दिल्ली में सत्ता का समीकरण साधना बहुत आसान नहीं था. 48 विधायकों वाले दल के पास उपयुक्त मुख्यमंत्री और मंत्रियों को चुनना एक बड़ी चुनौती थी. वैसे तो बीजेपी ने चुनाव से पहले मुख्यमंत्री के तौर पर किसी नाम की घोषणा नहीं की थी लेकिन कई वरिष्ठ नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा जरूर था. इसलिए तभी से कयासबाजी हो रही थी कि अगर बीजेपी की सरकार बनती है तो कई सारे सीनियर नेताओं में मुख्यमंत्री पद को लेकर कांटे की टक्कर रहेगी.
आखिरी समय तक बना रहा मुख्यमंत्री के नाम पर सस्पेंस
दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, इसको लेकर लगातार कई तरीके के कयास लगाए जा रहे थे. अंदाजा लगाने का आधार दिल्ली का पेंचीदा जातीय और सामाजिक समीकरण भी था. इस बार 48 विधायकों में 11 विधायक जाट समुदाय से चुनकर के आए थे. जिसमें अरविंद केजरीवाल को नई दिल्ली से हराने वाले प्रवेश साहिब सिंह वर्मा भी शामिल थे. इसके अलावा समीकरण यह भी था कि बीजेपी के कोर वोटर माने जाने वाले पंजाबी और वैश्य समुदाय को ही उचित जगह दी जाए.
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दिल्ली के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा और साथ ही केंद्र सरकार में दिल्ली से मंत्री हर्ष मल्होत्रा दोनों के पंजाबी होने के कारण यह संभावना कम थी कि मुख्यमंत्री भी इस समुदाय से होगा. इसलिए आखिरकार वैश्य समुदाय पर ही भाजपा ने दांव खेला. लेकिन इस समुदाय में भी पार्टी के पास कई विकल्प थे जिनमें विजेंद्र गुप्ता का नाम सबसे ऊपर था जो पिछली विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे और आम आदमी पार्टी की लहर में भी दो बार बीजेपी से जीत कर आए. लेकिन बीजेपी को रेखा गुप्ता की शक्ल में महिला और वैश्य दोनों समीकरणों में फिट होने वाला एक चेहरा मिल गया.
कैसे उन नेताओं को मनाया गया जिनके रूठने की संभावना थी
लेकिन रेखा गुप्ता को चुनने के बावजूद पार्टी के नेतृत्व के सामने यह चुनौती थी कि कैसे सीनियर नेताओं को रूठने ना दिया जाए. मीटिंग शुरू होने से ठीक पहले तीन सीनियर नेताओं को अलग से बैठक के लिए बुलाया गया. इन नेताओं में विजेंद्र गुप्ता, सतीश उपाध्याय और प्रवेश साहिब सिंह वर्मा शामिल थे.
दो वरिष्ठ महिला नेताओं अलका गुर्जर और कमलजीत सहरावत को इन नेताओं को यह बताने के लिए कहा गया कि पार्टी का हाई कमांड क्या चाहता है. तकरीबन 10 मिनट चली बैठक के बाद इन्हीं सीनियर नेताओं को यह जिम्मेदारी सौंपी गई की वह रेखा गुप्ता का बतौर मुख्यमंत्री नाम प्रस्तावित करें.
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मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा के बाद जातीय समीकरण साथ करते हुए मंत्रियों का नाम
मुख्यमंत्री का नाम तय करने के लिए जातीय और सामाजिक समीकरणों का ध्यान तो रखा ही गया लेकिन उसे कहीं ज्यादा चुनौती पूर्ण मंत्रियों के चेहरे के साथ समीकरणों को साधना था. बिहार में चुनाव को देखते हुए दो पूर्वांचल चेहरों को मंत्रिमंडल में जगह दे दी गई. कपिल मिश्रा जहां पर ब्राह्मण और पूर्वांचल दोनों समुदायों का नेतृत्व करते हैं वहीं पहली बार विधानसभा के लिए विकासपुरी से चुने गए पंकज कुमार सिंह पूर्वांचली ठाकुर है. रविश वर्मा को जगह देकर जाट समुदाय को प्रतिनिधित्व दिया गया है तो मनजिंदर सिंह सिरसा के जरिए सिख समुदाय को.