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भारी पड़ सकती है गांजे की लत, याददाश्त पर पड़ेगा असर! इस नई रिसर्च में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

पिछले कुछ सालों में गांजे की पोटेंसी यानी उसका नशा बढ़ाने वाला असर काफी ज्यादा हो गया है. पहले जहां गांजे में THC (tetrahydrocannabinol) नाम का केमिकल कम मात्रा में होता था, अब वह काफी बढ़ गया है. इससे लोगों को दिल की धड़कन तेज होना, घबराहट, बेहोशी, स्ट्रोक, हार्ट अटैक, मांसपेशियों में सूजन (myocarditis) जैसी गंभीर समस्याएं हो रही हैं

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Representational Photo (Credit: ChatGPT)
Representational Photo (Credit: ChatGPT)

दम मारो दम, म‍िट जाएं गम...कुछ ऐसे ही अंदाज में गांजा आपकी जिंदगी में दाख‍िल हो चुका है तो सावधान हो जाइए. हाल ही में प्रकाश‍ित एक नई रिसर्च बताती है कि गांजा (मारिजुआना) लेने वाले लोगों में अगले 5 साल के भीतर डिमेंशिया (याददाश्त की बीमारी) होने का खतरा 23% तक बढ़ जाता है. ये रिसर्च JAMA Neurology नाम की जानी-मानी मेडिकल जर्नल में छपी है और इसमें 60 लाख से ज्यादा लोगों के डेटा का विश्लेषण किया गया है. 

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अब सवाल ये उठता है  कि क्या गांजा अब ‘नेचुरल’ और ‘सेफ’ नहीं रहा? क्या यह सिर्फ नशा ही नहीं, दिमाग की बीमारियों का कारण भी बन रहा है? आइए, आसान भाषा में समझते हैं ये पूरा मामला...

क्या है ये नई रिसर्च?

कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ ओटावा के फैमिली मेडिसिन विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. डैनियल मायरन इस रिसर्च के लीड ऑथर हैं. CNN में छपे उनके बयान के अनुसार जिन लोगों को गांजा लेने के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़ा या इमरजेंसी में जाना पड़ा, उनमें अगले 5 साल के भीतर डिमेंशिया होने का खतरा 23% ज्यादा पाया गया. इतना ही नहीं, जब इनकी तुलना आम लोगों से की गई तो डिमेंशिया का रिस्क 72% ज्यादा निकला. इस रिसर्च में उम्र, लिंग, मानसिक स्थिति, अन्य बीमारियां जैसे डायबिटीज या हार्ट डिजीज को ध्यान में रखकर ये निष्कर्ष निकाला गया है. 

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क्या होता है डिमेंशिया 

वर‍िष्ठ मनोव‍िश्लेषक डॉ सत्यकांत त्र‍िवेदी कहते हैं क‍ि डिमेंशिया कोई एक बीमारी नहीं, बल्कि एक कंडीशन है जिसमें इंसान की याददाश्त, सोचने-समझने की शक्ति और निर्णय लेने की क्षमता धीरे-धीरे खत्म होने लगती है. इसके मरीज धीरे-धीरे अपना नाम, घर का रास्ता, यहां तक कि अपने परिवार के लोगों को भी भूलने लगते हैं. भारत में हर 20 में से एक व्यक्ति को 60 साल की उम्र के बाद डिमेंशिया होने का खतरा होता है. लेकिन अगर गांजा लेने वालों में ये रिस्क और ज्यादा बढ़ जाए, तो ये पब्लिक हेल्थ के लिए बड़ा खतरा बन सकता है. 

गांजे से आती है अस्पताल जाने की नौबत 

पिछले कुछ सालों में गांजे की पोटेंसी यानी उसका नशा बढ़ाने वाला असर काफी ज्यादा हो गया है. पहले जहां गांजे में THC (tetrahydrocannabinol) नाम का केमिकल कम मात्रा में होता था, अब वह काफी बढ़ गया है. इससे लोगों को दिल की धड़कन तेज होना, घबराहट, बेहोशी, स्ट्रोक, हार्ट अटैक, मांसपेशियों में सूजन (myocarditis) जैसी गंभीर समस्याएं हो रही हैं जिनके चलते उन्हें इमरजेंसी में जाना पड़ता है. 

क्या गांजा लेने से दिमाग खराब होता है?

रिसर्चर डॉ. मायरन के मुताबिक, गांजा दिमाग के न्यूरल कनेक्शन को नुकसान पहुंचा सकता है. इससे ब्रेन में सूजन या माइक्रोवेस्कुलर डैमेज (सूक्ष्म रक्तवाहिकाओं में क्षति) हो सकती है. यह ब्रेन की फंक्शनिंग को कमजोर बनाता है. इसके अलावा गांजा लेने वाले लोगों में डिप्रेशन, एंग्जायटी, सामाजिक अलगाव (social isolation), सड़क दुर्घटनाओं का खतरा आदि द‍िक्कतें भी हो जाती हैं. ये सारी बातें डिमेंशिया के रिस्क फैक्टर मानी जाती हैं. 

