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सरकार बताए बीमा योजना हमारे हित में या बैंकों के: छत्तीसगढ़ के किसान

पीड़ित किसान यह मांग कर रहे हैं कि फसल बीमा योजना को बीमा कंपनियों के फायदे के लिए नहीं बल्कि किसानों के हित में लागू किया जाए. इसी मांग के साथ ये किसान दूर दराज के इलाकों से यहां पहुंचे. वो मुख्यमंत्री रमन सिंह को बताना चाहते हैं कि फसल बीमा योजना से आखिर किनका भला हो रहा है?

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रमन सिंह (फाइल फोटो)
रमन सिंह (फाइल फोटो)

छत्तीसगढ़ में फसल बीमा योजना किसानों के गले की फांस बन गई है. मुख्यमंत्री रमन सिंह के गृह नगर राजनांदगांव में हजारों की तादाद में किसान उन्हें अपनी फरियाद सुनाने पहुंचे थे, लेकिन रमन सिंह से उनकी मुलाकात नहीं हो पाई. दरअसल मुख्यमंत्री दिल्ली में बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक में शामिल होने के लिए दो दिन तक राज्य से बाहर हैं. लिहाजा राज्य के कृषि मंत्री ने मोर्चा संभाला.

दरअसल पीड़ित किसान यह मांग कर रहे हैं कि फसल बीमा योजना को बीमा कंपनियों के फायदे के लिए नहीं बल्कि किसानों के हित में लागू किया जाए. इसी मांग के साथ ये किसान दूरदराज के इलाकों से यहां पहुंचे. वो मुख्यमंत्री रमन सिंह को बताना चाहते हैं कि फसल बीमा योजना से आखिर किनका भला हो रहा है?

किसानों के मुताबिक उन्हें ये बताया गया था कि फसल बीमा योजना लागू होने के बाद उनका भला होगा, बशर्ते वो अपनी फसल का सही वक्त पर बीमा करवा लें. इसके साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि उसके प्रीमियम का भुगतान समय पर हो. किसानों ने इन सभी बातों को मानते हुए अपनी फसल का बीमा करवाया और समय पर उसके प्रीमियम का भुगतान भी किया लेकिन जब बारी फसल नुकसान के बीमे की अदायगी की आई तो बीमा कंपनियों ने अपने हाथ खड़े कर दिये. कंपनियों ने किसानों को साफ कर दिया कि उनकी फसल नुकसान के प्रकरण फसल बीमा योजना के मापदंडों को पूरा नहीं करते.

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किसानों के हंगामे के बाद बीमा कंपनियां भुगतान के लिए राजी तो हुईं लेकिन अपनी शर्तों पर. बीमा कंपनियों ने किसानों को एक, दो, पांच और दस रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से फसल नुकसान की रकम की अदायगी की. वहीं वर्ष 2017 के नुकसान का अब तक भुगतान नहीं हो पाया, लिहाजा ये किसान राजनांदगांव में पहुंच कर मुख्यमंत्री को अपने हालात से रूबरू कराना चाहते हैं.

प्रीमियम में किसानों ने खर्च किए हजारों रुपये

प्रदर्शन कर रहे किसान टीकम वर्मा के मुताबिक उनके गांव के सैकड़ों किसानों को 2 रुपये से लेकर 30 रुपये तक का नुकसान बीमा मिला है, जबकि किसानों ने हजारों रुपये बीमे के प्रीमियम में फूंक दिए. उन्होंने बताया कि बीमा कम्पनियां फसल बीमे से खूब कमा रही हैं लेकिन सरकार का ध्यान उस ओर नहीं है. यही हाल किसान चंदू साहू ने भी सुनाया. उन्होंने बताया कि इस योजना का कोई फायदा किसानों को नहीं हुआ है. उन्होंने मांग की कि व्यक्तिगत तौर पर किसानों का फसल बीमा होना चाहिए, ना कि ग्रामपंचायतों को यूनिट मानकर. उन्होंने कहा कि इससे किसानों का नुकसान हो रहा है.

उधर राज्य के कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की दलील है कि यह योजना किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है. उनके मुताबिक पिछले वर्ष लगभग 300 करोड़ रुपये बतौर प्रीमियम बीमा कंपनियों के खाते में गया, जबकि किसानों के खाते में 1200 करोड़ से ज्यादा की रकम मुआवजे के रूप में बीमा कंपनियों ने जमा करवाई.   

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छत्तीसगढ़ में वर्ष  2017 में भयंकर सूखा पड़ा था. सरकार ने 21 जिलों की 96 तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित किया था. इस दौरान हजारों किसानों की फसल पूरी तरह से चौपट हो गई थी, गिने चुने किसान ही अपनी फसल की लागत निकाल पाए. और ज्यादातर किसानों के हाथों में कुछ नहीं आया. ऐसे में किसानों को उम्मीद थी कि उन्होंने फसल बीमा के प्रीमियम के रूप में जो हजारों रुपये खर्च किये हैं उससे उन्हें नुकसान की भरपाई हो जायेगी लेकिन बीमा कंपनियों ने किसानों के ज्यादातर मामले सिरे से खारिज कर दिए.

13 लाख में से 5 लाख किसान ही थे मुआवजे के योग्य

खरीफ सीजन 2017 में राज्य के लगभग 13 लाख किसानों ने फसल बीमा करवाया था, ये सभी किसान सहकारी बैंकों के कर्जदार थे. बैंकों के जरिये ही प्रीमियम की रकम बीमा कंपनियों के खाते में ट्रांसफर हुई थी. सूखे के बाद जब बीमा कंपनियों ने किसानों के खेत खलियानों का जायजा लिया तो 13 लाख में से मात्र 5 लाख किसान ही मुआवजे के योग्य पाए गए. इनमें से 30 फीसदी ऐसे किसान थे जिन्हें मुआवजे के रूप में दो, पांच और दस रुपये मिले.

छत्तीसगढ़ में 37 लाख से ज्यादा रजिस्टर्ड किसान हैं लेकिन बमुश्किल 12 से 13 लाख किसान ही फसल बीमा करवाते हैं. दरअसल खेती के लिए इन किसानों का कर्ज लेना जरूरी है इसलिए फसल बीमा उनकी मजबूरी बन गई है. बगैर फसल बीमा करवाये बैंक किसानों को लोन नहीं देते. दूसरी ओर फसल बीमा होने के बाद बीमा कंपनियां उनकी ओर से अपना मुंह फेर लेती हैं. ऐसे में किसानों को लग रहा है कि फसल बीमा योजना उनके फायदे के लिए नहीं बल्कि बीमा कंपनियों के फायदे के लिए है.

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