आईएम के ऑपरेशनल मुखिया यासीन भटकल की गिरफ्तारी को लेकर राजनीति शुरू हो गई है. हाल तक बिहार में जेडीयू के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली बीजेपी अब हर मौके पर वार करती है, चाहे वह बोधगया मंदिर पर हुआ आतंकी हमला हो या फिर यासीन भटकल जैसे बड़े आतंकवादी की गिरफ्तारी.
बिहार के उपमुख्यमंत्री रहे बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने अपने बयान में कहा है कि भटकल को जेडीयू कहीं बिहार का दामाद न करार दे दें, क्योंकि भटकल ने अपने कई शादियों में से एक शादी बिहार के समस्तीपुर में भी की है.
सारा विवाद इशरत जहां मुठभेड़ के केस से शुरू होता है. गुजरात में हुए इस मुठभेड को सीबीआई ने फर्जी करार दिया था. जब जेडीयू के नेताओं ने इशरत जहां को बिहार की बेटी बताया, तो हल्ला मच गया था. नरेन्द्र मोदी पर हुए इस हमले पर भला बीजेपी चुप कैसे रहती, सो उसने भटकल की गिरफ्तारी तक इन्तजार किया और मौका मिलते ही हमला बोल दिया.
नेताओं ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया कि इनके बयानों से देश की सुरक्षा में लगी एजेंसियों और पुलिस के मनोबल पर क्या असर पडेगा. आखिर वोट बैंक का लालच केवल एक ही पार्टी को नहीं है, बल्कि सारे राजनीतिक दल इस दलदल में फंसे हैं.
अब यासिन भटकल जैसे आतंकवादी को गिरफ्तार करने में बिहार पुलिस ने अहम भूमिका निभाई. हमेशा निगेटिव छवि झेलने वाली बिहार पुलिस के लिए यह एक बडी उपलब्धि है. मोतिहारी के एसपी विनय कुमार ने जबरदस्त भूमिका निभाई, लेकिन उन्हें कोई शाबाशी नहीं मिली. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो राजनैतिक कारणों से नहीं बोल रहें होंगे, लेकिन बिहार पुलिस के मुखिया को क्या हो गया? बिहार के डीजीपी अभयानंद ने एक शब्द नहीं बोला. यहां तक जब देश यह जान चुका था कि भटकल गिरफ्तार हो गया, तब भी वो ये बोलते रहे कि उनके पास कोई खबर नहीं है. ऐसे में क्या माना जाए कि यह भी राजनीति से प्रेरित है?
अब बात जेडीयू की. जब राज्य के मुखिया ही इस मसले पर चुप हैं, तो फिर बाकियों की क्या औकात हो सकती है कि इस मुद्दे पर बोल सकें. कुछ छुटभैया नेता यह बोल रहे हैं कि यासीन भटकल की गिरफ्तारी छोटी-मोटी उपलब्धि है. सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर बिहार पुलिस ने आनन-फानन में यासीन भटकल को एनआईए को क्यों सौप दिया, जबकि बोधगया मंदिर में हुए हमले में इंडियन मुजाहिदीन का हाथ बताया गया. ऐसे में बिहार पुलिस उसे रिमांड पर लेकर पूछताछ कर सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया.
आखिर राजनीतिक दल ऐसा क्यों सोचते है कि आतंकवादियों पर बोलने पर उन्हें एक वर्ग के वोट से वंचित होना पडे़गा, जबकि इनके हमलो में मरने वाले लोग सभी वर्गों के लोग होते हैं.