अगर आंखों में जलन, चुभन या बार-बार सूखेपन की शिकायत हो रही है तो जरूरी नहीं ये मौसम बदलने के कारण हो. बदलती लाइफस्टाइल, बढ़ता स्क्रीन टाइम और आंखों की अनदेखी अब ड्राइ आइज की समस्या बढ़ा रही हैं. एम्स (AIIMS) के डॉक्टरों ने एक नई रिसर्च के जरिए पाया है कि मां के दूध में पाया जाने वाला ‘लैक्टोफेरिन’ सूखी आंखों के इलाज में कारगर हो सकता है.हालांकि इस पर पहले भी कई रिसर्च हो चुकी हैं.
क्या है लैक्टोफेरिन?
लैक्टोफेरिन एक ग्लाइकोप्रोटीन है जो मां के दूध, गाय के दूध और इंसानी लार में पाया जाता है. यह तत्व एंटीबैक्टीरियल और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होता है. अब तक इसे इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में जाना जाता था, लेकिन हाल ही में एम्स के वैज्ञानिकों ने भी इसकी एक और खासियत सामने रखी है, वो ये है कि ये ड्राय आई सिंड्रोम में राहत देने की क्षमता रखता है.
ड्राय आई सिंड्रोम यानी आंखों में नमी की कमी होना, यह समस्या धीरे-धीरे गंभीर रूप ले सकती है अगर समय पर इलाज न किया जाए. लैक्टोफेरिन न केवल आंखों की सतह को सुरक्षित रखता है बल्कि आंसुओं की गुणवत्ता को भी बेहतर बनाता है.
क्यों बढ़ रही है सूखी आंखों की समस्या?
आज की डिजिटल लाइफस्टाइल इसका सबसे बड़ा कारण है. मोबाइल, लैपटॉप और टीवी स्क्रीन पर घंटों बिताना आंखों की नैचुरल नमी को प्रभावित करता है. इसके अलावा, सर्जरी के बाद होने वाली कॉम्प्लिकेशन और बढ़ती उम्र भी इस परेशानी को बढ़ावा देती हैं.
एम्स के नेत्र रोग विभाग की प्रोफेसर डॉ नम्रता शर्मा ने एक नेशनल डेली को दिए बयान में कहा कि कई मरीजों को सर्जरी के बाद आंखों में सूखापन महसूस होता है. हमारी स्टडी में ऐसे 60% मरीजों में ड्राय आई के लक्षण देखे गए. महिलाओं में ये समस्या अधिक देखी गई.
50 मरीजों पर किया गया परीक्षण, अब 200 मरीजों पर ट्रायल
बता दें कि एम्स की टीम ने पहले चरण में 50 मरीजों पर लैक्टोफेरिन का ट्रायल किया, जिसमें सकारात्मक नतीजे देखने को मिले. अब दूसरे चरण में 200 मरीजों को शामिल किया गया है. रिसर्च टीम के मुताबिक लैक्टोफेरिन से न केवल आंसुओं की मात्रा बढ़ी, बल्कि आंखों में जलन और सूखेपन की शिकायत भी कम हुई. डॉ नम्रता कहती हैं कि हमने पाया कि लैक्टोफेरिन आंखों की सतह को बैक्टीरिया से भी बचाता है और ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस को कम करता है। इससे मरीजों को तेज़ी से राहत मिलती है.
क्या यह दवा जल्दी बाजार में आएगी?
फिलहाल लैक्टोफेरिन आधारित थैरेपी पर रिसर्च जारी है. अगर 200 मरीजों पर चल रहे क्लीनिकल ट्रायल में भी उम्मीद के मुताबिक नतीजे मिलते हैं तो निकट भविष्य में इसे एक मान्यता प्राप्त इलाज के तौर पर शामिल किया जा सकता है. विशेषज्ञों की मानें तो लैक्टोफेरिन के उपयोग से न केवल आंखों की देखभाल में नया विकल्प मिलेगा, बल्कि यह एक सस्ता और सुलभ विकल्प भी साबित हो सकता है.
अपनी आंखों को नजरअंदाज न करें
एम्स के नेत्र रोग विभाग के पूर्व डॉ ब्रजेश लहरी ने aajtak.in को बताया कि ड्राय आई को हल्के में लेना खतरनाक हो सकता है. अगर लंबे समय तक आंखों में जलन, धुंधलापन, चुभन या थकान बनी रहती है तो ये ड्राय आई के लक्षण हो सकते हैं. समय रहते नेत्र चिकित्सक से सलाह लेना बेहद जरूरी है. आंखों की समस्या को जितना जल्दी पहचाना जाएगा, इलाज उतना ही आसान होगा. इसमें इलाज के साथ ही स्क्रीन टाइम घटाना, आंखों को पर्याप्त आराम देना और संतुलित डाइट रखना भी जरूरी है.