कितना खूबसूरत शब्द है सृजन, मतलब निर्माण. लेकिन बिहार ने इस शब्द को नया विस्तार दिया है. सृजन मतलब विध्वंस. जनता के विश्वास का विध्वंस. सरकार के खजाने का विध्वंस और समाजसेवा के आचरण का विध्वंस. सृजन नाम के एनजीओ ने बिहार सरकार को 700 करोड़ से ज्यादा का चूना लगाया है. यह घोटाला बिहार का व्यापम बनता जा रहा है क्योंकि मुख्य आरोपी की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत गई. अब लालू यादव की पार्टी नीतीश कुमार का इस्तीफा मांग रही है.
अगर आरोपों की संहिता ही अगर सियासत में कसूरवार होने का पैमाना है तो भारतीय जनता पार्टी के सबसे ताजे साथी 700 करोड़ की लूट में गले तक फंस गए हैं, उनके राज में एक ऐसे घोटाले का सृजन हुआ है जिसमें बाकायदा सरकारी निगरानी में खजाने से रकम रेत की तरह सरकती रही. समझ लीजिए कि सृजन मध्य प्रदेश के व्यापम का बिहार संस्करण है। 700 करोड़ के घोटाले में मुख्य आरोपी नाजिर महेश मंडल की हाजत में हुई मौत ने सरकार की घंटी बजा डाली है.
आरोपी की संदिग्ध मौत
कल्याण विभाग से निलंबित महेश मंडल को 13 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था. इसके बाद 15 अगस्त को कोर्ट ने उन्हें जेल भेज दिया. तबीयत खराब होने के बाद महेश मंडल ने इलाज कराने की मोहलत मांगी. कोर्ट के आदेश पर उन्हें मायागंज अस्पताल में भर्ती करा दिया गया. रविवार की रात संदिग्ध परिस्थितियों में महेश मंडल की मौत हो गई.
भागलपुर की इस हवेली से घोटाले के सृजन की सत्ता चलती थी, और सत्ता भी ऐसी-वैसी नहीं. बड़े-बड़े उद्योगपति टर्नओवर देखकर शरमा जाएं. सृजन महिला विकास समिति नाम के एनजीओ के पीछे सरकार के इतने मंत्री, अफसर और चाकर हाथ जोड़े खड़े रहते थे कि अगरबत्ती बेचकर महिलाओं को आत्मनिर्भर होने के हुनर सिखाने वाला एक संस्थान अरबों की अटारी पर खड़ा हो गया.
कमाल का घोटाला है सृजन. आरोप है कि उसने तकरीबन आधा दर्जन कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर भागलपुर जिला प्रसाशन के अलग-अलग सरकारी खातों से करोड़ों की रकम निकालते रहे और फर्जीवाड़ा करके अपने अलग-अलग खातों में जमा करते रहे. इस खेल में सरकारी अधिकारियों और बैंक के कर्मचारियों ने जमकर सृजन का साथ दिया.
जेडीयू-बीजेपी पर भी आरोप
सृजन घोटाले में अकेले जेडीयू ही नहीं, बीजेपी भी बुरी तरह फंसी हुई है. आरोप है कि सरकार को सृजन के नाम पर चूना लगाने वालों में बीजेपी किसान मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष विपिन शर्मा सबसे ऊपर थे. बीजेपी ने गर्दन फंसती देख आनन-फानन में विपिन शर्मा को पार्टी से निकाल दिया. लेकिन पार्टी की किरकिरी कम नहीं हुई क्योंकि विपिन शर्मा लगातार फरार चल रहा है. दूसरे जिस दौरान यह घोटाला हुआ है उस समय बिहार में जेडीयू-बीजेपी की सरकार थी, और आज के उप मुख्यमंत्री सुशील नेता वित्त मंत्री हुआ करते थे.
तस्वीरें बताती हैं कि शाहनवाज हुसैन, गिरिराज सिंह और निशिकांत दुबे जैसे बीजेपी के दिग्गज नेता सृजन के सम्मानित आगंतुकों में थे. पूरी फेहरिस्त है सृजन के प्रबंधक अमित कुमार और उनकी पत्नी रजनी प्रिया के साथ प्रसन्न मुद्रा में नजर आने वाले बिहार के नेताओं की. अब पता चला है कि ये मुद्राएं सृजन के लिए मुद्राओं का छापाखाना थीं.
नीतीश ने दिए CBI जांच के आदेश
सृजन नीतीश कुमार और बीजेपी के लिए गले की हड्डी बन गई है. सीबीआई जांच के आदेश के बावजूद उसके लिए जवाब देना मुश्किल हो रहा है. दरअसल इस घोटाले में बिहार सरकार के सुशासन की पोल खोल दी है. सृजन को चलाने वाले सरकार में इतने अंदर तक रसूख रखते थे कि ट्रेजरी से निकले करोड़ों के चेक सृजन के खाते में पहुंच जाते थे, और फर्जीवाड़ा इनता महीन कि ऑडिट वालों को भनक तक नहीं लगी. अब देखिए कि घोटाले का यह सृजन पकड़ा कैसे गया.
