बिहार के अरवल जिले के लक्ष्मणपुर बाथे गांव का नाम आज भी बहुत से लोगों के तन में सिहरन पैदा कर देता है. 23 साल पहले यहां 30 नवंबर की कड़ाके की ठंड में सोए 58 लोगों 1 दिसंबर की सुबह देखना नसीब नहीं हुआ. बिहार में हुए नरसंहार की काली किताब में उस रात एक पन्ना इस गांव से जुड़ा. दलित बस्ती के 58 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था. देश भर में चर्चित इस सामूहिक हत्याकांड की सबसे खास बात ये है कि लोअर कोर्ट में जिन लोगों को इस घटना के लिए दोषी करार दिया गया था, उच्च न्यायालय ने उन सभी को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया.
दरअसल, 'द लल्लनटॉप' की चुनाव यात्रा की टीम विधानसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच इस गांव में पहुंची. यहां टीम की मुलाकात सामूहिक हत्याकांड में बाल-बाल बचे एक मात्र गवाह लक्ष्मण से हुई. वयोवृद्ध लक्ष्मण ने उस रात अपनी आंखों के सामने अपनी पत्नी, बहू और बेटी की मौत देखी थी. खुद दीवार फांदकर किसी तरह से बच पाए थे. वरना हत्यारों की भीड़ ने गांव की मासूम बच्चियों से लेकर गर्भवती महिलाओं और बच्चों तक को नहीं छोड़ा था.
लक्ष्मण ने उस रात की कहानी सुनाई और बताया कि हत्यारों की भीड़ में गांव के अगड़ी जाति के लोग भी थे जो हत्यारों को घरों और परिवारों की पहचान कराते चल रहे थे. उनके पास धारदार हथियार के साथ राइफल और सिक्सर (रिवाल्वर) थे जिससे वह एक-एक घर में घुस कर हत्याएं करते जा रहे थे. लक्ष्मण के मुताबिक केस चलने पर उन्हें बयान से पलटने के लिए 75 लाख रुपये का लालच भी दिया गया. यहां तक कि जान से मारने की धमकी भी मिली. उन्हीं की गवाई पर दोषियों को निचली अदालत ने फांसी और उम्रकैद की सजा सुनाई. लक्ष्मण यह भी आरोप लगाते हैं कि हाईकोर्ट में एक करोड़ रुपये खर्च करके सब के सब बच गए.
अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है. घटना में नामजद लोगों में ज्यादातर गांव छोड़ चुके हैं. कभी कभी रात में अपने घर आते हैं और सुबह होते ही भाग जाते हैं. इस नरसंहार के तुरंत बाद घटना के पीछे रणबीर सेना का नाम आया था. माना जाता है कि हत्यारों की भीड़ में रणबीर सेना के लोग शामिल थे जो सोन नदी के रास्ते भोजपुर गांव की तरफ से आए थे. हत्याकांड को अंजाम देने के बाद सभी उसी रास्ते भाग भी गए. जिन तीन मल्लाहों ने उन्हें नदी पार कराई, उन्हें भी उन सब ने मौत के घाट उतार दिया था.
इस पूरी घटना में 61 लोग मारे गए थे. इस मामले में आरोपी पक्ष के लोगों का कहना था कि उनके गांव या वहां के लोगों का रणबीर सेना या उनके लोगों से कभी कोई संबंध नहीं था. उनके गांव के लोगों को बेवजह आरोपी बनाया गया. ये लोग यह भी आरोप लगाते हैं कि मार्क्सवादी संगठनों के दो गुटों की बीच वर्चस्व की लड़ाई में ये हत्याकांड हुआ. रणबीर सेना का नाम बाद में बेवजह उछाला गया.