बिहार में आसमानी आफत ने अब तक 72 लोगों की जान ले ली है. ऐसे कई परिवारों में अब गमों का पहाड़ टूटा है, लेकिन पीड़ित मदद के इंतजार में आस लगाए बैठे हैं कि कोई तो आए और उन्हें बचाए.
बिहार में आफत आने से पहले तक ना कोई गम था ना फिक्र. घनी बस्ती आबाद थी और जिंदगियां खुशहाल थीं, लेकिन मूसलाधार बारिश ने सब तबाह कर दिया. नेपाल की नदियों से मौत की उफनती लहरें बिहार पहुंचीं और सारी खुशियां मातम में बदल गईं. बिहार के पूर्णिया में अब भी मौत का मातम खत्म होने का नाम नहीं ले रहा.
बिहार के अररिया, कटिहार, किशनगंज, सीतामढ़ी, मोतिहारी और दूसरे इलाकों में भी तबाही बेहिसाब हुई है. इस सैलाब के सितम और दर्द से जिंदगियां कराह रही हैं. इस आपदा में जिन लोगों ने अपनों को खो दिया, अब उनकी जिंदगी आंसुओं के सहारे गुजर रही है. पूर्णिया के चांदनी चौक इलाके में रहने वाले एक परिवार को सैलाब ने ऐसा जख्म दे दिया है, जो हमेशा के लिए आंसुओं के सैलाब लेकर आया है.
यहां एक मां ने अपने 14 साल के जिगर के टुकड़े को खो दिया. इन खामोश सी लहरों ने उसे दबोच लिया. वह 15 अगस्त के दिन अपने दोस्त के साथ बाढ़ की इस बेरहम तस्वीरों की सेल्फी लेना चाहता था, लेकिन तभी हादसा हुआ और वो डूबता चला गया. मौत से महज आठ दिन पहले ही बहन ने अपने इस भाई की कलाई पर राखी बांधी थी, लेकिन किसी को इस अनहोनी का क्या पता नहीं था. उस बहन को पता नहीं था कि उसका भाई अपनी बहन से हमेशा के लिए जुदा हो जाएगा.
पूर्णिया का एक और हिस्सा है महावीर चौक. यहां रहने वाली विमला की जिंदगी भी गमों के सैलाब में डूब गई है. बेसहारा विमला अकेले घर को सजाती-संवारती थीं और अपनी जिंदगी गुजर बसर करती थीं, लेकिन अब सब कुछ खत्म हो चुका है. कुछ बचा है तो वो हैं आंखों में आंसू और जुबान पर बर्बादी की कहानी.