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कारों में पाए गए फ्लेम रिटार्डेंट केमिकल 'TCEP' को ICMR ने बताया कैंसरजनक, जान‍िए क्या है ये, इससे कैसे बचें

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ICMR new finding on TCEP (Rep Image by AI)
ICMR new finding on TCEP (Rep Image by AI)

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क्या आप जानते हैं कि आपकी कार का इंटीरियर, जिसमें आप हर दिन घंटों बिताते हैं, आपके लिए कैंसर का खतरा बन सकता है? हाल ही में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) को दी अपनी रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला खुलासा किया है. इसके अनुसार कारों के इंटीरियर में इस्तेमाल होने वाला फ्लेम रिटार्डेंट केमिकल 'ट्रिस (2-क्लोरोएथिल) फॉस्फेट' यानी TCEP को कैंसरजनक (carcinogenic) घोषित किया गया है. आइए जानते हैं कि आखिर क्या है TCEP और ये हमारी सेहत के लिए क्यों खतरनाक है?

TCEP क्या है और कारों में इसका इस्तेमाल क्यों 

TCEP एक ऑर्गेनोफॉस्फेट फ्लेम रिटार्डेंट केमिकल है जिसका इस्तेमाल कारों के सीट फोम, कवरिंग और अन्य इंटीरियर मटेरियल में किया जाता है. इसका मुख्य मकसद है कार में आग लगने की स्थिति में आग को फैलने से रोकना या उसकी गति को धीमा करना. 1970 के दशक से अमेरिका में नेशनल हाईवे ट्रैफिक सेफ्टी एडमिनिस्ट्रेशन (NHTSA) ने कारों में फ्लेम रिटार्डेंट्स के इस्तेमाल को अनिवार्य किया था और यही नियम भारत समेत कई देशों में भी लागू है. लेकिन हाल के शोध बताते हैं कि ये केमिकल्स, खासकर TCEP, उतने सुरक्षित नहीं हैं, जितना पहले समझा जाता था. 

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ICMR की रिपोर्ट में बताया कैंसरजनक केमिकल 

ICMR ने अपनी 22 मई की रिपोर्ट में बताया कि TCEP को इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) ने ग्रुप 3 (अनक्लासिफाइड कार्सिनोजेन) में रखा है. यानी, यह कैंसर का कारण बन सकता है हालांकि इसके पुख्ता सबूत के लिए अभी और शोध की जरूरत है. इसके अलावा, कैलिफोर्निया के प्रोपोजिशन 65 के तहत TCEP को पहले ही कैंसरजनक केमिकल की सूची में शामिल किया जा चुका है. ICMR ने यह भी बताया कि TCEP के साथ-साथ दो अन्य फ्लेम रिटार्डेंट्स—ट्रिस (1-क्लोरो-आइसोप्रोपिल) फॉस्फेट (TCIPP) और ट्रिस (1,3-डाइक्लोरो-2-प्रोपिल) फॉस्फेट (TDCIPP)—भी कारों में पाए गए हैं, जिनका कैंसर से संभावित संबंध है. 

कैसे बनता है TCEP खतरा?

शोध में पाया गया कि TCEP जैसे फ्लेम रिटार्डेंट्स कार के इंटीरियर मटेरियल खासकर सीट फोम से निकलकर हवा में घुल जाते हैं. गर्म मौसम में, जब कार का तापमान 65 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, इन केमिकल्स का 'ऑफ-गैसिंग' (हवा में रिलीज होना) और तेज हो जाता है. ड्यूक यूनिवर्सिटी के एक शोध में 101 कारों (2015 या उसके बाद की मॉडल) की जांच की गई, जिसमें 99% कारों में TCIPP और ज्यादातर में TCEP और TDCIPP पाए गए। ये केमिकल्स सांस के जरिए शरीर में पहुंच सकते हैं और लंबे समय तक संपर्क में रहने से कैंसर, न्यूरोलॉजिकल समस्याएं और प्रजनन संबंधी दिक्कतें पैदा कर सकते हैं. 

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क्या कहते हैं नियम

भारत में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के पास इन केमिकल्स को कैंसरजनक घोषित करने की क्षमता नहीं है. NGT ने अब सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) और ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) से इस मुद्दे पर जवाब मांगा है. विशेषज्ञों का कहना है कि कार निर्माताओं को वैकल्पिक, कम हानिकारक फ्लेम रिटार्डेंट्स पर विचार करना चाहिए और सरकार को पुराने नियमों को अपडेट करना चाहिए.

कार ड्राइव करते हैं तो ध्यान दें 

कार में बैठने से पहले खिड़कियां और दरवाजे खोलें ताकि हवा साफ हो सके और वेंट‍िलेशन बढ़ा रहे. 
गर्मी में कार को धूप से बचाएं ताकि केमिकल्स का रिलीज कम हो, छांव में पार्क‍िंग करना सही है. 
कार के इंटीरियर को नियमित रूप से साफ करें और धूल हटाएं क्योंकि इनमें केमिकल्स जमा हो सकते हैं. 
हाइब्रिड या इलेक्ट्रिक कारें कम उत्सर्जन करती हैं और पर्यावरण के लिए बेहतर हैं. 

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