छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ग्राम स्वछता अभियान ग्रामीणों पर भारी पड़ रहा है. जिलों के कलेक्टर अपने इलाकों के गांव को पूर्णतः खुले में शौच से मुक्त ग्राम बनाने के लिए प्रशासनिक मशीनरी पर दबाव बनाए हुए हैं. अपने घरों में टॉयलेट बनाने के लिए ग्रामीणों को हर तरह से मजबूर कर दिया गया है.
सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं ग्रामीण
उन्हें सरकारी मदद से आर्थिक सहायता तत्काल दिए जाने का आश्वासन भी दिया गया. लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में घरों के ओडीएफ घोषित होने के बाद अफसरों ने गांव मे पलट कर नहीं देखा. इसके चलते कई ग्रामीणों
को कर्ज लेकर सीमेंट, रेत और मजदूरों का भुगतान करना पड़ रहा है. कई ग्रामीण कर्जदार हो गए हैं और वो भुगतान के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं. उधर सरकार का दावा है कि स्वच्छ भारत मिशन के
तहत राज्य सरकार अब तक 751.25 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है. इस रकम के जरिये चार जिले, छप्पन विकास खंड, छ हजार ग्राम पंचायतें और लगभग ग्यारह हजार गांव खुले में शौच से मुक्त हुए हैं. लेकिन वो
कौन से चार जिले हैं जो पूरी तरह से खुले में शौच से मुक्त हुए हैं. इसका कोई रिकॉर्ड ग्रामीण और पंचायत विभाग के पास नहीं है.
टॉयलेट बनवाने के लिए लिया कर्ज
हाल यह है कि छत्तीसगढ़ के सैकड़ों गांव में इन दिनों सरकारी अफसर ग्रामीणों पर दबाव डालकर उनके घरों में टॉयलेट बनवा रहे हैं. उन्हें सरकारी योजना के तहत आर्थिक सहायता स्वीकृत करने का आश्वासन भी दिया
जा रहा है. लेकिन कहा जा रहा है कि यह रकम उन्हें तब दी जाएगी जब टॉयलेट बन जाएं और वो उसका इस्तेमाल करना शुरू कर दें. सरकार की मंशा के अनुरूप ग्रामीणों ने टॉयलेट बनवा लिया. लेकिन उनके गांव को
ओडीएफ का प्रमाण पत्र हासिल होने के बाद सरकारी अफसर गांव से नदारद हो जा रहे हैं. नतीजतन ग्रामीण कर्जदार बन रहे हैं. ग्रामीणों को आर्थिक सहायता के लिए सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगाना पड़ रहा है.
महीनों बाद भी उन्हें सरकारी सहायता नहीं मिल पा रही है.
कर्ज नहीं चुका पा रहे ग्रामीण
ओडीएफ के लिए सरकार ने अपने घरों में टॉयलेट बनाने वाले ग्रामीणों को 12 हजार की रकम स्वीकृत की है. लेकिन यह रकम पाने के लिए ग्रामीणों का दम निकल रहा हैं. सरकारी रकम समय पर नहीं मिलने के कारण
उन्हें उधार लेकर टॉयलेट निर्माण करने वाले ठेकेदारों को नगद भुगतान करना पड़ रहा है. जांजगीर चापा जिले में 2000 की आबादी वाले एक गांव में लगभग 817 ऐसे परिवार हैं, जिन्होंने कर्ज लेकर टॉयलेट बनाया और
अब कर्ज की अदायगी को लेकर उन्हें परेशान होना पड़ रहा है. कर्ज की अदायगी के लिए कई ग्रामीणों ने अपनी जमीन तक बेच डाली है. राज्य के 27 जिलों में से ऐसा कोई भी जिला नहीं है जहां ग्रामीणों को पूरी तरह
से टॉयलेट बनाने की रकम दे दी गई है. ज्यादातर गांव में दस्तक देते ही ग्रामीण भुगतान ना होने की शिकायत करते नजर आ रहे हैं.
दूसरी ओर छत्तीसगढ़ में एक अप्रैल 2016 से लेकर 28 जनवरी 2017 तक 218 गांव खुले में पूरी तरह से शौचमुक्त हो गए हैं. जबकि 1126 गांव खुले में शौचमुक्त होने की कगार पर हैं. उम्मीद की जा रही है कि 31 मार्च से पहले ये सभी गांव अपना टारगेट पूरा कर लेंगे. जिला कलेक्टरों के बीच इस बात की होड़ मची है कि उनके जिलों में अधिक से अधिक गांव ओडीएफ करार दे दिए जाएं. इसके लिए सरकारी मशीनरी को पूरी तरह से झोंक दिया गया है. ग्राम पंचायतों से लेकर नगरीय निकायों के अफसरों की ड्यूटी लगाईं गई है. इसके अलावा तहसीलदार, सब डिविजनल मजिस्ट्रेस्ट और अतिरिक्त कलेक्टरों को कामों की देखरेख का जिम्मा सौंपा गया है. लेकिन समय पर सरकारी योजना के तहत टॉयलेट निर्माण के खर्च के भुगतान के लिए सरकारी महकमा टाल रहा है.
ग्रामीण इलाकों में सरकारी योजानों की प्रगति और विकास का जायजा लेने पहुंच रहे राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह को ग्रामीण अपनी आपबीती सुना रहे हैं. कई ग्रामीणों ने तो टॉयलेट बनाने को लेकर हाय तौबा मचानी शुरू कर दी है. वो कभी अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति का हवाला दे रहे हैं तो कभी कर्ज ना लेने की बात पर अड़े हुए हैं.