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छोटे प्रयास से बड़ा बदलाव... बेसहारा जानवरों के लिए शेल्टर, जगजीत सिंह की अनूठी पहल

गुरुग्राम के जगजीत सिंह ने स्ट्रीट डॉग्स के लिए पुराने वेस्ट ड्रम्स को रीसायकल कर शेल्टर बनाने की पहल की है. वे 3-4 सालों से ठंड के मौसम में इन ड्रम्स को गद्दों से लैस कर 15 हजार से अधिक शेल्टर्स मुफ्त बांट चुके हैं. उनकी बेटी इशलीन कौर का कहना है कि ये पहल जानवरों को ठंड से बचाने और समाज में बदलाव लाने का प्रतीक है.

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 इंसानियत की अनूठी मिसाल.
इंसानियत की अनूठी मिसाल.

गुरुग्राम के रहने वाले जगजीत सिंह ने इंसानियत की अनूठी मिसाल पेश की है. ठंड के मौसम में जहां कई बेसहारा जानवरों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, वहीं जगजीत सिंह इन जानवरों के लिए अनोखा काम कर रहे हैं. वह पुराने और बेकार ड्रमों को रिसाइकिल करके स्ट्रीट डॉग्स के लिए शेल्टर तैयार कर रहे हैं. इन ड्रमों को अलग-अलग राज्यों से इकट्ठा किया जाता है और फिर उनकी मरम्मत करके उनमें गद्दे डालकर उन्हें पूरी तरह रहने लायक बनाया जाता है.

दरअसल, जगजीत सिंह ने यह नेक काम करीब 3-4 साल पहले शुरू किया था और अब तक वह लोगों को 15 हजार से ज्यादा शेल्टर मुफ्त में बांट चुके हैं. उनका मानना ​​है कि ठंड के मौसम में सड़कों पर रहने वाले जानवरों को सुरक्षित और गर्म जगह की सख्त जरूरत होती है. वह यह काम खास तौर पर ठंड के मौसम में करते हैं और हर रविवार को वह लोगों को ये तैयार शेल्टर मुफ्त में देते हैं, ताकि वे अपने आसपास के स्ट्रीट डॉग्स को ठंड से बचा सकें.

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रविवार को करीब 300-400 बांटे जाते हैं ड्रम शेल्टर

हर रविवार को करीब 300-400 ड्रम शेल्टर बांटे जाते हैं और इन्हें लेने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. जगजीत सिंह की बेटी ईशालीन कौर कहती हैं, हम चाहते हैं कि सभी को ठंड से बचने का मौका मिले. ये जानवर हमारी मदद पर निर्भर हैं. अगर हम थोड़ा सा प्रयास करें तो हम उनके जीवन में बड़ा बदलाव ला सकते हैं. मेरे पिता जगजीत सिंह ने बहुत दिल से इस नेक काम की शुरुआत की और आज सभी की दुआएं उनके साथ हैं.

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जगजीत सिंह ने लोगों से की ये अपील

जगजीत के इस नेक काम की हर जगह सराहना हो रही है. उन्होंने यह भी संदेश दिया है कि अगर सभी लोग थोड़ा-थोड़ा योगदान दें तो इन जानवरों का जीवन बेहतर हो सकता है. उनका उद्देश्य सामाजिक सहयोग से इन जानवरों को सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण प्रदान करना है. इस पहल ने दिखाया है कि कैसे छोटे-छोटे प्रयासों से बड़ा बदलाव लाया जा सकता है.

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रिपोर्ट- मनीषा लड्डा.
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