यूक्रेन में चीफ ऑफ स्टाफ एंड्री यरमक ने करप्शन के आरोप में इस्तीफा दे दिया. राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने खुद यह बात बताई.यरमक राष्ट्रपति के बाद सबसे ताकतवर व्यक्ति थे. अचानक और गंभीर आरोपों के बीच उनका जाना यूक्रेन पर नए सिरे से परेशानियां ला सकता है. हो सकता है कि इसके बाद प्रेसिडेंट पर दोबारा चुनाव कराने का दबाव बढ़े, जिसकी बीच-बीच में मांग भी उठती रही.
वैसे तो किसी देश में किसी नेता का इस्तीफा निहायत आंतरिक मसला होता है, लेकिन युद्धरत देश में ये अलग चीज हो जाती है. यूक्रेन को ही लें तो ये देश रूस से पिछले चार सालों से लड़ रहा है. रूस चाहता है कि वो अपने कुछ हिस्से उसके हवाले कर दे. जाहिर तौर पर यूक्रेन को यह मंजूर नहीं. लड़ाई खिंच रही है. इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बीच-बचाव करना चाहा, लेकिन उनकी बात भी रूस के ही पक्ष में दिख रही है. इस बीच यूक्रेन में एक बड़ा राजनीतिक बदलाव दिख रहा है.
शुक्रवार को वहां के चीफ ऑफ स्टाफ यरमक के घर पर एंटी-करप्शन विभाग का छापा पड़ा और इसके तुरंत बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया. यरमक राजनीतिक तौर पर सेकंड-इन-लाइन हैं. ये वही लीडर हैं जो वॉशिंगटन के साथ बातचीत को लीड करते रहे. लड़ाई की शुरुआत से ही वे जेलेंस्की के साथ दिखते रहे, फिर चाहे कीव में विदेशी नेताओं का स्वागत हो, या फिर किसी तरह की डिप्लोमेटिक बातचीत हो.

ताकत के चलते उन्हें शैडो प्राइम मिनिस्टर कहा जाने लगा. अब यही शख्स इस्तीफा दे चुका. यह कदम काफी कुछ वही है, जैसे अपने ही देश में जेलेंस्की का कमजोर पड़ जाना. रूस-यूक्रेन युद्ध में भी इससे नया मोड़ आ सकता है.
बता दें कि लड़ाई शुरू होने से अब तक खुद जेलेंस्की की लोकप्रियता काफी घट चुकी. कीव इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशियोलॉजी के सर्वे में यह बात मानी गई. इस साल के मध्य में यह कम होते हुए 59 प्रतिशत रह गई, जबकि शुरुआत में यह 80 फीसदी से ऊपर थी. मौतें, स्थाई-अस्थाई विस्थापन और महंगाई जैसी वजहों को लेकर यूक्रेनी आबादी अपने नेता से नाराज है. यूक्रेन में युद्ध के बीच इंफ्रास्ट्रक्चर भी काफी कुछ खत्म हो चुका. ऐसे में जो आबादी है भी, वो भी मुश्किल में गुजारा कर रहा है. ये तमाम कारण मिलकर जेलेंस्की को कम लोकप्रिय बना चुके.
इस बीच यूक्रेन में चुनाव की मांग भी उठ रही है. असल में अगर रूस ने फरवरी 2022 में कीव पर अटैक न किया होता तो इस देश में साल 2024 में ही चुनाव हो चुका होता. लेकिन जंग के बीच जेलेंस्की ने यहां मार्शल लॉ लगा दिया. इसके मुताबिक, लड़ाई के दौरान नेशनल इलेक्शन नहीं हो सकते. लेकिन अब राष्ट्रपति के दाएं हाथ ने करप्शन के आरोप में इस्तीफा दे दिया. चूंकि दोनों बेहद करीब थे, लिहाजा ये भी हो सकता है कि इस बदलाव का सीधा असर पॉलिटिकल लीडरशिप पर दिखे.

यरमक के बाद ज़ेलेंस्की की स्थिति थोड़ी कमजोर हो सकती है, क्योंकि यरमक न सिर्फ उनके सबसे भरोसेमंद सलाहकार थे, बल्कि युद्ध और कूटनीति, दोनों मोर्चों पर सरकार की रणनीति तय करने में उनकी भूमिका बड़ी थी. उनके हटने के बाद देश में अस्थिरता आ सकती है, क्योंकि युद्ध के बीच टीम बदलना हमेशा जोखिम भरा होता है. इससे सरकार के आंतरिक तालमेल पर असर पड़ेगा और विरोधी राजनीतिक गुट चुनाव की बात जोरशोर से उठाने लगेंगे.
रूस के खिलाफ युद्ध पर भी इसका असर पड़ सकता है. यरमक शांतिवार्ता और युद्ध-कूटनीति दोनों में लगातार सक्रिय थे, इसलिए उनके हटने से रणनीति में अचानक बदलाव आएगा. रूस इस राजनीतिक उथल-पुथल को यूक्रेन की कमजोरी की तरह पेश करने की कोशिश कर सकता है, और युद्ध के मैदान में दबाव बढ़ा सकता है.
वैसे भी यरमक के बाद से जेलेंस्की के इस्तीफे के कयास लग रहे हैं. माना जा रहा है कि घरेलू और इंटरनेशनल दबाव बढ़ता रहे तो अगला कदम यही हो सकता है. या फिर अस्थाई सीजफायर के बीच चुनाव हो सकता है, जिसके बाद रूस-यूक्रेन युद्ध को चलाए रखने के लिए बड़ी ताकत लगभग खत्म हो जाएगी.