दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पर सरकारी विज्ञापनों के रूप में राजनीतिक विज्ञापनों को प्रकाशित करने का आरोप लगा है. दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना ने इस मामले में 20 दिसंबर को मुख्य सचिव को AAP से 30 दिन में करीब 97 करोड़ रुपये वसूलने के आदेश दिया था. एलजी ने निर्देश में कहा था कि AAP सरकार ने 2015 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश, 2016 के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश और 2016 के CCRGA के आदेश का उल्लंघन किया है, इसलिए उनसे यह वसूली की जाए. नोटिस में सरकारी धन का दुरुपयोग करके पार्टी को फायदा पहुंचाने की बात कही गई.
23 दिन बाद आम आदमी पार्टी के संयोजक यानी अरविंद केजरीवाल को वसूली का नोटिस जारी कर दिया गया. LG के आदेश के बाद सूचना एवं प्रचार निदेशालय (डीआईपी) की सचिव आईएएस ऐलिस वाज ने यह नोटिस भेजा है. इस नोटिस में कुल 163.62 करोड़ रुपये का भुगतान करने को कहा गया है. दरअसल उसमें वसूली की मूल राशि में ब्याज को भी शामिल कर दिया गया है. जानकारी के मुताबिक पार्टी ने 31 मार्च 2017 तक 97 करोड़ रुपये राजनीतिक विज्ञापनों पर खर्च किए थे. इस रकम पर दंड के रूप 64.31 करोड़ रुपये ब्याज और लगाया गया है.
इस नोटिस में AAP को 10 दिन के भीतर पूरी राशि का भुगतान करने का भी अल्टीमेटम दिया गया. कहा गया है कि अगर समय से भुगतान नहीं किया गया तो नियमों के तहत पार्टी की संपत्तियों की कुर्की कराई जाएगी.
सरकार ने धन का दुरुपयोग किया: कैग रिपोर्ट
दिल्ली विधानसभा में पिछले साल 10 मार्च को कैग की एक रिपोर्ट पेश की गई थी. इसमें भी सरकारी विज्ञापनों को लेकर कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन किए बिना 24.29 करोड़ रुपये के विज्ञापन प्रकाशित कर दिए गए. इसके अलावा 33.40 करोड़ रुपये के विज्ञापनों में से 80 फीसदी दिल्ली सरकार की सीमा से बाहर के प्रचार माध्यमों में दिए गए.
विज्ञापनों में मुख्यमंत्री, डिप्टी सीएम और मंत्री के फोटो भी छापे गए जो पूरी तरह से नियमों का उल्लंघन हैं. हालांकि AAP सरकार ने केंद्र व दूसरे राज्यों की सरकार की तरफ से दिए गए विज्ञापनों का हवाला देकर रिपोर्ट को नकार दिया था
CCRGA ने 2020 में भेजा था नोटिस
CCRGA ने 16 जुलाई 2020 को दिल्ली सरकार के एक विज्ञापन पर एक नोटिस जारी किया था. कमेटी ने दिल्ली सरकार के विज्ञापन पर सोशल मीडिया में उठाए गए बिंदुओं पर स्वतः संज्ञान लेते हुए यह नोटिस भेजा था. सोशल मीडिया पर लोगों ने मुंबई के अखबारों में दिल्ली सरकार के विज्ञापनों के प्रकाशित होने पर सवाल खड़े किए गए थे. आरोप लगाए गए कि ये राजनीतक विज्ञापन हैं. कमेटी ने इस मामले में सरकार ने 60 दिन के भीतर जवाब देने को कहा था.
क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी विज्ञापनों को लेकर 13 मई 2015 के गाइडलाइंस जारी की थीं. इसमें कहा गया था कि सरकारी विज्ञापनों का कंटेंट सरकार के संवैधानिक और कानूनी दायित्वों के साथ-साथ नागरिकों के अधिकारों व पात्रताओं के अनुरूप होनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने भी लगाई थी फटकार
अप्रैल 2021 में दाखिल की गई आरटीआई से सामने आया था कि 2021 दिल्ली सरकार ने तीन महीने में विज्ञापनों पर 150 करोड़ रुपये खर्च किए गए, जबकि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए सरकार ने उस साल केवल 124.8 करोड़ का बजट रखा था. वायु प्रदूषण का मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था तब कोर्ट ने वायु प्रदूषण कम करने के लिए कोई ठोस कदम न उठाने पर सरकार को फटकार लगाई थी और कहा था कि आप अपने प्रचार स्लोगनों पर ज्यादा पैसे खर्च कर रहे हैं.
AAP ने रिकवरी नोटिस पर उठाए सवाल
दिल्ली की डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने ट्वीट किया कि बीजेपी ने दिल्ली सरकार की सूचना विभाग सचिव ऐलिस वाज से नोटिस दिलवाया है कि 2017 से दिल्ली से बाहर राज्यों में दिए गए विज्ञापनों का खर्चा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से वसूला जाएगा. उन्होंने कहा कि दिल्ली के अखबारों में बीजेपी के तमाम राज्यों के मुख्यमंत्रियों के विज्ञापन छपते हैं, पूरी दिल्ली में इनके मुख्यमंत्रियों के फोटो वाले सरकारी होर्डिंग लगे हैं. क्या इनका खर्चा बीजेपी मुख्यमंत्रियों से वसूला जाएगा?
इससे पहले AAP प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दावा किया था कि LG साहब बीजेपी के निर्देशों पर ऐसा कर हैं. उन्होंने कहा था कि दूसरे राज्यों की सरकारें भी विज्ञापन जारी करती हैं. बीजेपी की कई राज्य सरकारों ने भी विज्ञापन जारी किए जो यहां प्रकाशित हुए हैं. हम पूछना चाहते हैं कि विज्ञापनों पर खर्च किए गए 22,000 करोड़ रुपये उनसे कब वसूल किए जाएंगे? जब उनसे पैसा वसूल कर लिया जाएगा, तब हम भी 97 करोड़ रुपये दे देंगे.’
केंद्र ने 5 साल में विज्ञापनों पर 3723.38 करोड़ किए खर्च
पिछले साल शीतसत्र के दौरान सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कांग्रेस सदस्य सैयद नासिर हुसैन के सवाल के जवाब में राज्यसभा में बताया था कि केंद्र सरकार ने पिछले पांच साल में अपनी नीतियों और कार्यक्रमों के विज्ञापन पर केंद्रीय संचार ब्यूरो (सीबीसी) के जरिये 3,723.38 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.
उन्होंने बताया था कि 2017-18 में विज्ञापनों पर 1,220.89 करोड़, 2018-19 में 1,106.88 करोड़, 2019-20 में 627.67 करोड़, 2020-21 में 349.09 करोड़ और 2021-22 में 264.78 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. वहीं मौजूदा वित्त वर्ष में नौ दिसंबर, 2022 तक सरकार ने विज्ञापनों पर 154.07 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.