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'मौलवियों को वेतन तो हमें क्यों नहीं?' , दिल्ली CM केजरीवाल के आवास पर पुजारियों का प्रदर्शन

एमसीडी चुनाव के बाद अब एक बार फिर दिल्ली में मौलवियों को मिलने वाली सैलरी बड़ा मुद्दा बन गया है. दरअसल, मंगलवार को हजारों पुजारियों ने भी सैलरी की मांग करते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर के सामने धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया.

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सीएम अरविंद केजरीवाल के घर के सामने पुजारियों का प्रदर्शन.
सीएम अरविंद केजरीवाल के घर के सामने पुजारियों का प्रदर्शन.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बाहर पुजारी धरने पर बैठ गए हैं. उनकी मांग है कि जब मौलवियों को वेतन दिया जा सकता है तो उन्हें क्यों नहीं? अपनी इस मांग को लेकर मंगलवार को हजारों पुजारियों ने सीएम केजरीवाल के घर के सामने धरना दिया.

इनमें भाजपा पुजारी प्रकोष्ठ के लोग भी शामिल थे. पुजारियों ने कहा कि दिल्ली सरकार जब तक पुजारियों को सैलरी नहीं देगी और सनातन धर्म की रक्षा के लिए काम नहीं करेगी, इसी तरह धरना-प्रदर्शन जारी रहेगा.

दरअसल, दिल्ली की मस्जिदों में इमामों और मुअज्जिनों की सैलरी का मुद्दा इससे पहले भी उठ चुका है. इससे पहले दिल्ली में हुए एमसीडी चुनावों के दौरान बीजेपी ने इसे मुद्दा बनाया था. तब मौलवियों के साथ-साथ मंदिरों को पुजारियों और गुरुद्वारे के ग्रथियों को भी मासिक वेतन देने की मांग की गई थी.

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बता दें कि दिल्ली वक्फ बोर्ड की पंजीकृत करीब 185 मस्जिदों के 225 इमाम और मुअज्जिनों को तनख्वाह दी जाती है. इमाम को 18 हजार रुपये और मुअज्जिनों को 14 हजार रुपये के हिसाब से हर महीने दिए जाते हैं. इसके अलावा दिल्ली वक्फ बोर्ड में अनरजिस्टर्ड मस्जिदों के इमामों को 14 हजार और मुअज्जिनों को भी 12 हजार रुपये प्रति माह का मानदेय मिलता है.

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दरअसल, मस्जिद के इमामों को सैलरी वक्फ बोर्ड के द्वारा जाती है. सुप्रीम कोर्ट ने 1993 में अखिल भारतीय इमाम संगठन के अध्यक्ष मौलाना जमील इलियासी की याचिका पर सुनवाई करते हुए वक्फ बोर्ड को उसके मैनेजमेंट वाली मस्जिदों में इमामों को वेतन देने का निर्देश दिया था. दिल्ली, हरियाणा और कर्नाटक में मस्जिदों के इमाम को वक्फ बोर्ड सैलरी देता है. कई राज्यों में वक्फ बोर्ड कुछ मस्जिदों के इमाम को काफी पहले से सैलरी दे रहा था.

(रिपोर्ट: हर्षित मिश्रा)

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