हरियाणा के फरीदाबाद के मुस्लिम बहुल धौज गांव में स्थित अल-फलाह यूनिवर्सिटी अब जांच एजेंसियों के निशाने पर है. यह यूनिवर्सिटी 1997 में अल-फलाह इंजीनियरिंग कॉलेज के रूप में शुरू हुई थी. 2014 में हरियाणा प्राइवेट यूनिवर्सिटीज एक्ट के तहत इसे विश्वविद्यालय का दर्जा मिला. यह संस्था अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा संचालित है, जिसकी स्थापना 1995 में हुई थी.
2019 में शुरू हुआ एमबीबीएस कोर्स
अल-फलाह मेडिकल कॉलेज की स्थापना विश्वविद्यालय से संबद्ध रूप में हुई. 2019 में इसे नेशनल मेडिकल कमीशन की अनुमति मिली और पहला एमबीबीएस बैच शुरू हुआ. हर साल 200 एमबीबीएस और 50 एमडी सीटें हैं. कॉलेज पहले चार सालों के लिए 16.37 लाख रुपये और आखिरी साल में 9 लाख रुपये फीस लेता है. दो बेड वाले हॉस्टल की सालाना फीस 3.10 लाख रुपये है.
विश्वविद्यालय में तीन कॉलेज और 650 बेड का अस्पताल
यूनिवर्सिटी परिसर में तीन कॉलेज संचालित हैं. अल-फलाह स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, ब्राउन हिल कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी और अल-फलाह स्कूल ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग. परिसर में 650 बेड का अस्पताल भी है, जहां मरीजों का मुफ्त इलाज किया जाता है. यहां MRI, CT स्कैन और एडवांस ब्लड टेस्ट जैसी सुविधाएं हैं.
विश्वविद्यालय के चांसलर जवाद अहमद सिद्दीकी हैं, जो अल-फलाह इन्वेस्टमेंट्स लिमिटेड के एमडी भी हैं. मोहम्मद परवेज रजिस्ट्रार हैं और भूपिंदर कौर आनंद वाइस चांसलर हैं. वेबसाइट के अनुसार, यूनिवर्सिटी का उद्देश्य भारतीय और विदेशी छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और नैतिक मूल्यों से जोड़ना है.
आतंकी मॉड्यूल से जुड़े प्रोफेसरों पर जांच
जांच एजेंसियां अब देख रही हैं कि यह निजी यूनिवर्सिटी कथित रूप से शिक्षित आतंकियों का अड्डा कैसे बन गई. गिरफ्तार डॉक्टरों में डॉ. मुज़म्मिल गनई और डॉ. शाहीन सईद (दोनों अल-फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़े) शामिल हैं. लाल किला ब्लास्ट में मारा गया डॉ. उमर नबी भी यहां असिस्टेंट प्रोफेसर था.
विश्वविद्यालय ने जारी किया बयान
यूनिवर्सिटी ने कहा है कि गिरफ्तार प्रोफेसरों से उसका केवल व्यावसायिक संबंध था. संस्था ने इस घटना पर दुख जताते हुए कहा कि वह एक जिम्मेदार शैक्षणिक संस्थान के रूप में देश के साथ खड़ी है.