लगभग तीन साल पहले यूक्रेन ने कुछ ऐसा किया, जिससे सारी दुनिया हैरान रह गई. उसने राजधानी कीव के उत्तर में बहने वाली एक नदी पर बने अपने ही एक बांध को ब्लास्ट करके उड़ा दिया. देखते ही देखते सैकड़ों गांव पानी में डूब गए. लेकिन यूक्रेन ने ऐसा यूं ही नहीं किया था. वो अपनी सीमाओं पर दलदली जमीन तैयार कर रहा था ताकि रूस की सेना उसे लांघकर भीतर न आ सके. ये पीटलैंड डिफेंस सिस्टम है.
अब यूक्रेन के बाद पोलैंड और फिनलैंड भी यही करने जा रहे हैं. दरअसल दोनों के बॉर्डर रूस से लगे हुए हैं. फिनलैंड की तो रूस से काफी लंबी जमीनी सीमा है, लगभग डेढ़ हजार किलोमीटर. इसे लेकर वो काफी डरा हुआ है कि कहीं यूक्रेन के बाद उसपर हमला न हो जाए. यही वजह है कि देश पीटलैंड डिफेंस सिस्टम पर जोर दे रहे हैं.
पीटलैंड डिफेंस सिस्टम कोई सैन्य या आधुनिक तकनीकी रक्षा प्रणाली नहीं, बल्कि कुदरती डिफेंस मेकेनिज्म है, जो सदियों से काम करता रहा. ये वास्तव में दलदली जमीन होती है, जिनमें जमीन में पानी और उसमें पलने वाले पौधे होते हैं. यूरोप और रूस के उत्तरी इलाकों में ये जमीन कुदरती तौर पर मौजूद है.
सदियों पहले से ये सिस्टम रक्षात्मक कवच बना रहा, खासकर जमीनी लड़ाई में. सैन्य दस्ता, हाथी-घोड़े इस जगह को पार नहीं कर पाते. इससे उनकी चाल कमजोर पड़ जाती. भारत में भी राजा-महाराजा अपने किलों के चारों तरफ जमीन को दलदली बना लिया करते ताकि उन तक पहुंचना मुश्किल हो जाए.

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान पीटलैंड ने कई जगहों पर अड़ंगा लगाया. यूरोप के उत्तरी और पूर्वी हिस्सों, खासकर फिनलैंड, पोलैंड और सोवियत संघ (अब रूस) में फैले ये गीले, कीचड़-भरे इलाके सैनिकों के लिए बुरे सपने की तरह साबित हुए.
जब जर्मनी ने साल 1941 में ऑपरेशन बारबरोसा के तहत सोवियत पर हमला किया, तब उसकी सेनाओं को बेलारूस और उत्तर-पश्चिमी रूस के दलदलों से होकर गुजरना पड़ा. वहां के पीटलैंड इतने गहरे और अस्थिर थे कि भारी टैंक और तोपखाने की गाड़ियां बार-बार धंस जाती थीं. जर्मन सैनिकों को कई किलोमीटर तक पैदल कीचड़ में चलना पड़ा. कई रास्ते में जख्मी हो गए. रसद पहुंचने में मुश्किल आने लगी. कुल मिलाकर, सारा मामला दलदली जमीन के चलते बिगड़ने लगा.
पीटलैंड असल में कुदरती तरीके से बनते हैं, लेकिन अब वैज्ञानिक इन्हें कृत्रिम तरीके से बनाने की कोशिश कर रहे हैं. पूरी तरह नया पीटलैंड बनाना बहुत मुश्किल है, क्योंकि इसमें हजारों साल लगते हैं. पौधों के सड़ने, पानी में दबे रहने और ऑक्सीजन की कमी से धीरे-धीरे पीट बनता है.
लेकिन कई देशों ने पीटलैंड रीस्टोरेशन प्रोजेक्ट शुरू कर दिए, मतलब पुराने या सूख चुके दलदली इलाकों को फिर से नम बनाना. जर्मनी, फिनलैंड, स्कॉटलैंड और इंडोनेशिया जैसे देशों इसपर काम चल रहा है. वे पानी रोकने के लिए छोटे-छोटे बांध बनाते हैं, मिट्टी में नमी बनाए रखते हैं और ऐसे पौधे उगाते हैं जो पीटलैंड में पनपते हैं. इन प्रोजेक्ट्स का मकसद कार्बन को जमीन में कैद रखना है ताकि जमीन दोबारा दलदली हो सके.

पीटलैंड पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है. यह ऐसी दलदली जमीन होती है, जहां पौधे सड़कर मिट्टी में मिल जाते हैं और पानी में डूबे रहते हैं. इस वजह से इनमें बहुत सारा कार्बन जमा हो जाता है. जब तक यह जमीन गीली रहती है, तब तक यह कार्बन हवा में नहीं जाता. इसलिए पीटलैंड धरती को गर्म होने से बचाते हैं. ये बारिश को पानी को भी अपने में समाए रखती हैं, जिससे बाढ़ या सूखे का खतरा कम होता है. यानी अगर पीटलैंड को सहेजा जाए तो न सिर्फ दुश्मनों से रक्षा हो सकती है, बल्कि ग्लोबल वार्मिंग से भी बचा जा सकता है.
यूरोप ने लंबे समय तक अपने दलदली इलाकों को सुखाया था. खासकर 18वीं और 19वीं सदी में खेती और शहर बसाने के लिए इन इलाकों का पानी निकाल दिया गया. इससे जमीन तो घर और खेती लायक बन गई, लेकिन पर्यावरण को बड़ा नुकसान हुआ. जैसे-जैसे दलदल सूखे, गर्मी बढ़ने लगी तेज हुआ. फिनलैंड और पोलैंड भी ऐसे देशों में शामिल थे. लेकिन अब वे इसकी रीवेटिंग करने की कोशिश में हैं.
क्या कर रहे यूरोपीय देश
फिनलैंड में पूर्वी सीमा पर ऐसे इलाके खोजे जा रहे हैं, जहां सूखी जमीन में दोबारा पीटलैंड बनने की ताकत हो. पोलैंड भी बेलारूस और रूस की सीमा से लगी अपनी पूर्वी सीमा को मजबूत करना चाहता है. दोनों ने ही अपने-अपने लक्ष्य तय कर रखे हैं कि इतने सालों के भीतर वे इतनी बड़ी दलदली जमीन रीवेट कर सकेंगे.