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गाय-भैंसों का ही 'धन' है घी... जानें- 30 साल तक चली अदालती लड़ाई पर क्या आया फैसला

30 साल पहले जारी हुए आंध्र प्रदेश सरकार के एक नोटिफिकेशन पर बवाल छिड़ा. इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. फिर मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा. नोटिफिकेशन 'घी' को लेकर था. क्या था वो नोटिफिकेशन? अदालतों में क्या बहस हुई? समझिए...

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सुप्रीम कोर्ट ने घी को पशुधन का उत्पाद माना है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
सुप्रीम कोर्ट ने घी को पशुधन का उत्पाद माना है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

सुप्रीम कोर्ट ने 'घी' को पशुधन यानी गाय-भैंस का ही उत्पाद माना है. सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने कहा कि 'घी' दूध से बनता है, जो पशुधन का उत्पाद है.

दरअसल, ये पूरा मामला आंध्र प्रदेश सरकार के 30 साल पहले आए एक नोटिफिकेशन से शुरू हुआ था. तब आंध्र सरकार ने घी को पशुधन का उत्पाद बताते हुए इसे रेगुलेट कर दिया था. सरकार के इस आदेश को संगम मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी ने हाईकोर्ट में भी चुनौती दी गई. बाद में ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. अब सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र सरकार के उस नोटिफिकेशन को सही ठहराया है.

विवाद की जड़...

1994 में आंध्र प्रदेश सरकार ने एक नोटिफिकेशन जारी किया. इसमें 'घी' को पशुधन का उत्पाद बताते हुए बाजार में इसकी खरीद-बिक्री को रेगुलेट कर दिया गया. इससे मार्केट कमिटियों को घी की खरीद-बिक्री पर ड्यूटी लगाने का अधिकार मिल गया.

सरकार के इस नोटिफिकेशन को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. इसके लिए दो तर्क दिए गए. पहला- घी पशुधन का उत्पाद नहीं है, इसलिए इसे न तो रेगुलेट किया जा सकता है और न ही नोटिफाइड. दूसरा- नोटिफिकेश जारी करते समय निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया.

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हाईकोर्ट ने दिया ये फैसला

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकारी नोटिफिकेशन को बरकरार रखा. कोर्ट ने कहा कि सभी पशुपालन उत्पाद आंध्र प्रदेश (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस एंड लाइवस्टॉक) मार्केट एक्ट 1966 के तहत आते हैं. 

हाईकोर्ट ने कहा कि पशुधन उत्पाद के रूप में 'घी' को शामिल करने को सिर्फ इसलिए गलत नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि ये किसी दूसरे डेयरी प्रोडक्ट से बना है.

कोर्ट ने ये भी माना कि 1994 के नोटिफिकेशन के ड्राफ्ट को पहले पब्लिकेशन की जरूरत भी नहीं थी, क्योंकि ये कानून की धारा 3 के तहत जारी किया गया था, न कि धारा 4 के तहत.

फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला

हाईकोर्ट से राहत नहीं मिलने के बाद मिल्क प्रोड्यूसर्स कंपनी लिमिटेड सुप्रीम कोर्ट पहुंची. सुप्रीम कोर्ट के सामने भी यही दो सवाल उठाए गए. पहला तो यही कि 1966 के कानून के तहत घी पशुधन उत्पाद माना जाए या नहीं? और दूसरा- नोटिफिकेशन जारी करते समय तय प्रक्रिया का पालन किया गया या नहीं?

पहले सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस तर्क पर सहमति जताई कि भले ही 'घी' एक प्रक्रिया से गुजरकर 'दूध' से बनता है, फिर भी ये पशुधन का उत्पाद है और 'मार्केट फी' लगाई जा सकती है.

वहीं, दूसरे मसले पर भी सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को ही बरकरार रखा. सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि 1994 का नोटिफिकेशन 1966 के कानून की धारा 3 के तहत जारी किया गया था.

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सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस एसवीएन भाटी की बेंच ने कहा, ये तर्क कि 'घी' पशुधन का उत्पाद नहीं है, निराधार है. पशुधन को आंध्र प्रदेश के 1966 के कानून की धारा 2(v) में परिभाषित किया गया है, जहां गाय और भैंसें पशुधन हैं. निर्विवाद रूप से 'घी' दूध से बना उत्पाद है, जो पशुधन का ही उत्पाद है.

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