यूक्रेन से युद्ध छिड़ने के सालभर बाद ही इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) ने रूसी राष्ट्रपति पर आरोप लगाया कि उन्होंने युद्ध अपराध किया है. इन आरोपों की जांच के लिए कोर्ट ने पुतिन की गिरफ्तारी का वारंट निकाला. इसके तहत वे रूस छोड़ते ही ऐसे किसी भी देश में गिरफ्तार हो सकते हैं, जो कोर्ट से जुड़ा हुआ हो. इसके साथ ही सवाल आता है कि भारत इस पिक्चर में कहां फिट होता है. क्या वो कोर्ट की बात मानने को बाध्य नहीं? और अगर ऐसा नहीं है तो क्यों?
फरवरी 2022 में रूस और यूक्रेन में जंग छिड़ी. इसके ठीक एक साल बाद मार्च 2023 में इंटरनेशनल कोर्ट के प्री ट्रायल चैंबर ने पुतिन के खिलाफ वारंट जारी किया. उनपर आरोप है कि उनके आदेश पर युद्ध के दौरान यूक्रेनी बच्चों को जबरन पकड़कर रूसी इलाकों में डिटेंशन में भेज दिया गया. यहां वहां री-एजुकेट कर गोद लेने की प्रोसेस में डाल दिया गया. इंटरनेशनल नियमों में यह गंभीर अपराध है कि युद्ध के दौरान बच्चों को विस्थापित किया जाए या उन्हें अपने में शामिल किया जाए.
गिरफ्तारी वारंट तो आ गया लेकिन उसे लागू कराना व्यवहार में लगभग असंभव रहा. सबसे बड़ी वजह यह है कि रूस ICC का सदस्य नहीं है और वह अदालत के अधिकार क्षेत्र को मानता ही नहीं. यानी रूस के भीतर किसी भी एजेंसी पर पुतिन को गिरफ्तार करने की कानूनी बाध्यता नहीं बनती. अंतरराष्ट्रीय कानून तब ही प्रभावी होता है जब संबंधित देश उसे स्वीकार करें.

दूसरी वजह पुतिन की सुरक्षा और उनका कंट्रोल्ड इंटरनेशनल ट्रैवल पैटर्न है. वारंट के बाद उन्होंने उन्हीं देशों की यात्रा की जो ICC के सदस्य नहीं हैं या फिर रूस के करीबी माने जाते हैं. ऐसे देशों पर पुतिन को गिरफ्तार करने का कोई कानूनी दबाव नहीं होता, इसलिए जोखिम नहीं है.
इसके अलावा ICC का स्ट्रक्चर ऐसा है कि उसके पास अपनी पुलिस नहीं. वह सदस्य देशों पर निर्भर रहता है कि वे आरोपी को अदालत को सौंपें. लेकिन जब बात किसी ताकतवर लीडर की हो तो कोई भी देश उसपर तुरंत हाथ डालने से बचता है. यही वजह है कि वारंट तो रहा लेकिन असरदार नहीं.
भारत यात्रा इस लिहाज से कितनी सुरक्षित
हम खुद ICC के सदस्य नहीं. जब कोई देश रोम स्टैच्यूट पर हस्ताक्षर नहीं करता, तो ICC के आदेश उस देश पर कानूनी रूप से लागू नहीं होते. यानी भारत पर पुतिन को डिटेन करने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है. इसके अलावा भारत हमेशा नेताओं को इम्युनिटी देता है. किसी लीडर की गिरफ्तारी भारत की विदेश नीति से अलग जाती है.

रूस से भारत के राजनीतिक, व्यापारिक और सैन्य रिश्ते भी काफी गहरे रहे. यह भी एक कारण है कि पुतिन को लेकर कहीं कोई उलझन नहीं.
अरेस्ट वारंट को लेकर कोर्ट का इतिहास कैसा रहा
- ICC ने कई हाई-प्रोफाइल नेताओं और मिलिशिया कमांडरों के खिलाफ वारंट जारी किए, लेकिन ज्यादातर को गिरफ्तार कराना मुश्किल रहा. अदालत के पास अपनी पुलिस न होने से उसे सदस्य देशों पर निर्भर रहना पड़ता है.
- कोर्ट ने पहले भी सत्ता में बैठे नेताओं पर वारंट जारी किए हैं, जैसे सूडान के ओमर अल-बशीर. लेकिन इसके बाद कोर्ट पर आरोप लगा कि वो गरीब देशों को टारगेट करती है.
- बहुत से गैर-सदस्य कोर्ट के फैसलों को राजनीतिक बताते रहे. उनके यहां किसी लीडर के खिलाफ वारंट आए तो गिरफ्तारी मुश्किल है, अगर वो सदस्य देशों की यात्रा न करे.
फिलहाल क्या है रूस-यूक्रेन जंग की स्थिति
कई देशों की मध्यस्थता असफल होने के बीच हाल में डोनाल्ड ट्रंप ने यह बीड़ा उठाया है. ट्रंप प्रशासन ने 28 पॉइंट्स का एक पीस प्लान बनाया, जिसमें कुछ शर्तों के साथ सीजफायर की बात है. यूक्रेन का कहना है कि शांति प्रस्ताव में रूस को अपर हैंड दिया गया है, यहां तक कि यूक्रेन को अपनी सेना घटाने तक कह दिया गया. इन शर्तों के लिए फिलहाल यूक्रेन तैयार नहीं दिखता.