हाल में ईरान फिर गलत वजहों से चर्चा में रहा. यहां एक मैराथन में महिलाएं बिना हिजाब पहुंच गईं. आयोजन की तस्वीरें वायरल होने के बाद आलोचना होने लगी कि प्रशासन ड्रेस कोड का पालन नहीं करवा पा रहा. आनन-फानन दो आयोजक गिरफ्तार कर लिए गए. हिजाब पर हां-ना को लेकर यहां पहले भी विवाद होता रहा. वहीं मिडिल ईस्ट के अधिकतर देश महिलाओं को लेकर उतने सख्त नहीं.
5 दिसंबर को ईरान में एक मैराथन का आयोजन हुआ, जिसमें हजारों लोग शामिल हुए. यहां तक सब ठीक था, लेकिन जैसे ही प्रोग्राम की तस्वीरें छपीं, बवाल मच गया. कई महिलाएं बगैर हिजाब दिख रही थीं. इसे देखकर आरोप लगने लगा कि ईरानी प्रशासन अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं कर पा रहा और महिलाएं पश्चिमी सभ्यता अपना रही हैं. महिलाओं पर तो नहीं, लेकिन एडमिनिस्ट्रेशन ने आयोजकों को अरेस्ट कर लिया.
साल 1979 में हुए इस्लामिक रिवॉल्यूशन के बाद महिलाओं के लिए सार्वजनिक जगहों पर हिजाब पहनना अनिवार्य हो गया. इससे पहले शिया बहुल होने के बावजूद उदारवादी देश था. यहां के लीडर शाह मोहम्मद रजा पहलवी खुद को अमेरिका के ज्यादा करीब पाते थे. नतीजा ये रहा कि देश में भी पश्चिमी असर दिखने लगा. महिलाओं के लिए कोई ड्रेस कोड नहीं था, न ही उनके घूमने-फिरने पर पाबंदी थी.
उस दौर की कई तस्वीरें दिखती हैं, जहां महिलाएं किसी भी वेस्टर्न देश की तरह पार्टियां करती और हंसती-खेलती मिलेंगी. वे पढ़ाई और नौकरी में भी आगे थीं. सिनेमा, थिएटर और स्त्री-पुरुष सह शिक्षा के मौके आम थे.

यह आधुनिकता एक बड़े धार्मिक वर्ग को असहज कर रही थी. उन्हें लगा कि शाह पश्चिम की कठपुतली बन चुके और इस्लामी मूल्य खत्म हो रहे हैं. उन्होंने लामबंदी करते हुए तख्तापलट कर लिया और अयातुल्ला खोमैनी की लीडरशिप में ऐसा शासन आ गया, जो धार्मिक नेता को सबकुछ सौंपता था. यानी देश की राजनीति, कानून, संस्कृति और सामाजिक जीवन सीधे धार्मिक कानून से चलने लगे.
वैसे तो इस्लामिक क्रांति के तुरंत बाद ही हिजाब पहनने की जबर्दस्ती होने लगी, लेकिन अप्रैल 1983 में इसपर नियम ही आ गया. यहां तक कि गैरमुस्लिम और ईरान घूमने आई विदेशी महिलाओं के लिए भी हिजाब अनिवार्य था.
ईरान में मोरेलिटी पुलिस बना दी गई- गश्त-ए-इरशाद. इसका काम घूम-घूमकर औरतों पर निगरानी रखना था कि वे कोई नियम तो नहीं तोड़ रहीं. यहां तक कि कथित गलत तरीके से पहने हुए हिजाब की वजह से भी महिलाओं को सजा मिलने लगी.
हिजाब कानूनों के ही कारण साल 2022 में ईरान में प्रदर्शन हुए थे. महसा अमीनी नाम की युवती की हिरासत में हुई मौत ने महिलाओं में गुस्सा भड़का दिया था. विरोध दिखाने के लिए कई महिलाओं ने हिजाब जला दिए थे.

