत दर्ज कर ली है. भाजपा की यह जीत कई राजनीतिक विशेषज्ञों और सर्वेक्षण करने वालों के लिए हैरान कर देने वाली रही. यह चुनाव काफी नजदीकी था, जिसमें बीजेपी ने कांग्रेस से सिर्फ 1 प्रतिशत से भी कम वोटों से बढ़त बनाई. 2019 के मुकाबले कांग्रेस ने 11 प्रतिशत वोट ज्यादा पाए जबकि बीजेपी का वोट शेयर सिर्फ 3 प्रतिशत बढ़ा. फिर भी बीजेपी ने कांग्रेस को 11 सीटों के अंतर से हरा दिया. अब सवाल यह है कि कांग्रेस, जो चुनाव जीतने की मजबूत दावेदार मानी जा रही थी, इतने करीब होते हुए भी कैसे हार गई?

वोट शेयर और सीटों के बीच फर्क क्यों?

यह पहली बार नहीं है जब किसी पार्टी ने ज्यादा वोट मिलने के बावजूद कम सीटें जीती हों. उदाहरण के लिए 2018 के मध्य प्रदेश चुनाव में बीजेपी को 41.6 प्रतिशत वोट मिले और उसने 109 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस को 41.5 प्रतिशत वोट मिलने के बावजूद 114 सीटें मिलीं. 

ऐसा क्यों होता है? क्योंकि भारत में 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट' सिस्टम है. इस सिस्टम में जो उम्मीदवार सबसे ज्यादा वोट पाता है, वह चुनाव जीतता है. यानी आपको जीतने के लिए सबसे ज्यादा वोट चाहिए, न कि सारे वोट.

हरियाणा में क्या हुआ?

इस बार के हरियाणा चुनाव में बीजेपी ने 39.94 प्रतिशत यानी लगभग 40 प्रतिशत वोट पाए. जबकि कांग्रेस को 39.09 प्रतिशत यानी लगभग 39 प्रतिशत वोट मिले. यह सिर्फ 0.85 प्रतिशत का अंतर था. फिर भी बीजेपी ने 48 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस सिर्फ 37 सीटें जीत पाई. कांग्रेस ने 11 प्रतिशत वोट बढ़ाए जबकि बीजेपी का वोट शेयर सिर्फ 3 प्रतिशत बढ़ा, लेकिन फिर भी बीजेपी की सीटें ज्यादा आ गईं.

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बीजेपी ने कैसे बनाई बढ़त?

बीजेपी ने 40 प्रतिशत से 50 प्रतिशत के बीच वोट शेयर वाली 39 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस सिर्फ 32 सीटों पर इस रेंज में वोट जुटा पाई. वहीं, 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट शेयर वाली 19 सीटों पर भी बीजेपी ने जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस ऐसी सिर्फ 12 सीटें जीत पाई. यह अंतर ही बीजेपी की जीत का मुख्य कारण बना.

इसके अलावा बीजेपी ने कुल 58 सीटों पर अपने औसत वोट शेयर से ज्यादा वोट पाए, जबकि कांग्रेस ने 44 सीटों पर ऐसा किया. इसका मतलब यह है कि बीजेपी ने अपने वोट शेयर को सीटों में बदलने में कांग्रेस से ज्यादा सफलता पाई.

क्षेत्रीय वोट शेयर में अंतर

हरियाणा को छह हिस्सों में बांटा जा सकता है: अंबाला, करनाल, हिसार, रोहतक, गुरुग्राम और फरीदाबाद. हर क्षेत्र में बीजेपी और कांग्रेस के वोट शेयर अलग-अलग रहे. फरीदाबाद में बीजेपी को 46 प्रतिशत वोट मिले और कांग्रेस को 33 प्रतिशत. नतीजा यह हुआ कि बीजेपी ने 7-2 से जीत हासिल की. गुरुग्राम में बीजेपी को 41 प्रतिशत और कांग्रेस को 39 प्रतिशत वोट मिले, जिससे बीजेपी ने 10-4 से सीटें जीतीं. 

हालांकि हिसार और रोहतक में कांग्रेस ने बढ़त बनाई. हिसार में कांग्रेस को 41 प्रतिशत और बीजेपी को 36 प्रतिशत वोट मिले, और कांग्रेस ने 10-7 से सीटें जीतीं. वहीं रोहतक में दोनों पार्टियों ने 9-9 सीटें जीतीं. 

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वोट शेयर का फर्क कैसे पड़ा?

बीजेपी का वोट शेयर ज्यादा बंटा हुआ नहीं था, बल्कि कुछ खास इलाकों में केंद्रित था. वहीं, कांग्रेस का वोट शेयर हर जगह थोड़ा-थोड़ा बंटा हुआ था. इस वजह से बीजेपी ने उन इलाकों में ज्यादा सीटें जीतीं, जहां उसका वोट शेयर ज्यादा था, जबकि कांग्रेस अपने औसत वोट शेयर के बावजूद कम सीटें जीत पाई.

कांग्रेस की कमजोरी

कांग्रेस ने भले ही 11 प्रतिशत वोट बढ़ाए लेकिन वह बीजेपी के वोट शेयर में सेंध नहीं लगा पाई. बीजेपी ने अपना वोट शेयर तीन प्रतिशत बढ़ाया, जो कांग्रेस के लिए बड़ा झटका साबित हुआ. इसके अलावा जेजेपी का वोट शेयर कम होने से कांग्रेस को ज्यादा फायदा नहीं हुआ, क्योंकि बीजेपी ने भी जेजेपी के वोटों में से कुछ हिस्सा अपने में मिला लिया.

कुल मिलाकर कांग्रेस ने ज्यादा वोट बढ़ाए, लेकिन बीजेपी ने उन वोटों को सीटों में बदलने का खेल बेहतर तरीके से खेला, जिससे वह चुनाव जीत गई. हरियाणा के चुनाव नतीजे यह दिखाते हैं कि सिर्फ वोट शेयर बढ़ाने से चुनाव नहीं जीते जा सकते. चुनाव जीतने के लिए जरूरी है कि पार्टी अपने वोट शेयर को सही जगहों पर केंद्रित करे और उसे सीटों में तब्दील कर सके. बीजेपी ने इस रणनीति को अपनाया और कांग्रेस ने इसमें चूक गई जिससे कांग्रेस करीब बराबर वोट शेयर हासिल करने के बावजूद हार गई.

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