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अप्रवासियों के खिलाफ गुस्सा या बढ़ती मुस्लिम आबादी का विरोध... क्यों उबल रहा ब्रिटेन?

किसी भी देश के मूल निवासियों को संसाधनों का बंटवारा, रोजगार संकट और सांस्कृतिक बदलाव बर्दाश्त नहीं है. अवैध प्रवासी हमेशा से दुनियाभर में बहस का मुद्दा रहे हैं. हाल के दिनों में ब्रिटेन से लेकर फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया में ऐसे प्रदर्शन देखने को मिले हैं, जिनके निशाने पर अवैध प्रवासी हैं. लेकिन इससे पीछे की वजह क्या है?

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लंदन में प्रवासी विरोधी मार्च में जुटे एक लाख प्रदर्शनकारी (Photo: ITG)
लंदन में प्रवासी विरोधी मार्च में जुटे एक लाख प्रदर्शनकारी (Photo: ITG)

मेलबर्न से लेकर लंदन और सिडनी से लेकर पेरिस तक में इन दिनों प्रवासियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं. ये तीनों ही देश हाई माइग्रेशन रेट की मार झेल रहे हैं और ऐसे में यहां के स्थानीय लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है. इनमें से दो देश ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में जल्द चुनाव भी आने वाले हैं, इस वजह से भी एंटी इमिग्रेशन के मुद्दे ने जोर पकड़ लिया है. स्थानीय लोगों की शिकायत है कि प्रवासियों की वजह से उनके देश में नौकरियों की कमी, सांस्कृतिक बदलाव और संसाधनों पर बोझ बढ़ गया है. कई तरह के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक कारणों से इन देशों में एंटी-इमिग्रेशन रैलियां आयोजित की जा रही हैं.

एंटी इमिग्रेशन प्रोटेस्ट की वजह

भारत और चीन जैसे एशियाई देशों से लाखों की तादाद में लोग पश्चिम देशों में पढ़ाई या रोजगार की तलाश में पलायन करते हैं. इससे इन देशों की जनसंख्या भी बढ़ रही है. साथ ही घरों, नौकरियों और सेवाओं पर दबाव पड़ा है. इसका दोष प्रवासियों के मत्थे ही मढ़ा जा रहा है, भले ही अर्थव्यवस्था में वे कितना ही बड़ा योगदान क्यों न देते हों. उदाहरण के तौर पर ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन दोनों देशों में प्रवासी भारतीयों की तादाद बहुत बड़ी है. भारतीय छात्र ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था में सालाना करीब 6 अरब डॉलर का योगदान देते हैं. इसी तरह ब्रिटेन में भारतीय प्रोफेशनल्स हेल्थकेयर और टेक्नोलॉजी सेक्टर में अहम भूमिका निभाते हैं. लेकिन फिर भी इन देशों में भारतीयों का विरोध हो रहा है. 

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देश में अवैध तरीके से दाखिल होने वाले प्रवासियों के लेकर सुरक्षा चिताएं भी हैं और उन्हें अक्सर तस्करी रैकेट से जोड़ दिया जाता है. इसके अलावा इन प्रदर्शनों की सबसे बड़ी वजह नस्लवाद, मुस्लिम और अश्वेत विरोधी मानसिकता है. इसी वजह से एशियाई मूल और मुस्लिम प्रवासियों को सबसे ज्यादा निशाना बनाया जा रहा है. दूसरी अहम बात यह है कि एंटी-इमिग्रेशन रैलियां में दक्षिणपंथी समूहों की बड़ी भूमिका है. ऑस्ट्रेलिया में बड़े पैमाने पर चल रहे 'मार्च फॉर ऑस्ट्रेलिया' रैलियां और ब्रिटेन में चैनल क्रॉसिंग यानी अवैध प्रवासन पर सख्ती और फ्रांस में यूरोपीय यूनियन की नीतियों की वजह से भी एंटी-इमिग्रेशन प्रोटेस्ट की बाढ़ आ गई है.

लंदन की सड़कों पर क्यों उतरे हजारों लोग?

