AAP सांसद राघव चड्ढा ने गुरुवार को राज्यसभा में एक निजी मेंबर बिल पेश किया. इसमें केंद्र सरकार से देश में न्यायिक स्वतंत्रता को मजबूत करने के लिए अहम कदम उठाने का आग्रह किया गया है. प्रस्ताव में कहा गया है कि संविधान के 99वें संशोधन और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम- 2014 को 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अधिकार से बाहर माना था. भारत के मुख्य न्यायाधीश की सलाह से सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में सरकार को मौजूदा ज्ञापन को पूरक यानी कमी पूरी करने का निर्देश दिया था. हालांकि, अभी तक इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया है.
इस बिल में क्या है
यह प्रस्ताव भारत सरकार से सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के बाध्यकारी निर्णयों के अनुसार सख्ती से काम करने का आह्वान करता है. इसके अलावा सरकार से जजों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया के ज्ञापन को जल्द से जल्द अंतिम रूप देने और न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए कुछ उपायों को शामिल करने का आग्रह करता है.
इन उपायों में यह प्रावधान शामिल है कि सरकार की सभी टिप्पणियों, जिसमें खुफिया जानकारी भी शामिल है, को कॉलेजियम द्वारा सिफारिश करने के 30 दिनों के भीतर कॉलेजियम को प्रस्तुत किया जाना चाहिए और इस तरह के सभी अवलोकन, टिप्पणियां और इनपुट प्रासंगिक और आवश्यक होने चाहिए और बाहरी या गैरजरूरी पहलुओं पर आधारित न हों.
30 दिन मं सिफारिश को पुनर्विचार के लिए भेजें
इस प्रावधान के तहत सरकार को या तो कॉलेजियम की सिफारिश को स्वीकार करना चाहिए या उसी 30 दिनों के भीतर सिफारिश को पुनर्विचार के लिए वापस कर देना चाहिए. अगर सरकार इस अवधि में यह काम करने में विफल रहती है, तो नियुक्ति का नोटिस जारी करने के लिए कॉलेजियम की सिफारिश को भारत के राष्ट्रपति को भेजा जाना चाहिए.
15 दिन में राष्ट्रपति को भेजें सिफारिश
इसके अलावा अगर सरकार पुनर्विचार के लिए कॉलेजियम को सिफारिश वापस करती है और कॉलेजियम सिफारिश को दोहराता है, तो सचिव, न्याय विभाग, 15 दिनों में नियुक्ति का नोटिस जारी करने के लिए राष्ट्रपति को सिफारिश भेजेगा.
प्रस्ताव में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि भारत सरकार सीजेआई के परामर्श से सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया के मौजूदा ज्ञापन को अंतिम रूप दे सकती है.
नियुक्तियों को समय से पूरा करने की जरूरत
यह (संकल्प) तर्क देता है कि भारत सरकार द्वारा प्रक्रिया के मौजूदा ज्ञापन मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर को पूरा करने के लिए अभी कदम उठाए जाने बाकी हैं. इसमें कहा गया है कि जिन जजों के नामों की सिफारिश की गई है और बाद में सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा दोहराया गया है, उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ (1993) 4 एससीसी 441 और विशेष संदर्भ संख्या 1 1998 (1998) 7 एससीसी 739 को समय पर पूरा करने की जरूरत है.
प्रस्ताव में जोर दिया गया है कि न्यायिक स्वतंत्रता भारत के संविधान की मूल संरचना का एक हिस्सा है. इससे किसी भी तरह से समझौता नहीं किया जा सकता है. जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका का हस्तक्षेप न्यायिक स्वतंत्रता के विपरीत है, खासकर तब जब भारत सरकार भारतीय अदालतों के सामने सबसे बड़ी वादी है.