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चला गया 'नौकर की कमीज' का जादूगर… नहीं रहे साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल, 89 की उम्र में ली अंतिम सांस

हिंदी के वरिष्ठ कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल का रायपुर एम्स में निधन हो गया. हाल ही में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था. कथा साहित्य में उनका उपन्यास ‘नौकर की कमीज़’ (1979) एक ऐतिहासिक कृति माना जाता है.

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ज्ञानपीठ विजेता विनोद कुमार शुक्ल का निधन (Photo: X/@@vishnudsai)
ज्ञानपीठ विजेता विनोद कुमार शुक्ल का निधन (Photo: X/@@vishnudsai)

हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन हो गया है. 89 साल के शुक्ल ने रायपुर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में अंतिम सांस ली. वह पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे और अस्पताल में भर्ती थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले महीने 1 नवंबर को ही विनोद कुमार शुक्ल से बात कर उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली थी. 

बीत माह ही विनोद कुमार शुक्ल को हिंदी साहित्य के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाज़ा गया था. 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में जन्मे विनोद कुमार शुक्ल अपने जीवन में ऐसे लेखक के रूप में पहचाने गए, जो बहुत धीमे बोलते थे, लेकिन उनकी रचनाएं पाठकों के भीतर गूंजती थीं.

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने विनोद कुमार शुक्ल के निधन पर दुख जाहिर करते हुए कहा, 'महान साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल जी का निधन एक बड़ी क्षति है. नौकर की कमीज, दीवार में एक खिड़की रहती थी जैसी चर्चित कृतियों से साधारण जीवन को गरिमा देने वाले विनोद जी छत्तीसगढ़ के गौरव के रूप में हमेशा हम सबके हृदय में विद्यमान रहेंगे. संवेदनाओं से परिपूर्ण उनकी रचनाएं पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी. उनके परिजन एवं पाठकों-प्रशंसकों को हार्दिक संवेदना.'

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कृषि विज्ञान की शिक्षा लेने वाले शुक्ल जी ने मिट्टी और हरियाली के प्रति जो आत्मीयता विकसित की, वही आगे चलकर उनकी रचनात्मकता का मूल स्वर बनी. उनके साहित्य की केंद्रीय चिंता हमेशा यही रही कि यह समाज और मनुष्य का जीवन कैसे बेहतर और अधिक मानवीय बनाया जा सकता है.

यह भी पढ़ें: मैं हूं उनके साथ खड़ा जो बुनियादी सुख से वंचित हैं: विनोद कुमार शुक्ल

गद्य और पद्य का अनूठा संगम शुक्ल जी ने अपनी यात्रा 'लगभग जयहिंद' कविता-संग्रह से शुरू की, लेकिन जल्द ही वे हिन्दी साहित्य के एक ऐसे स्तंभ बन गए जिन्होंने कविता और कहानी के बीच की धुंधली रेखा को ही मिटा दिया.

काव्य यात्रा: 'वह आदमी चला गया, नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह', 'सब कुछ होना बचा रहेगा', और 'आकाश धरती को खटखटाता है' जैसी कृतियों ने हिन्दी कविता को एक सात्विक और नया व्याकरण दिया.

कथा शिल्प: उनके कालजयी उपन्यास 'नौकर की कमीज' और 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' ने गद्य के सौंदर्य-बोध को पूरी तरह बदल दिया. 'पेड़ पर कमरा' और 'महाविद्यालय' जैसे कहानी-संग्रहों में जब पाठक प्रवेश करता है, तो उसे एक ऐसी दुनिया मिलती है जो जितनी साधारण दिखती है, उतनी ही अलौकिक और गहरी है.

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तमामा पुरस्कारों से किया गया सम्मानित

पुरस्कारों से सुसज्जित गौरवमयी जीवन विनोद कुमार शुक्ल की लेखनी ने न केवल पाठकों का दिल जीता, बल्कि उन्हें देश के तमाम सर्वोच्च सम्मानों से भी अलंकृत किया गया. उन्हें गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, साहित्य अकादेमी पुरस्कार, शिखर सम्मान, राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार और हाल ही में 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' जैसे गरिमामयी सम्मान प्राप्त हुए.  

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