IIT दिल्ली की रिसर्च में पता चला है कि राष्ट्रीय राजधानी में सर्दियों में होने वाले प्रदूषण के लिए लोकल फैक्टर जिम्मेदार हैं तो वहीं जून और अक्टूबर में होने वाला प्रदूषण बाहर के स्रोतों से होता है. रिसर्च में ये भी खुलासा हुआ है कि प्रदूषण बढ़ने की स्थिति में ग्रेप के नियमों का उल्लंघन होता है. ये रिसर्च आईआईटी दिल्ली के वायुमंडलीय विज्ञान अध्ययन केंद्र ने की है और इसका रिसर्च पेपर नीदरलैंड के एल्सेवियर जर्नल में पब्लिश हो चुका है.
खास बात ये है कि दिल्ली के प्रदूषण को दूरगामी रूप से खत्म करने के लिए पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और यूपी-बिहार में भी ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान के तहत पाबंदियों की पेशकश की गई है. इसमें इंडो-गंगेटिक प्लेन, जिसमें चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कानपुर, लखनऊ, आगरा, गोरखपुर, वाराणसी, पटना और कोलकाता जिले में ग्रेप लागू करने पर ही उचित परिणाम मिलेंगे.
ऐसे मापा गया है दिल्ली का प्रदूषण स्तर
लोकल परिवहन के साथ ही लंबी दूरी तय करने वाले वाहन और लोगों के जरिए पैदा किए गए प्रदूषणकारी तत्वों का अध्ययन किया गया तो पता चला कि जून के महीने में लंबी दूरी के परिवहन का प्रदूषण में औसत योगदान 65-75% था, जो प्री-मॉनसून के दौरान तेज आंधी चलने की वजह से 85 प्रतिशत तक पहुंच गया था. इस पूरी प्रक्रिया को शून्य आउट विधि नाम दिया गया है.
रिसर्च के मुताबिक, अक्टूबर में फसल जलाने वाले स्रोतों से औसत कुल योगदान 42 से 59 प्रतिशत के बीच था, जिसमें अधिकतम योगदान 64 प्रतिशत तक पहुंचा था. हर साल दिसंबर के दौरान कुल वायु-प्रदूषण में लंबी दूरी के परिवहन का योगदान न्यूनतम पाया गया है.
प्रदूषण रोकने के लिए बनाई जानी चाहिए समग्र योजना
वायुमंडलीय अध्ययन केंद्र के प्रोफेसर और अध्ययन में शामिल प्रो. मंजू मोहन ने बताया कि प्रदूषण की पाबंदियां लागू तो हो जाती हैं, लेकिन वो असरदारक नहीं होती. इसलिए जरूरी है कि इंडो-गंगेटिक प्लेन, जिसमें आगरा, कानपुर, लखनऊ, गोरखपुर, वाराणसी, पटना, कोलकाता, चंडीगढ़, पंजाब के अन्य इलाके व हरियाणा और राजस्थान के जिले शामिल होते हैं, वहां ग्रेप जैसे नियम लागू किए जाएं. बता दें कि सरकार ने नेशनल ग्रीन एक्ट प्रोग्राम बनाया है ताकि प्रदूषण को कम किया जा सके.