घोटालों के हाहाकारी सृजन का पता तब चला जब गैरकानूनी तरीके से रकम ट्रांसफर करने की एक के बाद एक तीन घटनाएं सामने आई. एफआईआर के मुताबिक इन तीनों ही मामलों में चोरी के नायाब तरीके का इस्तेमाल किया गया था. बिहार का व्यापम कभी पकड़ में न आता अगर सृजन ने सही चेक सही खाते में जमा कराए होते. लेकिन होता ये था कि सरकार चेक किसी के नाम जारी करती और रुपया पहुंच जाता सृजन के खाते में. यह पकड़ में कैसे आया, इसके लिए देखिए सृजन का फर्जीवाड़ा नंबर एक.
सृजन का फर्जीवाड़ा नंबर 1
27 सितंबर 2014 को पहली बार पकड़ में आया सृजन का घोटाला
भागलपुर के ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स ने 12 करोड़ 20 लाख का एक चेक जारी किया.
इस चेक को मुख्यमंत्री नगर विकास योजना के तहत पटेल बाबू रोड पर स्थित इंडियन बैंक में जमा किया जाना था.
लेकिन बैंक ने इस चेक को सृजन एनजीओ के एकाउंट में जमा किया.
और भी कमाल की बात ये है कि कि चेक जारी होने के तीन दिन बाद सृजन एक कॉपरेटिव सोसाइटी के रूप में रजिस्टर्ड हुआ था.
बात केवल इतनी नहीं है. सृजन के लिए एनडीए सरकार ने नियम-कानून के सारे डीएनए बदल डाले थे. बाबुओं ने सारी बही बिछा दी थी, और त्रिकालदर्शी मंत्रियों के चक्षु सृजन के संताप पर झुकते चले गए थे. अब देखिए सृजन का फर्जीवाड़ा नंबर दो
सृजन का फर्जीवाड़ा नंबर 2
भागलपुर प्रशासन ने 1, 3 और 6 सितंबर 2016 को 5.5 करोड़ की कीमत के चेक जारी किए.
ये चेक मुख्यमंत्री नगर विकास योजना के तहत इंडियन बैंक में जमा होने थे.
उस समय तो तीनों ही चेक सही खाते में जमा करा दिए गए.
लेकिन बाद में फर्जीवाड़ा करके पूरी रकम सृजन एनजीओ के खाते में ट्रांसफर कर दी गई.
इसके लिए चेक पर बाकायदा डीएम के फर्जी हस्ताक्षर किए गए.
स्वच्छ भारत अभियान का असल मतलब सृजन के साहूकारों ने ही समझा था. इतनी बड़ी-बड़ी ऑडिट हुई. लेखाकार और महालेखाकारों ने चश्मा लगार सृजन के विस्तार का चमत्कार देखा. लेकिन क्या मजाल कि एक भी घपला पकड़ लें. अजी बैंक खातों के सैकड़ों पन्नों के स्टेटमेंट तक बदल डाले, जाली सिग्नेचर के माहिरों के सामने सब फेल.
सृजन का फर्जीवाड़ा नंबर 3
10 नवंबर 2016 को सृजन ने स्वास्थ्य योजना के तहत सरकार को चूना लगाया.
जब भागलपुर के चीफ मेडिकल ऑफिसर ने 43.52 लाख रुपए के तीन चेक जारी किए.
घंटा घर स्थित बैंक ऑफ बड़ौदा के नाम ये चेक सरकारी खाते में जमा होने थे.
लेकिन ये चेक रिजेक्ट होकर 22 दिसंबर 2016 को वापस आ गए.
लेकिन आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि इससे पहले ही उस चेक की राशि सृजन के खाते में पहुंच चुकी थी.
सृजन का सृजन देखकर ब्रह्मा सृष्टि का सृजन भूल जाएं. ये सहरसा के डीएम की जांच रिपोर्ट है. 8 महीने में पता नहीं किस काम के लिए बिहार सरकार ने 186 करोड़ 92 लाख 49 हजार 924 रुपए सृजन महिला विकास समिति को दिए. बाद में भेद खुला तो सृजन ने चुपके से मूल सरकार को वापस कर दिया और सूद खा गया, और सनिए जिन बैंक खातों में सृजन ने ये रकम जमा कराई थी, उन्हें उसने घोटाला खुलते ही पहली फुर्सत में बंद कर दिया.
खाता नंबर 35880800001324 27-02-2012 16-07-2013
खाता नंबर 35880200000068 24-09-2012 08-05-17
तो सृजन का फर्जीवाडा हरि अनंत हरि कथा अनंता की तरह हो गया है. बिहार की जिस गली में निकलिए वहीं से प्रभु के दो चाल किस्से निकल आते हैं. हिंदी साहित्य वालों ने सृजन शब्द की व्याख्या में चाहे जितने पन्ने रंगे हों लेकिन इस शब्द के अर्थ को असल विस्तार तो भागलपुर वाले सृजन ने दिया है. इस विस्तार पर बिहार सरकार को मंह छिपाने की जगह नहीं मिल रही है.