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वोटिंग के आंकड़े से जुड़ा फॉर्म 17C, जिस पर हो रहा बवाल... जानें- चुनाव आयोग क्यों इसे पब्लिक नहीं करना चाहता

कई राजनीतिक पार्टियों वोटिंग प्रतिशत में गड़बड़ी होने का आरोप लगा रहीं हैं. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी एडीआर ने याचिका दायर की थी, जिसमें मांग की थी कि कोर्ट चुनाव आयोग को फॉर्म 17C सार्वजनिक करने का आदेश दे. वहीं, चुनाव आयोग ने इस याचिका का विरोध किया है और 225 पन्नों का हलफनामा दायर किया है.

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फॉर्म 17C में वोटिंग का डेटा होता है. (सांकेतिक फोटो)
फॉर्म 17C में वोटिंग का डेटा होता है. (सांकेतिक फोटो)

लोकसभा चुनावों के बीच वोटिंग के आंकड़ों में गड़बड़ी के आरोप लग रहे हैं. कई राजनीतिक पार्टियों का दावा है कि चुनाव वाले दिन वोटिंग प्रतिशत कुछ और होता है और एक हफ्ते बाद कुछ और. सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका दायर हुई. मांग की गई कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग को वेबसाइट पर फॉर्म 17C की स्कैन्ड कॉपी अपलोड करने का आदेश दे.

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका का विरोध किया है. साथ ही आयोग ने ये भी कहा कि अगर फॉर्म 17C की कॉपी अपलोड की जाती है तो इससे अफरा-तफरी हो सकती है. साथ ही ये भी तर्क दिया कि वेबसाइट पर कॉपी अपलोड होने के बाद इसकी तस्वीरों से छेड़छाड़ की जा सकती है, जिससे आम जनता का चुनावी प्रक्रिया से भरोसा उठ सकता है.

सुप्रीम कोर्ट में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने याचिका दायर की थी. इसमें वोटिंग प्रतिशत के आंकड़ों में हेरफेर होने का आरोप लगाया गया था. एडीआर ने अपनी याचिका में कहा था कि चुनाव आयोग ने वोटिंग प्रतिशत का डेटा कई दिनों बाद जारी किया. 19 अप्रैल को हुए पहले चरण के चुनाव का डेटा 11 दिन बाद और 26 अप्रैल को हुए दूसरे चरण के चुनाव का डेटा 4 दिन बाद आया था. इतना ही नहीं, शुरुआती डेटा और फाइनल डेटा में 5% का अंतर होने का दावा भी किया गया है.

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एडीआर ने मांग की थी कि वोटिंग खत्म होने के 48 घंटे के भीतर चुनाव आयोग अपनी वेबसाइट पर फॉर्म 17C की स्कैन्ड कॉपी अपलोड करे. 17 मई को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने चुनाव आयोग से कहा था कि वो बताए कि फॉर्म 17C का डेटा डिसक्लोज क्यों नहीं किया जा सकता? इसी पर चुनाव आयोग ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट मे 225 पन्नों का हलफनामा दायर किया है. इस मामले पर 24 मई को सुनवाई होगी.

चुनाव आयोग ने क्या कहा?

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में एडीआर की याचिका का विरोध किया है. चुनाव आयोग ने कहा कि अगर फॉर्म 17C अपलोड किया जाता है, तो इससे चुनावी मशीनरी में अफरा-तफरी पैदा हो सकती है. 

चुनाव आयोग ने कहा कि कानूनन फॉर्म 17C की कॉपी पोलिंग एजेंट को दे सकते हैं, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता. फॉर्म 17C की ओरिजिनल कॉपी स्ट्रॉन्ग रूम में होती है और इसकी एक कॉपी पोलिंग एजेंट को दी जाती है.

चुनाव आयोग ने वोटिंग प्रतिशत के आंकड़ों में अंतर के आरोपों को भी खारिज कर दिया. आयोग ने कहा कि वोटर टर्नआउट डेटा में गड़बड़ी का आरोप भ्रामक, झूठा और संदेह पर आधारित है.

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पर ये फॉर्म 17C क्या है?

कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स 1961 के अनुसार, दो तरह के फॉर्म होते हैं, जिनमें वोटरों का डेटा होता है. एक होता है फॉर्म 17A और दूसरा होता है फॉर्म 17C. 

फॉर्म 17A में पोलिंग ऑफिसर वोट डालने आने वाले हरेक वोटर की डिटेल दर्ज करता है. जबकि, फॉर्म 17C में वोटर टर्नआउट का डेटा दर्ज किया जाता है. फॉर्म 17C को वोटिंग खत्म होने के बाद भरा जाता है. इसकी एक कॉपी हर उम्मीदवार के पोलिंग एजेंट को भी दी जाती है. 

फॉर्म 17C में एक बूथ पर कुल रजिस्टर्ड वोटर्स और वोट देने वाले वोटर्स का डेटा होता है. इसी से पता चलता है कि पोलिंग बूथ पर कितने प्रतिशत वोटिंग हुई. ये डेटा चुनाव आयोग की वोटर टर्नआउट ऐप पर नहीं होता है.

फॉर्म 17C के दो भाग होते हैं. पहले भाग में तो वोटर टर्नआउट का डेटा भरा जाता है. जबकि, दूसरे भाग में काउंटिंग के दिन रिजल्ट भरा जाता है.

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क्यों जरूरी है ये?

कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स 1961 के नियम 49S के मुताबिक, हर बूथ के पोलिंग ऑफिसर की ये जिम्मेदारी है कि वो EVM में पड़े हर वोट का रिकॉर्ड रखे. 

हर उम्मीदवार का पोलिंग एजेंट इसे मांग सकता है. और पोलिंग ऑफिसर फॉर्म 17C की एक कॉपी पोलिंग एजेंट से दस्तखत लेकर देता है. माना जाता है कि चुनाव के दौरान धांधली और EVM से छेड़छाड़ रोकने के लिए फॉर्म 17C जरूरी होता है.

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वोटिंग प्रतिशत पर सवाल क्यों उठे?

वोटिंग प्रतिशत पर सवाल इसलिए उठने शुरू हुए, क्योंकि इस बार चुनाव आयोग ने पहले चरण की वोटिंग प्रतिशत का फाइनल डेटा 11 दिन और दूसरे, तीसरे और चौथे चरण का चार दिन बाद जारी किया.

19 अप्रैल को पहले चरण की वोटिंग वाले दिन शाम 7.55 बजे चुनाव आयोग ने प्रेस रिलीज जारी कर बताया कि शाम 7 बजे तक 102 सीटों पर 60% से ज्यादा वोटिंग हुई. 26 अप्रैल को दूसरे चरण की वोटिंग वाले दिन रात 9 बजे चुनाव आयोग ने प्रेस रिलीज जारी की. इसमें बताया कि दूसरे चरण में 60.96% वोटिंग हुई.

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इसके बाद 30 अप्रैल को चुनाव आयोग ने पहले चरण और दूसरे चरण के वोटिंग प्रतिशत का फाइनल डेटा जारी किया. इसमें बताया कि पहले चरण में 66.14% और दूसरे चरण में 66.71% वोटिंग हुई.

कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों ने वोटिंग प्रतिशत के डेटा में इस अंतर पर सवाल उठाए थे. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान भी जब ये सवाल उठा तो चुनाव आयोग ने कहा कि डेटा को सभी स्तर पर जांचने की जरूरत होती है. इसमें समय लगता है. 

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