दिल्ली नगर निगम चुनाव का ऐलान होते ही राजधानी में अजब-गजब वाकये सामने आने लगे हैं. चुनाव की खींचतान के बीच भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच अलग तरह का सियासी दंगल देखने को मिल रहा है. ऐसी ही एक घटना सामने आई है, जिसमें भाजपा के एक मंडल अध्यक्ष ने पहले आम आदमी पार्टी का दामन थामा और फिर दो दिन बाद ही वापस BJP की सदस्यता ग्रहण कर ली.
घटना रोहिणी विधानसभा के वार्ड 53 की है. 14 नवंबर को आम आदमी पार्टी ने भाजपा के मंडल अध्यक्ष पंकज गुप्ता को AAP की टोपी और पटका पहनाकर पार्टी की सदस्यता ग्रहण कराई दी. आम आदमी पार्टी के एमसीडी प्रभारी दुर्गेश पाठक ने अपनी मौजूदगी में पंकज को मेंबरशिप दिलाई. इस दौरान पाठक ने कहा, '2015 और 2020 में जब दिल्ली में आम आदमी पार्टी की लहर थी, उस वक्त हम रोहिणी नहीं जीत पाए थे. इसका कारण यह था कि कुछ हमारे साथी जो आज इस प्रेसवार्ता में मौजूद हैं, उन्होंने वहां इतना काम किया, इतनी मेहनत की है कि कहीं ना कहीं यह लोग उन वॉर्ड में हमें जीतने नहीं देते थे. मुझे बहुत खुशी है कि रोहिणी भाजपा की पूरी टीम आज आम आदमी पार्टी में शामिल हो रही है'
एक्टिव हुए विधायक विजेंद्र गुप्ता
बीजेपी कार्यकर्ताओं के आप ज्वाइन करने के बाद रोहिणी विधानसभा से भाजपा विधायक विजेंद्र गुप्ता एक्टिव हो गए. उन्होंने 16 नवंबर को AAP की सदस्यता ग्रहण करने वाले वार्ड 53 के मंडल अध्यक्ष पंकज गुप्ता को दोबारा भारतीय जनता पार्टी में टोपी पहनाकर शामिल करा लिया. इसके बाद BJP विधायक विजेंद्र गुप्ता ने AAP के एमसीडी प्रभारी दुर्गेश पाठक को चुनौती दी.
MLA ने फोटे के साथ जारी किया बयान
भाजपा विधायक ने 16 नवंबर की रात ट्विटर पर एक फोटो शेयर की और कहा कि 'रोहिणी वार्ड 53 के भाजपा मंडल अध्यक्ष पंकज गुप्ता और पदाधिकारियों को गुमराह कर आम आदमी पार्टी में शामिल कर लिया गया था. लेकिन दो ही दिन में वो इस पार्टी की हिंदुत्व विरोधी सोच समझ गये और अपने घर लौट आये. सुन लो दुर्गेश पाठक रोहिणी भाजपा का गढ़ है और रहेगा'
पार्टी तोड़ने की हो रही भरपूर कोशिश
आपको बता दें कि साल 2020 में 70 में से 62 सीट जीतने वाली आम आदमी पार्टी रोहिणी विधानसभा का चुनाव हार गई थी और यहां भारतीय जनता पार्टी के विधायक विजेंद्र गुप्ता चुने गए थे. जाहिर है दिल्ली में एमसीडी चुनाव के मद्देनजर वार्ड स्तर के संगठन की अहम भूमिका होती है, ऐसे में राजनीतिक दल विरोधी पार्टियों के संगठन को तोड़ने की भरपूर कोशिश करते नजर आ रहे हैं, तो कुछ राजनीतिक दल अपने संगठन को बचाने के लिए भी जद्दोजहद कर रहे हैं.