ड्रेस कोड के अलावा भी ईरान में कई नियम हैं
- अकेली महिलाएं एक निश्चित दूरी से ज्यादा की यात्रा नहीं कर सकतीं. यहां तक कि पासपोर्ट बनवाने के लिए भी उन्हें पिता या पति की मंजूरी चाहिए होती है.
- वे परिवार के पुरुषों की इजाजत के बगैर नौकरी नहीं कर सकतीं. एम्प्लॉयर खुद तसल्ली करता है कि महिला पर्मिशन के साथ आए.
- खेल से लेकर सार्वजनिक मौकों पर भी महिलाओं के लिए वक्त-वक्त पर नए नियम आते रहते हैं. हर नियम पहले से ज्यादा कसा हुआ.
- ईरानी कानून में लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र 13 साल है, लेकिन कोर्ट और पेरेंट्स की इजाजत से इससे कम उम्र, यानी 9–12 साल में भी शादी हो सकती है.
- महिलाओं के लिए तलाक लेना बेहद मुश्किल है. वहीं पुरुषों के लिए ये प्रोसेस काफी आसान है. बच्चों की कस्टडी भी पिता या पिता के परिवार के पक्ष में जाती है.
- विरासत के नियम भी गैर-बराबरी के हैं. अक्सर पुरुष को महिला की तुलना में दोगुना हिस्सा मिलता है. कई बार महिलाएं खाली ही रह जाती हैं.
- कोर्ट में महिला की गवाही आधी वैल्यू रखती है, यानी दो महिलाओं की गवाही एक पुरुष के बराबर मानी जाती है.
- महिलाओं के लिए डांस, खुले में गाना गाना, पुरुषों के साथ सार्वजनिक रूप से मेलजोल, इन सब पर कानूनी पाबंदियां हैं.
- सोशल मीडिया पोस्ट भी अगर अनैतिक साबित कर दी जाए, जैसे कोई ऐसी बात करना, जो वहां के मूल्यों से अलग है, तब भी जुर्माना या गिरफ्तारी हो सकती है.
ईरान की तुलना में मिडिल-ईस्ट के ज्यादातर मुस्लिम देश ज्यादा उदार दिखते हैं, फिर चाहे ईरान की बात हो, सऊदी अरब की या फिर तुर्की या कतर की. यहां तक कि सीरिया भी महिलाओं के लिए वैसी कड़ाई नहीं रखता. इसकी कई वजहें हैं.

ईरान में धार्मिक शासन है, बाकी देशों में नहीं. यहां थियोक्रेसी है, यानी देश चलाने का आखिरी अधिकार धार्मिक नेता के पास होता है. सऊदी अरब, यूएई, कतर, कुवैत, सभी मुस्लिम देश हैं, लेकिन वहां धर्मगुरु का कंसेप्ट वैसा सख्त नहीं. उनकी पॉलिसी लचीली है. धार्मिक कानून वहां भी हैं लेकिन देश राजनीति से चलते हैं.
साल 1979 की क्रांति ने ईरान को सीधे एक धार्मिक शासन में बदल दिया. क्रांति का आदर्श था- पश्चिमी असर हटाकर इस्लामी समाज बनाना. इसके तुरंत बाद ही सारे नियम बने. बाकी देश ऐसी किसी क्रांति से नहीं गुजरे, लिहाजा उनके बदलाव ज्यादा स्वाभाविक और दुनिया के साथ कदमताल करते हुए हैं.
एक बड़ा कारण है- ईरान पर लगी पाबंदियां. न्यूक्लियर हथियार बनाने के मुद्दे को लेकर लंबे समय से अमेरिका और ईरान के बीच तनाव है. इस बीच उस समेत यूरोप के भी बड़े हिस्से ने ईरान पर तमाम आर्थिक बैन लगा दिए. यहां तक कि उससे कूटनीतिक रिश्ते भी कमजोर कर दिए. इससे ईरान ज्यादातर मुल्कों से कट-सा गया. वो चुनिंदा देशों के साथ ही व्यापार कर पाता है. ऐसे में उसपर कोई दबाव भी नहीं कि वो दुनिया की रीत फॉलो करे, या सबकी मंजूरी लेता चले.
इससे उलट खाड़ी देश आर्थिक रूप से दुनिया पर निर्भर हैं. सऊदी, यूएई, कतर जैसे देशों की अर्थव्यवस्था तेल, बिजनेस, पर्यटन और ग्लोबल इनवेस्टमेंट पर टिकी है. उन्हें दुनिया को अपने यहां लाना पड़ता है. वहां की बड़ी आबादी दूसरे धर्मों को मानने वाली भी रही, जो स्किल्ड काम के लिए बाकायदा बुलाए जाते हैं. इन सबके चलते उन्हें सामाजिक रूप से खुला होना ही पड़ा.