दिल्ली नगर निगम में 134 सीट जीतने वाली आम आदमी पार्टी ने 15 सालों से सत्ता में बैठी बीजेपी भले ही उखाड़ फेंका हो पर पार्टी के लिए निगम की सत्ता को चला पाना एक बड़ी चुनौती है. कमिश्नर के जरिए पेश बजट में भी चुनौतियों का जिक्र तो था ही, हालांकि खर्चा बढ़ने से कमाई को लेकर बहुत सी आर्थिक परेशानियां हैं, जिससे एमसीडी को फेस करना पड़ता है. दिल्ली नगर निगम के पास आंतरिक तौर पर रेवेन्यू जुटाने में टोल टैक्स, प्रॉपर्टी टैक्स, विज्ञापन राजस्व, पार्किंग राजस्व, लाइसेंस शुल्क और बिल्डिंग शुल्क शामिल है. संपत्ति कर से लेकर पार्किंग विज्ञापन लाइसेंस शुल्क से निगम की कमाई होती है.
एकीकृत एमसीडी का पहला बजट पेश हो चुका है. अफसरों ने पिछले 6 महीने में आमदनी नहीं होने का दावा करते हुए और खर्चों को अगले साल के लिए शिफ्ट कर दिया है. लिहाजा एमसीडी का बीते वित्त वर्ष का बजट 15276 करोड़ से बढ़कर अब साल (2023-24) में 16000 करोड़ का बजट पेश कर दिया है. फिलहाल सदन अस्तित्व में नहीं है. इसलिए बजट विशेष अधिकारी के समक्ष पेश किया गया, जिसे स्थाई समिति के बराबर का पद मिला हुआ है.
आमदनी घटी, बढ़ गया खर्च
एमसीडी का जो बजट पेश किया गया है, उसमें 2022-23 के लिए संशोधित बजट अनुमान और 2023-24 के लिए बजट अनुमान है. एकीकृत नगर निगम में 15276 करोड़ रुपए की आय के अनुमान को 14827 करोड रुपए कर दिया गया तो खर्च को 15275 करोड़ की जगह 14804 करोड़ रुपए किया गया. वहीं, आयुक्त ने 2023-24 के लिए 15523.95 करोड़ रुपए के बजट का अनुमान पेश किया तो 16023.55 खर्च का अनुमान है.
ऊपर से नीचे कर्ज में डूबा निगम
- 548 करोड़ रुपए पांचवी राज्य वित्त आयोग के तहत बकाया
- फ्लाई ओवरों के सुंदरीकरण में 17 करोड़ रूपए निगम का बकाया
- अधिकृत नियमित कॉलोनियों में लाखों रु. संपत्ति कर बकाया
- निगम में काम करने वाले ठेकेदारों का 830 करोड़ रुपए बकाया
सालाना 2400 रूपए कर लगाने का प्रस्ताव
संपत्ति कर की दरों में बढ़ोतरी तो नहीं हुई लेकिन पेशेवर कर लगाने का प्रस्ताव किया गया है और पेशेवर कर लगाने से निगम को करीब 50 करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय का अनुमान है. आपको बता दें कि कर के तौर पर मिनिमम 1200 रुपए और अधिकतम 2400 हर साल कर लगाने का प्रस्ताव है. दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में पूर्व उपायुक्त रहे प्रेम शंकर झा का कहना है कि दूसरे राज्यों में पेशेवर कर लगता है, लेकिन दिल्ली में यह नहीं लिया जाता निगम बिजली कर भी 5% लेता है उसको 6% लेना चाहिए.
पैसे न होने पर प्रभावित होती हैं सेवाएं
एमसीडी कमिश्नर वित्तीय वर्ष के लिए 16 हजार करोड़ रुपए का बजट पेश तो कर दिया. लेकिन बड़ा सवाल है कि खर्च और कमाई का अंतर आम आदमी पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती है, जो नगर-निगम को चलाने वाली है. दिल्ली नगर-निगम के पास पैसे ना होने की स्थिति में सभी सेवाएं प्रभावित होती हैं. निगम के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा कर्मचारियों की सैलरी और पेंशन पर खर्च होता है तो वहीं अनधिकृत कॉलोनियों में करोड़ों रुपए का टैक्स बकाया है. दक्षिणी दिल्ली नगर-निगम के पूर्व उपायुक्त प्रेम शंकर झा कहते हैं कि केंद्र सरकार सभी केंद्र शासित प्रदेश को अनुदान देती है, सिवाय दिल्ली और पुडुचेरी के. अगर यह मिलने लगे तो राज्य सरकार से अनुदान मिलने की दिशा में निगम अपने आंतरिक स्रोत और केंद्र सरकार के अनुदान से ही अपने काम पूरे कर लेगा.