ओखला पक्षी विहार के आसपास के इलाके मे बन रहे हजारों बिल्डर फ्लैट्स पर टेंशन अभी भी बरकरार है. सभी की उम्मीदें नेश्नल ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष 14 सितंबर को होने वाली सुनवाई पर टिकी है.
दरअसल, 10 दिन पहले NGT ने आदेश दिया था की ओखला पक्षी विहार के आसपास के 100 मीटर के दायरे में निर्माण का काम नहीं होगा. इस आदेश से बिल्डरों को कोई तकलीफ नहीं थी. इस सिलसिले में पर्यावरण मंत्रालय ने भी अधिसूचना जारी कर दी. लेकिन एक याचिका पर सुनवाई करते हुए ट्रिब्यूनल की ओर से इको सेंसिटिव जोन का दायरा 10 किलोमीटर तक बढ़ा दिया गया, तो ना सिर्फ बिल्डरों बल्कि इन इलाकों में घर का सपना संजोए हजारों लोगों को अपने निवेश के डूबने का डर सताने लगा.
गौरतलब है कि NGT ने जब इको सेंसिटिव जोन का दायरा 100 मीटर तक किया था तब गौरव बंसल ने इस फैसले को चुनौती दी थी. इसके बाद ट्रिब्यूनल ने पर्यावरण मंत्रालय, नोएडा अथॉरिटी, दिल्ली, हरियाणा और यूपी सरकार से इस मसले पर दो हफ्ते में जवाब मांगा है.
सरकार ने बिल्डर्स का ध्यान रखा, पर्यावरण का नहीं: बंसल
याचिकाकर्ता गौरव बंसल का आरोप है कि बिल्डरों ने NGT में कई झूठे हलफनामे लगाकर ना सिर्फ अथॉरिटी से कई NOC ली है, बल्कि पर्यावरण और ओखला पक्षी
विहार को भी नुक्सान पहुंचाया है. उन्होंने कहा, 'जो दायरा तय किया गया है उसमें सरकार ने सिर्फ बिल्डर्स का ध्यान रखा है, पर्यावरण का नहीं. हमारा मकसद निर्माण
रोकना नहीं बल्कि पक्षी बिहार को बचाना है.'
अब सरकार इस मामले पर NGT को क्या जवाब देती है और फिर उसके बाद NGT अपने पुराने आदेश पर रोक लगायेगा या नहीं, ये सभी ऐसे सवाल है जिनके चलते एक बार फिर ओखला पक्षी विहार के आसपास बने निर्माण पर तलवार लटकी है.