अवैध तरीके से अमेरिका पहुंचे भारतीय मूल के एक ट्रक ड्राइवर की वजह से हुए सड़क हादसे में तीन मौतें हो चुकीं. बताया जा रहा है कि आरोपी नशे में धुत था. तीन साल पहले दक्षिणी अमेरिका से सीमा पार करते हुए उसे बॉर्डर पेट्रोलिंग एजेंसी ने पकड़ा भी था. लेकिन फिर बाइडेन प्रशासन ने अल्टरनेटिव्स टू डिटेंशन पॉलिसी के हवाले से उसे रिहा कर दिया. यहां तक कि दस्तावेज न होने के बावजूद ट्रक चलाने का लाइसेंस भी दे दिया गया. अब ट्रंप समर्थक आरोप लगा रहे हैं कि पुरानी नीति के चलते देश में काफी अवैध इमिग्रेंट्स आजाद घूम रहे हैं.
अल्टरनेटिव्स टू डिटेंशन पॉलिसी क्या है
अमेरिका में जो लोग बिना वैध दस्तावेजों के घुसते हैं या शरण लेने की कोशिश करते हैं उन्हें आम तौर पर डिटेंशन सेंटर में रखा जाता है. लेकिन बाइडेन प्रशासन ने एक मानवीय और कम सख्त तरीका अपनाया, जिसे कहा गया अल्टरनेटिव्स टू डिटेंशन पॉलिसी. जैसा कि नाम से पता लगता है, इसमें डिटेंशन के बजाय दूसरे विकल्पों पर जोर दिया गया. मकसद था कि जिन लोगों पर इमिग्रेशन केस चल रहा है, उन्हें जेलों में बंद करने की बजाय आजाद रखा जाए.
हालांकि इसमें कंडीशन भी थी. जैसे घुसपैठिए बाहर तो रहें लेकिन निगरानी में रहें. वे अपने घर-परिवार के साथ रह सकते थे, लेकिन स्थानीय प्रशासन और कोर्ट से लगातार संपर्क में रहना होता था.

निगरानी के कई दूसरे तरीके भी थे. मसलन कुछ लोगों को GPS ट्रैकर या एंकल मॉनिटर पहनाए जाते थे जिससे उनकी लोकेशन हर वक्त ट्रैक की जा सके. कुछ को मोबाइल या फोन कॉल से रेगुलर चेक इन करना होता था. इस तरह से पता रहता था कि फलां शख्स कहां है.
इसी पॉलिसी का एक और हिस्सा था- केस मैनेजमेंट पायलट प्रोग्राम. इसमें प्रवासियों को सरकार खुद कानूनी मदद और सलाह देती थी ताकि वे कोर्ट से डरें नहीं. इसका फोकस खास तौर पर बच्चों वाले परिवारों पर था, जिन्हें जेल में रखना ज्यादा क्रूर हो सकता है.
दरअसल बाइडेन से ठीक पहले ट्रंप का पहला कार्यकाल था. उस दौरान भी वे अवैध प्रवासियों से उखड़े हुए थे और जीरो टॉलरेंस पॉलिसी बना दी थी. जो भी व्यक्ति बिना दस्तावेजों के सीमा पार करता है, उसके खिलाफ फौरन आपराधिक मामला दर्ज होने लगा और उसे हिरासत में भेजा जाने लगा. यहीं वो चीज हुई, जिसपर ट्रंप की काफी आलोचना हुई थी.
डिटेंशन सेंटरों में परिवार अलग हो जाते थे. बड़े जेल में और बच्चों को सरकारी शेल्टर में भेजा जाने लगा. हजारों परिवार बिछड़ गए. लंबे समय तक पेरेंट्स को पता ही नहीं लगा कि उनके बच्चे कहां हैं. ट्रंप सरकार का तर्क था कि सख्ती दिखाने से अवैध प्रवासियों का आना कम होगा. लेकिन इस पॉलिसी पर ट्रंप समेत पूरे अमेरिका को काफी आलोचना मिली. यहां तक कि यूएन ने भी इसे क्रूर कहा.

इसके तुरंत बाद आए बाइडेन ने भूल-सुधार के तरीके से ही नई पॉलिसी बना दी. नई नीति का मकसद अच्छा था लेकिन उसमें कई कमियां थीं.
सबसे बड़ी दिक्कत ये थी कि जिन प्रवासियों को ट्रैकर या मोबाइल ऐप के जरिए निगरानी में रखा गया, उनमें से कई बाद में गायब हो गए.
इमिग्रेशन एजेंसियों के पास इतने लोग और तकनीकी साधन नहीं थे कि लाखों लोगों की लगातार ट्रैकिंग कर सकें. इससे मॉनिटरिंग ढीली पड़ने लगी.
कुछ लोगों ने इसे यह संकेत समझा कि अब सीमा पार करना पहले जितना जोखिम भरा नहीं रहा. इससे अवैध प्रवासियों की संख्या और बढ़ गई.
ट्रंप ने दोबारा आते ही मास डिपोर्टेशन अभियान चलाया. साथ ही वे पुराने तौर-तरीकों को सख्त करने लगे. अल्टरनेटिव्स टू डिटेंशन पॉलिसी पर भी इसका असर हुआ. अब अवैध प्रवासियों के लिए डिटेंशन सेंटरों की संख्या लगातार बढ़ाई जा रही है. हालांकि ये प्रोग्राम पूरी तरह से बंद नहीं हुआ लेकिन बहुत कम लोग ही आजाद छोड़े जा रहे हैं. साथ ही निगरानी का तरीका ज्यादा कसा हुआ बनाया जा रहा है. मसलन, जुलाई में लगभग दो लाख अवैध इमिग्रेंट्स के लिए एंकल मॉनिटर जारी करने का आदेश आया, जिसे काटना या अलग करना आसान नहीं. यानी निगरानी से निकल भागने की संभावना लगभग खत्म हो चुकी.