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नए साल पर किए वादे क्यों टिकाऊ नहीं होते, क्या है जनवरी के दूसरे शुक्रवार यानी क्विटर्स डे का मनोविज्ञान?

बीतते साल के आखिर में सबसे ज्यादा वादे होते हैं, जो नए साल से जुड़े होते हैं. रिपोर्ट्स कहती हैं कि दुनियाभर में औसतन 40 प्रतिशत लोग न्यू ईयर रिजॉल्यूशन लेते हैं. ये बात अलग है कि जनवरी खत्म होते न होते ज्यादातर वादे या संकल्प टूट जाते हैं. तो क्या नए साल के वादों को लेकर सबसे ज्यादा कैजुअल होते हैं लोग?

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सबसे लंबा चलने वाला न्यू ईयर रिजॉल्यूशन ज्यादा से ज्यादा तीन से चार महीने तक टिकता है. (Photo- Pixabay)
सबसे लंबा चलने वाला न्यू ईयर रिजॉल्यूशन ज्यादा से ज्यादा तीन से चार महीने तक टिकता है. (Photo- Pixabay)

एक और साल खत्म होने जा रहा है. दिसंबर 2025 की आखिरी रात केवल जश्न की रात नहीं होगी, बल्कि इस वक्त काफी सारे वादे भी लिए जाएंगे. न्यू ईयर रिजॉल्यूशन! दुनिया की करीब-करीब आधी आबादी नए साल पर खुद से अलग-अलग वादे करती है. कोई सेहत बनाने की सोचता है तो कोई करियर या परिवार. हालांकि जितनी तेजी से ये प्रॉमिस होते हैं, उतनी ही जल्दी टूट भी जाते हैं. समझें, क्या है न्यू ईयर रिजॉल्यूशन के पीछे का मनोविज्ञान, जो इसे इतना कमजोर बना देता है.

प्यू रिसर्च सेंटर की साल 2024 की स्टडी के अनुसार, लगभग 30% अमेरिकी वयस्क हर नए साल पर कोई न कोई संकल्प लेते हैं. 18 से 29 साल की उम्र के लगभग 49% ने रिजॉल्यूशन लिया. जबकि 50 पार के 21% लोगों ने खुद से वादा किया. इसका मतलब यह है कि अमेरिका में 3 में 1 शख्स नए साल पर संकल्प लेता है. यूरोप से लेकर एशिया और अफ्रीका में भी काफी लोग नए साल पर कुछ न कुछ प्रॉमिस करते हैं. 

ये सेल्फ गोल होता है. मसलन, सबसे ज्यादा वादे अपनी सेहत से जुड़े होते हैं कि हम कसरत करेंगे, खाना सही खाएंगे और किसी स्पोर्ट का हिस्सा बनेंगे. फोर्ब्स हेल्थ के मुताबिक, लगभग 48% लोग फिटनेस पर फोकस करते हैं. पैसों से जुड़े गोल भी आम हैं, जैसे बचत बढ़ाना, खर्च कम करना या कर्ज चुकाना. आजकल नई हॉबी बनाने या सोलो ट्रैवल जैसी बातों पर भी जोर दिया जा रहा है. वहीं कुछ प्रतिशत लोग परिवार या रिश्तों को सुधारने का वादा खुद से करते हैं.

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new year resolution health (Photo- Pixabay)

बीतते साल का आखिर और नए साल की शुरुआत यानी ट्रांजिशन ही वो वक्त है, जिसमें पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा गोल तय होते हैं और वादे किए जाते हैं. लेकिन ये वादे आमतौर पर काफी जल्दी टूट जाते हैं. 

फोर्ब्स हेल्थ और वनपोल के सर्वे कहते हैं कि औसतन एक न्यू ईयर रिजॉल्यूशन लगभग 3 से 4 महीने रहता है. इसमें भी केवल 13 प्रतिशत लोग इतने दिन टिक पाते हैं, जबकि ज्यादातर लोग महीनेभर बाद ही वादे तोड़ देते हैं.

डेटा में यह भी बताया गया कि बहुत से लोग अपने संकल्प को जनवरी के दूसरे शुक्रवार को ही छोड़ देते हैं. ये दिन कितना कॉमन है इसका अंदाजा इसी बात से लगा लें कि इसे क्विटर्स डे भी कहा जाने लगा. डेटा और ऐप-बेस्ड ट्रैकिंग से पता चलता है कि जनवरी के पहले हफ्ते लोग एक्टिव रहते हैं लेकिन दूसरे हफ्ते से काफी लोग पुरानी आदत में चले जाते हैं. इस ट्रेंड को साल 2019 में देखा गया. तब से यह जनवरी का दूसरा शुक्रवार इसी नाम से जाना जाने लगा. 

new year resolution health (Photo- Pixabay)

क्यों रिजॉल्यूशन्स इतनी जल्दी टूट जाते हैं 
- ज्यादातर टारगेट काफी ढीले-ढाले या धुंधले होते हैं जैसे हेल्दी रहना या वजन कम करना. इनमें कोई स्पष्टता नहीं कि हेल्दी रहने के क्या मायने हैं, या वजन कब तक और कितना कम करना है. 
- टारगेट तो तय हो जाता है लेकिन उसपर काम कैसे करना है, ये तय नहीं किया जाता. इससे सब कुछ शुरू में ही ठप पड़ जाता है. 
- नई आदत बनना बड़ी चुनौती है. शोध में बताया गया है कि अपनी कोई आदत बदलने के लिए लगभग 66 दिन लगता है. अगर ये वक्त तय नहीं हो सके तो  रिजॉल्यूशन जल्दी टूट जाता है. 

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अध्ययन बताते हैं कि निगेटिव वादे यानी अवॉयडेंस बेस्ड रिजॉल्यूशन जल्दी टूटते हैं, बनिस्बत पॉजिटिव वादों के. निगेटिव वादे वो हैं, जहां आपके गोल किसी काम को न करने पर टिके हुए हैं, मसलन मैं चीनी नहीं खाऊंगा. इससे उलट ये कहा जा सकता है कि मैं मीठे में फल ही खाऊंगा. 

जर्नल ऑफ क्लिनिकल साइकोलॉजी में साल 2020-2021 के अध्ययन में पाया गया कि पॉजिटिव वादे रखने वाले लोगों की सफलता की संभावना लगभग दोगुनी रही. वहीं अवॉयडेंस बेस्ड गोल या निगेटिव वादे जल्दी टूट गए.

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