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गांजा और लत – CDC का अलर्ट

CDC (यूएस सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन) की रिपोर्ट कहती है कि गांजा लेने वाले करीब 30% लोग इसके एडिक्शन यानी गांजा उपयोग विकार (Cannabis Use Disorder) के शिकार हो सकते हैं.  ये वो लोग होते हैं जो बार-बार गांजा लेते हैं या इसे छोड़ने की कोशिश करते हैं, लेकिन नहीं छोड़ पाते. उनके गांजा छोड़ने पर withdrawal symptoms आते हैं. इसके चलते नौकरी, रिश्ते, पढ़ाई पर असर पड़ता है. ये लत दिमाग पर असर डालती है, खासकर याददाश्त, ध्यान और सीखने की क्षमता पर असर पड़ता है. 

सीनियर्स और मिड-एज लोग ज्यादा रिस्क में

रिसर्च में बताया गया है कि 2008 से 2021 के बीच 45-64 साल के लोगों में गांजा के कारण इमरजेंसी में जाने के मामले 5 गुना बढ़े हैं. वहीं 65 साल से ऊपर के लोगों में ये आंकड़ा 27 गुना तक पहुंच गया. अगर कोई पहले से ही उम्र के साथ होने वाली मानसिक थकावट झेल रहा होता है तो उस पर गांजा का असर डिमेंशिया जैसी बीमारी का खतरा और बढ़ा सकता है. 

क्या ये सबके लिए चेतावनी है?

डॉ. रॉबर्ट पेज II, जो कोलोराडो यूनिवर्सिटी के फार्मेसी डिपार्टमेंट में प्रोफेसर हैं, कहते हैं कि गांजा चाहे मेडिकल कारण से लो या मनोरंजन के लिए, अगर आपके अंदर पहले से मानसिक स्वास्थ्य की समस्या है, तो आपको डॉक्टर को ये बात बतानी चाहिए. गांजा एक साइकोट्रॉपिक दवा है  यानी इसका असर सीधे दिमाग पर होता है. इसलिए ‘नेचुरल है तो सेफ है’ वाली सोच अब outdated हो रही है. 

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भारत में स्थिति 

भारत में गांजा गैरकानूनी है लेकिन कई राज्यों में पारंपरिक रूप से इसका उपयोग होता आया है खासकर भांग के रूप में. साथ ही, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया पर गांजे को ग्लैमराइज भी किया जा रहा है. लेकिन इस रिसर्च के बाद ये जरूरी हो गया है कि पब्लिक को गांजे के खतरे बताए जाएं.

गांजे से आलसी बनाने वाले इस सिंड्रोम का खतरा भी 

एम्स के नशा रोग विशेषज्ञ डॉ अनिल शेखावत कहते हैं कि गांजे यानी मारिजुआना को लेकर एक और सवाल अक्सर उठता है  कि क्या इसे लेने से इंसान सुस्त और आलसी  हो जाता है? इस स्थिति को मेडिकल भाषा में  Amotivational Syndrome कहते हैं यानी ऐसा मानसिक हाल जहां इंसान का किसी भी चीज़ में मन नहीं लगता, मोटिवेशन खत्म हो जाता है और ज़िंदगी का फोकस गायब हो जाता है. 

एमोटिवेशनल सिंड्रोम के लक्षण

हमेशा थका-थका या सुस्त महसूस करना 
किसी भी टारगेट या गोल के लिए मेहनत या प्रयास न करना 
क्रिएटिविटी और कॉन्फिडेंस में गिरावट आना 
पढ़ाई, काम या किसी प्रोजेक्ट में मन नहीं लगता

गांजे से द‍िमाग का रिश्ता समझ‍िए 
डॉ अन‍िल शेखावत कहते हैं कि कुछ रिसर्च बताती हैं कि अगर कोई लंबे समय तक भारी मात्रा में गांजा लेता है खासकर किशोरावस्था (adolescence) से, तो उनके दिमाग में डोपामिन सिस्टम पर असर पड़ सकता है. डोपामिन वो केमिकल है जो हमें मोटिवेट करता है, इनाम का अहसास कराता है और मेहनत के लिए प्रेरित करता है. गांजा इस सिस्टम को धीमा कर सकता है जिससे इंसान को कुछ भी करने की चाह नहीं रह जाती. 

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डॉ अन‍िल शेखावत कहते हैं कि कुछ लोग तो दावा करते हैं कि गांजा उन्हें ज्यादा क्रिएटिव, फोकस्ड या रिलैक्स महसूस कराता है. लेकिन ये बातें ज्यादातर अनुभव (anecdotal) हैं कहीं भी मेडिकल रूप से साबित नहीं हैं और ये असर डोज पर भी निर्भर करता है. साल 2016 की एक स्टडी (Journal of Clinical Psychiatry) में देखा गया कि जो लोग नियमित गांजा लेते हैं, उनका परफॉर्मेंस स्कूल और जॉब में कम हो सकता है. खासकर युवाओं में इसका असर सबसे ज्यादा देखा गया है. वहीं, दूसरी तरफ कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि अकेला गांजा इस सिंड्रोम का कारण नहीं है. कई बार ये सुस्ती डिप्रेशन, स्ट्रेस या दूसरे नशों की वजह से भी हो सकती है. 

सबसे ज्यादा खतरा किन्हें है 

जो रोज या लगभग रोज गांजा लेते हैं
जो कम उम्र में इसकी शुरुआत करते हैं
जो हाई पोटेंसी THC वाले स्ट्रेन्स का इस्तेमाल करते हैं
जिनका मेंटल हेल्थ बैकग्राउंड पहले से कमजोर है. 

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