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सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुश सबा और फराह

जन्म से सिर से जुड़ी पटना की दो बहनों को अब ऑपरेशन से अलग नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने इनके माता-पिता की अर्जी पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि बालिग होने तक इन्हें अलग नहीं किया जा सकता.

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जन्म से सिर से जुड़ी पटना की दो बहनों को अब ऑपरेशन से अलग नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने इनके माता-पिता की अर्जी पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि बालिग होने तक इन्हें अलग नहीं किया जा सकता. साथ ही बिहार सरकार को इनकी मदद के लिए आगे आने का आदेश दिया है.

दरसअल चार साल पहले जब ये मामला सुर्खियों में आया तो बिहार सरकार ने इनके माता-पिता को बच्चियों के ऑपरेशन कराने की सलाह दी. इसके खिलाफ सबा और फराह के घरवाले अदालत पहुंचे और अदालत ने जब इनके हक में फैसला सुनाया तो दोनों बच्चियां चहक उठीं. ये सोचकर कि वो जब तक जिंदा रहेंगी तब तक एक जिस्म और दो जान रहेंगी.

सुप्रीम कोर्ट ने दोनों बहनों को एक साथ रहने की इजाजत दे दी है तो इनकी ख्वाहिशें फिर से परवान चढ़ने लगी हैं.

पटना की दो बहनें सबा और फराह जब पैदा हुईं थी तो उनके सिर आपस में जुड़े हुए थे और इनके सिर के साथ जुड़ गईं इनकी तकदीरें भी. पसंद ना पसंद थोड़ी अलग थी लेकिन मस्ती भरे मन की ख्वाहिशें एक होती गईं. साथ खेलना, बॉलीवुड के गाने गाना और सलमान खान से मिलना. और ये ख्वाहिशें इन बहनों की पूरी भी हुई और सबा-फराह सुर्खियों में आईं जब सलमान खान ने इन्हें मिलने के लिए मुबंई बुलाया.

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कुछ साल पहले ये दोनो बहनें सलमान से मिलीं तो तमाम शारीरिक तकलीफों के बावजूद ज़िंदादिली की एक मिसाल थीं. सुपरस्टार सलमान खान को राखी बांधकर इन बहनों ने ज़िंदगी भर के लिए उन्हें अपना भाई बना लिया और इस भाई ने इन्हें 50,000 रुपए की मदद भी की थी.

लेकिन अब ये दोनों बहने पहले की तरह स्वस्थ नहीं हैं. पहले की तरह हंसमुख नहीं हैं. इनके सिर और जोड़ों में बेइंतहा दर्द रहता है. सबा और फराह के मस्तिष्क को जोड़ने वाली खून की धमनी एक है. फराह की दो किडनी हैं, जबकि सबा की एक भी किडनी नहीं है और ऐसे में इन बहनों को ऑपरेशन के ज़रिए अलग करने से इनमें से एक की मौत की संभावना बढ़ जाती है. ज़ाहिर है खुद को दो जिस्म और एक जान कहने वाली ये बहनें इसीलिए ऑपरेशन नहीं करवाना चाहतीं बल्कि जबतक मुमकिन हो ऐसे ही साथ जीना चाहती हैं.

अपने जुड़े रहने की तमाम परेशानियों से जूझती इन दोनों बहनों का हौसला काबिले तारीफ है. ये दोनों एक दूसरे की हर बात बिना कहे समझ लेती हैं. छोटी सी उम्र में और बच्चों की तरह इन्होंने भी पढ़ाई और करियर के ख्वाब देखे थे. सबा डॉक्टर बनना चाहती थी और फराह एक टीचर.

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लेकिन अब इनकी तमाम ख्वाहिशें सिमट गई हैं. क्योंकि अब ये पहले की तरह काम नहीं कर पातीं और ना ही इनके पास इतने पैसे हैं कि इनकी पढाई और मंहगी दवाईयों का खर्चा उठा सकें. लेकिन इसके बावजूद ये दोनों बहने खुश हैं क्योंकि ये एक साथ हैं. इनका कहना है कि ये एक साथ दुनिया में आईं थीं और दुनिया से जाएंगी भी एक साथ.

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