दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना के यह कहने पर कि वह सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस चिकित्सा उपचार का विस्तार करने वाली फरिश्ते योजना में 'किसी भी तरह से शामिल नहीं' हैं, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली सरकार की एक याचिका पर उनसे हलफनामा मांगा. अपनी याचिका में दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT) में सेवाओं के नियंत्रण पर केंद्र द्वारा नया कानून लागू होने के बाद एलजी पर इस प्रोजेक्ट के लिए फंडिंग रोकने का आरोप लगाया है.
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर उप राज्यपाल की गलती हुई तो हम कहते हैं कि उनको हर मुद्दे को प्रतिष्ठा का मुद्दा नहीं बनाना चाहिए. लेकिन यदि दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री हमें घुमा रहे हैं, तो हम असाधारण जुर्माना लगाएंगे. इस टिप्पणी के साथ शीर्ष अदालत ने उपराज्यपाल से दो हफ्ते में हलफनामा मांगा. सुनवाई के दौरान एलजी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील संजय जैन ने कहा, 'यह मामला पूरी तरह से दिल्ली स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़ा है. एलजी की ओर से किसी भी फंड में बाधा नहीं है'.
दिल्ली सरकार की याचिका में क्या आरोप लगाए गए हैं?
दिल्ली सरकार की याचिका में सुप्रीम कोर्ट से एलजी को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि वह निजी अस्पतालों को लंबित बिल जारी करें और समय पर भुगतान करके योजना को तत्काल फिर से चालू करने में मदद करें. साथ ही बिल भुगतान में 'चूक करने वाले अधिकारियों' के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई और निलंबन की कार्यवाही शुरू करने की मांग भी भी याचिका में की गई है. आम आदमी पार्टी की सरकार का आरोप है कि अधिकारियों ने जानबूझकर बिल लंबित रखा है, जिससे यह योजना सफल नहीं हो सके.
एलजी के वकील संजय जैन ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ से कहा, 'दिल्ली सरकार की यह याचिका चाय के प्याले में तूफान उठाने का एक सर्वोत्तम उदाहरण है. क्योंकि इसमें बिना किसी बात के बहुत ज्यादा हंगामा किया गया है. यह ऐसा मामला नहीं है जहां मंत्रिपरिषद और एलजी के बीच कोई मुद्दा था. एलजी किसी भी तरह से शामिल नहीं हैं. यह दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री की अध्यक्षता वाली एक सोसायटी द्वारा चलाया जाता है, जिसने 2 जनवरी को एक बैठक की और धन जारी किया'. सुप्रीम कोर्ट ने उनसे 2 हफ्ते के भीतर इस आशय का हलफनामा दाखिल करने को कहा है.