
गोरखपुर की गीता प्रेस को 2021 का 'गांधी शांति पुरस्कार' दिया जाएगा. गीता प्रेस को ये पुरस्कार 'अहिंसक और दूसरे गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में योगदान' के लिए दिया जाएगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार के लिए चुने जाने पर बधाई दी. उन्होंने ट्वीट कर लिखा, 'गीता प्रेस ने 100 साल में लोगों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन को आगे बढ़ाने की दिशा में काफी सराहनीय काम किया है.'
गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित संस्था या व्यक्ति को एक करोड़ की राशि भी दी जाती है. गीता प्रेस अपनी परंपरा के मुताबिक, किसी भी सम्मान को स्वीकार नहीं करता है. हालांकि, बोर्ड मीटिंग में तय हुआ है कि परंपरा को तोड़ते हुए पुरस्कार स्वीकार किया जाएगा, लेकिन इसके साथ मिलने वाली धनराशि नहीं ली जाएगी.
दुनिया की सबसे बड़ी पब्लिशर
- गीता प्रेस हिंदू धार्मिक ग्रंथों की दुनिया की सबसे बड़ी पब्लिशर है. इसकी स्थापना उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुई थी.
- 29 अप्रैल 1923 को जय दयाल गोयनका, घनश्याम दास जलान और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने मिलकर इसकी स्थापना की थी.
- गीता प्रेस की स्थापना की उद्देश्य सनातन धर्म के सिद्धांतों को बढ़ावा देना था. हनुमान प्रसाद पोद्दार गीता प्रेस की 'कल्याण' मैग्जीन के आजीवन संपादक भी थे.
- अपनी स्थापना के पांच महीने बाद ही गीता प्रेस ने 600 रुपये में प्रिंटिंग मशीन खरीद ली थी. गीता प्रेस के आर्काइव में 3,500 से पांडुलिपियां मौजूद हैं.

41 करोड़ से ज्यादा किताबें छापीं
- गीता प्रेस गोविंद भवन कार्यालय की एक यूनिट है, जिसे सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 (अब पश्चिम बंगाल सोसायटीज एक्ट, 1960) के तहत रजिस्टर्ड किया गया था.
- गीता प्रेस की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, अब तक ये 41.7 करोड़ से ज्यादा किताबें छाप चुका है.
- ये किताबें हिंदी के अलावा मराठी, गुजराती, ओड़िया, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, नेपाली, अंग्रेजी, बांग्ला, तमिल, असमिया और मलयालम समेत 14 भाषाओं में हैं.
- गीता प्रेस अब तक 16.21 करोड़ से ज्यादा तो श्रीमद्भगवद्गीता की कॉपियां छाप चुका है. इसके अलावा 11.73 करोड़ तुलसीदास की रचनाएं और 2.68 करोड़ पुराण और उपनिषद की कॉपियां छापी हैं.
कैसे होता है यहां काम?
- गीता प्रेस की वेबसाइट के मुताबिक, गवर्निंग काउंसिल (ट्रस्ट बोर्ड) इस संस्था का मैनेजमेंट संभालती है.
- गीता प्रेस न तो चंदा मांगती है और न ही विज्ञापन लेती है. इसका सारा खर्च समाज के लोग ही उठाते हैं. ये वो लोग और संस्थाएं हैं जो छपाई में लगने वाले सामान किफायती कीमतों में उपलब्ध करवाते हैं.
- यहां पर हर दिन की शुरुआत प्रार्थना से होती है. एक व्यक्ति बार-बार यहां घूमता रहता है और लोगों को भगवान का नाम लेने की याद दिलाता रहता है.
जब बंद हो गई थी गीता प्रेस
- दिसंबर 2014 को गीता प्रेस के कर्मचारी धरने पर बैठ गए थे. कर्मचारियों का ये धरना सैलरी को लेकर था. इसके बाद गीता प्रेस ने तीन कर्मचारियों को निकाल भी दिया था.
- हालांकि, बाद में कर्मचारी संगठन और गीता प्रेस के ट्रस्टीज के बीच हुई बैठक में इस मसले को सुलझा लिया गया. गीता प्रेस ने उन तीनों कर्मचारियों को भी वापस काम पर रख लिया था.
- गीता प्रेस के इतिहास में ये पहली बार था जब ये लगभग तीन हफ्तों तक बंद रही थी. कर्मचारियों की मांगें मानने के बाद गीता प्रेस में फिर से काम शुरू हो पाया था.

क्या-क्या छापती है गीता प्रेस?
- यहां पर हिंदू धार्मिक ग्रंथों की छपाई होती है. इनमें श्रीमद्भगवद्गीता, रामचरितमान, रामायण, पुराण, उपनिषद, तुलसीदार और सूरदास के साहित्य छपते हैं.
- इनके अलावा बच्चों में धर्म की समझ बढ़ाने वाली किताबें भी यहां छपती हैं. ये संस्था अब तक बच्चों के लिए 11 करोड़ से ज्यादा किताबें छाप चुकी है.
- गीता प्रेस हर महीने 'कल्याण' नाम से एक मैग्जीन भी निकालती है. इसमें भक्ति, ज्ञान, योग, धर्म, वैराग्य, आध्यात्म जैसे विषय होते हैं. साथ ही हर साल किसी खास विषय या शास्त्र को कवर करने वाला विशेष अंक भी निकलता है.
अब बात गांधी शांति पुरस्कार की
- गांधी शांति पुरस्कार की शुरुआत 1995 में केंद्र सरकार की ओर से की गई थी. हर साल ये अवॉर्ड महात्मा गांधी के आदर्शों के प्रति याद के तौर पर दिया जाता है.
- ये अवॉर्ड किसी को भी मिल सकता है. यानी, जरूरी नहीं कि भारतीयों या भारतीय संगठन को ही ये अवॉर्ड मिले.
- इस पुरस्कार के तहत एक करोड़ रुपये की रकम, प्रशस्ति पत्र और एक पट्टिका दी जाती है. इसरो, रामकृष्ण मिशन, बांग्लादेश के ग्रामीण बैंक, विवेकानंद केंद्र, अक्षय पात्र, एकल अभियान ट्रस्ट और सुलभ इंटरनेशनल जैसी संस्थानों को ये पुरस्कार मिल चुका है.
- इतना ही नहीं, 2019 में ये पुरस्कार ओमान के सुल्तान कबूस बिन सईद अल सईद को मिला था. 2020 में बांग्लादेश के बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान को ये दिया गया था.
- हालांकि, कांग्रेस ने गीता प्रेस को ये पुरस्कार दिए जाने की आलोचना की. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा, '2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गोरखपुर की गीता प्रेस को दिया जा रहा है. अक्षय मुकुल की 2015 में बहुत अच्छी बायोग्राफी आई थी. इसमें उन्होंने गीता प्रेस के महात्मा के साथ तकरार भरे संबंधों और राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चली लड़ाइयों का खुलासा किया है.'
- जयराम रमेश ने आगे लिखा, 'ये फैसला वास्तव में उपहास है और सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है.'