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EXCLUSIVE : दिल्ली में नाव से नदी पार कर स्कूल जाने को मजबूर छात्र

दिल्ली के चिल्ला गांव के करीब 50 बच्चों को स्कूल जाने के लिए सुबह 5 बजे उठना पड़ता है. करीब 6 बजे इनकी नाव की सवारी शुरू होती है. नाव का सफर खत्म होने पर एक घंटे की दूरी पैदल तय करने के बाद ये छात्र स्कूल पहुंच पाते हैं.

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स्कूल जाते बच्चे
स्कूल जाते बच्चे

अक्सर हम देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में नदी पार कर स्कूल जाते बच्चों की खबरें पढ़ते-सुनते हैं. मगर यह जानकार हैरानी होगी कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी कुछ बच्चों को नाव से नदी पार कर तालीम हासिल करने जाना पड़ता है. दिल्ली में यमुना के किनारे रहकर खेती करने वाले किसानों के बच्चों को रोजाना नाव से स्कूल जाना पड़ता है.

दिल्ली के चिल्ला गांव के करीब 50 बच्चों को स्कूल जाने के लिए सुबह 5 बजे उठना पड़ता है. करीब 6 बजे इनकी नाव की सवारी शुरू होती है. नाव का सफर खत्म होने पर एक घंटे की दूरी पैदल तय करने के बाद ये छात्र स्कूल पहुंच पाते हैं. इनमें से एक छात्रा पूजा ने बताया, 'हम सुबह 5:00 बजे उठते हैं और नाव में बैठकर स्कूल के लिए निकल जाते हैं. फिर नाव से उतरकर 1 घंटा पैदल चलकर मयूर विहार के स्कूल तक जाना पड़ता है.'

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एक ही दिल्ली में इतना विरोधाभास भी हो सकता है. इसे इन बच्चों के संघर्ष से समझा जा सकता है. नीचे इन बच्चों की नाव डगमग-डगमग चलती है तो ऊपर दिल्ली-नोएडा-दिल्ली यानी डीएनडी फ्लाईओवर पर कारें रफ्तार भर रही होती हैं. विकास का विज्ञापन डीएनडी पर चस्पा हो रहा होता है तो नीचे पिछड़ेपन और मुसीबत पर पर्दा डालने की रोज की जद्दोजहद लगी रहती है.

नाव के सहारे स्कूल पहुंचकर जिंदगी का ककहरा सीखने की कोशिश कर रहे ये बच्चे दोपहर में घर लौटते हैं, लेकिन फिर ट्यूशन के लिए इन्हें इसी नाव का सहारा लेना पड़ता है. बच्चों को ट्यूशन के लिए दोपहर में करीब 3 बजे फिर निकलना पड़ता है. नाव फिर एक बार बच्चों को उनकी मंजिल तक पहुंचाती है. सुमित ने बताया कि वह पढ़-लिखकर फौजी बनना वहीं सोनू को पुलिस बनना है.

सुबह बच्चे स्कूल जाते हैं. दोपहर 2:30 बजे तक अपने घर आते हैं और फिर तीन बजे ट्यूशन के लिए निकल जाते हैं. यमुना किनारे रहने वाले ये बच्चे ट्यूशन के लिए एक एनजीओ की ओर से संचालित ज्ञान शक्ति विद्यालय में पढ़ने जाते हैं. ट्यूशन पढ़ाने वालीं टीचर गीता बताती हैं कि बच्चे बहुत मेहनती और प्रतिभावान हैं, जो नाव से आते-जाते हैं.

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21वीं सदी में देश की राजधानी के कुछ बच्चे नाव से स्कूल जाने को मजबूर क्यों और कैसे होते हैं, ये सिर्फ कोरे सवाल नहीं हैं, ये व्यवस्था चलाने वालों की नीयत पर भी प्रश्नचिन्ह हैं? एक बच्चे के अभिभावक पंचम कहते हैं, 'जब वोट पड़ते हैं तो नेता हमारे घरों से हमें गाड़ियों में बिठाकर पोलिंग स्टेशन तक लेकर जाते हैं. मगर कभी भी हमारे बच्चों की सुध लेने नहीं आते. हमारे बच्चे जान जोखिम में डालकर स्कूल जाते हैं. कभी-कभी तो नाव पलटने का भी खतना मंडराता रहता है.

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