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विदेशों से मिला कितनी कीमत का गिफ्ट भारतीय पीएम रख सकते हैं, क्या तोहफों को रिजेक्ट भी किया जा सकता है? जानिए नियम

अमेरिकी दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां के राष्ट्रपति जो बाइडेन और फर्स्ट लेडी को कई तोहफे दिए, जिनकी खूब चर्चा है. खुद बाइडेन ने पीएम मोदी को बहुत से उपहार दिए, जिसमें अमेरिकी विंटेज कैमरा भी शामिल है. लेकिन तोहफा चाहे कितना ही खूबसूरत हो, क्या ये दोनों ही लीडर उन्हें अपने पास रख सकेंगे? जानिए, क्या कहता है गिफ्ट डिप्लोमेसी का नियम.

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पीएम नरेंद्र मोदी अमेरिका की राजकीय यात्रा पर हैं. सांकेतिक फोटो (AFP)
पीएम नरेंद्र मोदी अमेरिका की राजकीय यात्रा पर हैं. सांकेतिक फोटो (AFP)

पीएम मोदी अपनी स्टेट विजिट के दौरान व्हाइट हाउस भी पहुंचे. राजकीय भोज से पहले उनके और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच तोहफों का लेन-देन हुआ. एक से बढ़कर एक ये गिफ्ट्स सुर्खियों में हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि पसंद आने पर भी ये तोहफे अपने पास रखे जा सकें. कम से कम गिफ्ट डिप्लोमेसी का कायदा तो यही बताता है. 

क्या है गिफ्ट डिप्लोमेसी?

दो देशों के बीच तोहफों का लेन-देन काफी पुराना है. ये उनके बीच की दोस्ती का प्रतीक है. पहले देशों के बीच गिफ्ट्स देना या स्वीकार करना वर्जित था. माना जाता था कि इससे गिफ्ट लेने वाले को हरदम देने वाले से दबकर रहना होता है, खासकर अगर गिफ्ट काफी कीमती हो. आगे चलकर डिप्लोमेटिक गिफ्ट के मायने बदले. सभी देश मानने लगे कि तोहफों के लेनदेन से रिश्ते मजबूत होते हैं. ब्रिटिश रूल के दौरान गिफ्ट डिप्लोमेसी काफी मजबूत हो गई. 

क्यों बरतनी पड़ती है सावधानी?

कई बार तोहफा दिया तो अच्छे इरादे से जाता है, लेकिन लेने वाले को वो पसंद नहीं आता. निजी रिश्तों में इससे खास फर्क नहीं पड़ता, लेकिन देशों के बीच गलत तोहफा, गलत संदेश देता है. अगर दो देशों के बीच पहले से तनाव चला आ रहा हो तब इससे और दूरी आ सकती है. 

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 चीन ने ताइवान को पांडा का जोड़ा गिफ्ट करना चाहा था. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

ऐसा ही कुछ चीन और ताइवान के बीच हुआ. साल 2008 में चीन ने ताइवान को पांडा का एक जोड़ा गिफ्ट करना चाहा. चीनी भाषा में इनके नाम का मतलब था- एकता. हालांकि ताइवानियों को ये बात एकदम पसंद नहीं आई. उन्होंने इस गिफ्ट को रिजेक्ट कर दिया. इसी तरह साल 2012 में अमेरिकी राष्ट्रपति को ब्रिटिश टेबल टेनिस दी गई. बाद में पता लगा कि ये मेड-इन-चाइना थी. जाहिर है, कि गिफ्ट की अहमियत तुरंत कम हो गई. 

मंगोलिया में घोड़ा लेने से किया इनकार

पीएम मोदी भी मंगोलिया विजिट के दौरान एक तोहफा लेने से मना कर चुके हैं. साल 2015 में इस देश ने उन्हें गिफ्ट बतौर मंगोलियाई घोड़ा दिया था. हालांकि पीएम ये नहीं ले सके क्योंकि भारतीय मिनिस्ट्री ऑफ एनवायरमेंट एंड फॉरेस्ट के मुताबिक डिप्लोमेटिक गिफ्ट देते हुए पशुओं का लेनदेन नहीं हो सकता. 

कौन चुनता है तोहफे?

अमेरिका की बात करें तो यहां ऑफिस ऑफ प्रोटोकॉल है, जो सोचता है कि किसी विदेशी लीडर को क्या दिया जा सकता है. यही लोग तय करते हैं कि अमेरिका, किस देश के किस नेता को क्या देगा. बाद में इस लिस्ट को प्रेसिडेंट और फर्स्ट लेडी देखते हैं. कई बार वे चुने हुए तोहफों को रोककर कुछ नया भी सजेक्ट कर सकते हैं. 

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पीएम मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और फर्स्ट लेडी जिल बाइडेन के साथ. फोटो (Twitter)

हमारे यहां कौन चुनता है गिफ्ट?

भारत में तोहफे चुनने का काम साल 2005 से फॉरेन ऑफिस की गिफ्ट कमेटी कर रही थी. इससे पहले ये जिम्मा मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स के अधिकारियों का था. हाल में पीएम की स्टेट विजिट के लिए तोहफे किसने सोचे, क्या इसके लिए कोई अलग कमेटी काम कर रही थी, इस बारे में कहीं कोई जिक्र नहीं है. 

अमेरिका में उपहार रखने के क्या हैं नियम?

पहले विदेशों से मिले गिफ्ट्स को अपने पास रखने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति को यूएस कांग्रेस से अनुमति लेनी होती थी. बाद में फॉरेन गिफ्ट्स एंड डिक्लेरेशन्स एक्ट 1966 आया. इसके तहत लगभग 30 हजार रुपए के तोहफे ही प्रेसिडेंट अपने पास रख सकते हैं. बाकी चीजें नेशनल आर्काइव में चली जाती हैं. 

भारत में क्या हैं नियम?

नेताओं को विदेशी दौरे से लौटने के महीनेभर के भीतर तोहफे को मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स को देना होता है. अगर गिफ्ट 5 हजार से कम कीमत का है तो वो अपने पास भी रखा जा सकता है. कीमत इससे ज्यादा हो और कोई उसे अपने पास रखना चाहे तो उसे सरकार से इसे असल मूल्य पर खरीदना होता है. ये नियम लगभग हर देश में है. ऐसा इसलिए है कि कोई भी देश किसी व्यक्ति को गिफ्ट नहीं देता, बल्कि उसके ओहदे को देता है. तो ये तोहफे असल में देश के होते हैं, यही वजह है कि उन्हें जमा कराने का नियम बना.

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डिप्लोमेटिक गिफ्ट्स बहुत सावधानी से चुना जाता है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

इसके बाद क्या होता है तोहफों का?

हर तोहफे के डिक्लेरेशन के बाद भारतीय बाजार में अलग से उसकी कीमत तय की जाती है, जिसके बाद पूरी डिटेलिंग करके आइटम को ट्रेजर हाउस का हिस्सा बनाया जाता है. आगे उनका क्या करना है, ये मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स तय करता है. 

अगर किसी देश से कोई जानवर जैसे पांडा या चीता मिले तो उसे चिड़ियाघर भेज दिया जाता है. अगर कोई पेंटिंग या मूर्ति हो तो वो नेशनल म्यूजियम को दी जा सकती है. कई सामान प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास पर डिस्प्ले में रखे जाते हैं तो कई ज्यादा कीमती सामान सहेजकर रखे जाते हैं. समय-समय पर इनकी नीलामी भी होती रहती है. लगभग यही नियम थोड़े-बहुत बदलाव के साथ हर देश में है. 

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