लंदन की सड़कों पर पिछले दिनों एक लाख से ज्यादा प्रदर्शनकारियों ने एंटी-इमिग्रेशन मार्च निकाला. आंदोलन को एक्टिविस्ट टॉमी रॉबिन्सन लीड कर रहे थे, जो इस्लाम और ब्रिटेन में बढ़ती प्रवासन समस्या का मुद्दा उठाते रहे हैं. देश की कमजोर होती अर्थव्यवस्था के बावजूद लोग अवैध प्रवासन से काफी बड़ा मुद्दा मान रहे हैं. साल 2025 में अब तक 28 हजार से ज्यादा लोग छोटी नावों के जरिए इंग्लिश चैनल पार करके ब्रिटेन पहुंचे हैं. प्रदर्शनकारी ब्रिटेन को भी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तर्ज पर 'यूनाइट द किंगडम' की मांग के साथ सड़कों पर उतरे थे.

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लंदन में मार्च को राइटविंग एक्टिविस्ट टॉमी रॉबिन्सन लीड कर रहे थे (Photo: AP)

लंदन में ये प्रदर्शन सबसे पहले उन होटलों के बाहर शुरू हुए, जहां शरणार्थियों को जगह दी जाती है. इसके बाद प्रोटेस्टर्स 'नो प्रोटेस्ट जोन' में चले गए और तब सुरक्षाकर्मियों के साथ झड़पें भी देखने को मिलीं. टॉमी रॉबिन्सन और उनके समर्थकों का आरोप है कि ब्रिटेन की अदालतों में बिना दस्तावेज़ वाले प्रवासियों के अधिकारों को स्थानीय लोगों के अधिकारों से ऊपर रखा जाता है. साथ ही इस विरोध प्रदर्शन में अरबपति कारोबारी एलन मस्क भी वीडियो लिंक के ज़रिए जुड़े और उन्होंने बड़े पैमाने पर प्रवासन को लेकर चिंता जताई और ब्रिटेन के लोगों से सरकार बदलने का आह्वान किया. 

बढ़ती मुस्लिम आबादी से नाराज?

ब्रिटेन में बढ़ती मुस्लिम आबादी भी एक बड़ा मुद्दा है. अनुमान है कि साल 2035 तक ब्रिटेन की कुल आबादी में 25% मुस्लिम हो सकते हैं. पहले से ही, लंदन जैसे शहरों में 'नो-गो जोन' बन गए हैं, जहां मुस्लिम बहुल इलाकों में गैर-मुस्लिमों को खतरा महसूस होता है. 2025 में एंटी-मुस्लिम क्राइम रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा, जो कि दो साल पहले की तुलना में 72% ज्यादा है. इस्लामोफोबिया और नस्लीय हमले लगातार बढ़े हैं. 2025 में भी मस्जिदों पर हमले, मुस्लिम महिलाओं का अपमान और वेंडलिज्म बढ़ा है.

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सितंबर 2025 में सेंट जॉर्ज फ्लैग कैंपेन के दौरान मस्जिदों को निशाना बनाया गया. मुस्लिम काउंसिल ऑफ ब्रिटेन ने कहा कि ये 'नाजी-स्टाइल' हमले हैं. 2025 के फरवरी में एंटी-मुस्लिम क्राइम की घटनाएं पांच हजार के करीब पहुंच गई हैं. देश में स्कूलों में हलाल-ओनली लंच अनिवार्य हो गया है, जो गैर-मुस्लिमों को असहज बनाता है. मस्जिदों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है. स्ट्रीट प्रेयर्स और शरिया अदालतों से स्थानीय लोगों में गहरा आक्रोश है. 

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देश की सियासी हवा भी बदल रही है. लेबर पार्टी मुस्लिम वोटों पर निर्भर है, जो गाजा मुद्दे पर सख्त रुख अपनाने का दबाव डालते हैं. इसे लेकर ब्रिटिशर्स का आरोप है कि वह अपने ही देश में अजनबी महसूस करते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि यह 'ग्रेट रिप्लेसमेंट' की साजिश है, जहां यूरोपीय कल्चर को दक्षिण एशियाई मुस्लिम संस्कृति से बदला जा रहा है. इसी वजह से 'यूनाइट द किंगडम' के बैनर तले बड़े पैमाने पर प्रदर्शन आयोजित किए जा रहे हैं.

ऑस्ट्रेलिया में क्यों हो रहा आंदोलन?

ऑस्ट्रेलिया में भी पिछले महीने एंटी-इमिग्रेशन रैलियां आयोजित की गईं, जिसका केंद्र मेलबर्न और सिडनी जैसे प्रमुख शहर थे. इन रैलियों में भारतीय प्रवासियों को खुलेआम निशाना बनाया गया. भारतीय प्रवासियों के खिलाफ जमकर प्रचार हुआ. प्रोटेस्ट के दौरान कहा गया, 'पांच साल में जितने भारतीय आए हैं, उतने ग्रीक और इटैलियन तो तो 100 साल में भी नहीं आए.' इस मार्च के दौरान आरोप लगाया गया कि प्रवासी ऑस्ट्रेलिया की संपत्ति का अंतरराष्ट्रीय शोषण कर रहे हैं. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि देश के हुक्मरान कभी भी इस मुद्दे को उठाने की हिम्मत नहीं दिखा पाए, लेकिन हम सामूहिक प्रवासन खत्म करने की मांग करते हैं. 

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लंदन के एंटी इमिग्रेशन प्रोटेस्ट में एक लाख लोगों के जुटने का दावा (Photo: AP)

ऑस्ट्रेलिया की सरकार से लेकर तमाम दलों के राजनेताओं ने प्रवासियों के खिलाफ इन रैलियों का विरोध किया और इसे देश की नीति के खिलाफ बताया. सरकार का साफ कहना था कि ऐसे प्रदर्शन ऑस्ट्रेलिया में नफरत और भेदभाव को बढ़ावा देने वाले हैं. गृह मंत्री टोनी बर्क ने कहा कि हमारे देश में ऐसे लोगों के लिए कोई जगह नहीं है जो हमारी सामाजिक एकता को बांटना और कमज़ोर करना चाहते हैं. हम इन रैलियों के ख़िलाफ़ और मॉर्डर्न ऑस्ट्रेलिया के साथ खड़े हैं. 

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साल 2024 तक ऑस्ट्रेलिया की कुल आबादी में करीब 8.6 मिलियन लोग ऐसे होंगे जो विदेशों में जन्मे थे. मतलब कि ऑस्ट्रेलिया में माइग्रेंट पॉपुलेशन करीब 31.5% थी. इनमें से सबसे ज्यादा प्रवासी इंग्लैंड, भारत, चीन और न्यूजीलैंड जैसे देशों के हैं. ऑस्ट्रेलिया की कुल माइग्रेंट आबादी में करीब तीन फीसदी भारतीय मूल के हैं. लेकिन साल 2014 के बाद से वहां भारतीयों की आबादी तेजी से बढ़ रही है और भारत जल्द ही इस मामले में इंग्लैंड को पीछे छोड़ देगा. ऑस्ट्रेलिया में प्रवासी मुख्य तौर पर हेल्थकेयर, एडमिन, फूड सर्विसेज जैसे सेक्टर्स से जुड़े हैं और 60 फीसदी से ज्यादा प्रवासी संपत्ति के मालिक हैं.

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फ्रांस में भी एंटी इमिग्रेशन प्रोटेस्ट

इसी तरह के प्रदर्शन फ्रांस में भी देखने को मिल रहे हैं. 'वन इन, वन आउट' डील के तहत अवैध प्रवासियों को देश से निकाला जा रहा है. अवैध प्रवासन के दौरान कई लोगों की मौत हुई है और इसी वजह से सरकार अवैध तरीके से प्रवासन को रोकने के लिए सख्त कदम उठा रही है. अफ्रीकी और मध्य पूर्वी देशों से आए प्रवासियों को 'डेंजरस जर्नी' के लिए दोषी ठहराया जाता है. फ्रांस में करीब 10 फीसदी आबादी प्रवासियों की है, लेकिन हाल के दिनों में यूरोपीय यूनियन की नीतियों की वजह से एंटी-इमिग्रेशन को लेकर माहौल बन गया है.

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