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क्या अमेरिका को अपने ही हथियार तालिबान से खरीदने होंगे या डिप्लोमेसी से सुलझ जाएगा मामला?

साल 2023 में अफगानिस्तान में जैसे ही तालिबान आया, अफगानी सेना ने सरेंडर कर दिया. इसी बीच अमेरिकी सैनिकों को भी काबुल छोड़ने का आदेश मिल चुका था. वक्त कम था, लिहाजा सैनिक थोड़ा-बहुत समेटकर वापस लौट गए. चरमपंथी गुट तालिबान के पास राज के लिए पूरा देश था, और खौफ जिंदा रखने के लिए हथियार. ये वेपन वहीं तक सीमित नहीं रहे, बल्कि कथित तौर पर कई आतंकी समूहों तक पहुंचने लगे.

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अफगानिस्तान में छूटी अमेरिकी वेपनरी लगातार चर्चा में है. (Photo- Getty Images)
अफगानिस्तान में छूटी अमेरिकी वेपनरी लगातार चर्चा में है. (Photo- Getty Images)

अफगानिस्तान में तख्तापलट कर सत्ता में आए तालिबान को हथियारों का एक पूरा भंडार मिला, जो अमेरिकी सैनिक छोड़ गए थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक, तालिबानी राज आने के बाद से ये हथियार या तो खो गए, बेच दिए गए, या इनकी तस्करी होने लगी. यूनाइटेड नेशन्स को आशंका है कि बहुत सा गोला-बारूद अल-कायदा जैसे खतरनाक आतंकी गुट को सप्लाई किया जा चुका है. डोनाल्ड ट्रंप अब ये वेपन्स वापस चाहते हैं. लेकिन क्या तालिबान इसके लिए राजी होगा?

अफगानिस्तान में लगभग दो दशक रही यूएस आर्मी 

अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में साल 2001 में पहुंची थी, जब 9/11 के बाद उसने वॉर ऑन टैरर का एलान कर दिया था. अलकायदा को पनाह देने वाली तालिबानी सरकार को मिटाने के लिए सेना ने अपना पूरा जोर लगा दिया. बाद में भी वो वहीं बनी रही ताकि किसी भी आतंकी गुट के पैर न जमने पाएं. अगस्त 2021 में आर्मी वहां से पूरी तरह से हट गई. लेकिन 20 सालों तक वहां रहने के दौरान सेना ने काफी हथियार जमा किए थे, जो आखिरकार तालिबान को विरासत में मिल गए.

तालिबान के पास क्या-क्या बाकी 

अमेरिकी सरकार की वॉचडॉग संस्थाओं ने अनुमान लगाया कि तीन साल पहले अमेरिकी सेना के जाने के बाद तालिबान ने वहां मौजूद 7 बिलियन डॉलर से ज्यादा के अमेरिकी सैन्य उपकरणों पर कब्जा कर लिया. साल 2022 में यूएस डिफेंस विभाग ने बताया कि वहां इससे भी कहीं ज्यादा कीमत के हथियार और उपकरण छूट गए थे. ट्रंप ने इससे कई गुना ज्यादा लागत बताई. 

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american weapons in taliban afghanistan allegedly being supplied to al qaeda and other terrorist organization photo AFP

अमेरिकी वेपनरी के साथ एक संदिग्ध बात और है

साल 2021 में जब यूएस आर्मी ने काबुल छोड़ा, तब पेंटागन ने कहा था कि भले ही सैनिक लौट आए, लेकिन वहां छूटे वेपन डिसेबल किए जा चुके हैं, यानी जिनका कोई उपयोग नहीं हो सकता. हालांकि इसके तुरंत बाद से तालिबान ने न केवल अपनी सेना बना ली, जिसके पास तमाम साजोसामान हैं, बल्कि इन्हीं हथियारों के दम पर आसपास के आतंकी गुटों में अपना खौफ भी पैदा कर लिया. 

तालिबानी ताकत के क्या हैं मायने 

तालिबान अफगानिस्तान में लंबे समय से एक्टिव रहा. अब वो दोबारा काबुल में है. अपने बेहद कट्टर तरीकों से लिए कुख्यात ये समूह महिलाओं को लेकर काफी क्रूर रहा. तालिबान का खतरा केवल अफगानिस्तान तक नहीं, इसके पास पाकिस्तान, भारत, और मध्य एशिया में भी प्रभाव है. इसने तीन साल पहले अफगानिस्तान में सत्ता पर काबिज होने के बाद इन इलाकों में अस्थिरता बढ़ाई ही.

क्या हो रहा है वेपन्स का

फरवरी में आई UN रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान ने अल-कायदा समेत कई आतंकवादी संगठनों, जैसे तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उजबेकिस्तान, ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट और यमन के अंसारुल्लाह को हथियार बेचे, या तस्करी की. इसके अलावा अमेरिकी हथियारों का 20 फीसदी हिस्सा तालिबान ने अपने कमांडरों को दे दिया. कमांडरों के कब्जे में आए वेपन्स की ब्लैक मार्केटिंग होने लगी. हालांकि तालिबान हमेशा ही इस कालाबाजारी से इनकार करता रहा और दावा करता रहा कि वो पूर्व प्रशासन के छोड़े हुए वेपन्स को अपनी सुरक्षा में इस्तेमाल करेगा. 

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american weapons in taliban afghanistan allegedly being supplied to al qaeda and other terrorist organization photo AP

अमेरिकी हथियारों का ये मुद्दा वाइट हाउस में अक्सर उठता रहा. खासकर डोनाल्ड ट्रंप जबसे सत्ता में आए, वे लगातार अपने वेपन्स वापस लेने की बात कर रहे हैं. ट्रंप के मुताबिक, उनकी सेना के छोड़े हुए हथियारों की कीमत लगभग 85 बिलियन डॉलर होगी. हालांकि इसकी विश्वसनीयता संदिग्ध है लेकिन ये तय है कि ट्रंप इसे वापस पाने के लिए पूरा जोर लगा देंगे.

क्या तालिबान लौटाएगा हथियार

दूसरी तरफ ये बात भी पक्की है कि ट्रंप के लिए डील आसान नहीं होगी. तालिबान अभी अपने ही देश में सिक्का जमाने के लिए कई ताकतों से लड़ रहा है. पाकिस्तानी सीमा पर भी लगातार कुछ न कुछ हो रहा है. ऐसे में तालिबान के लिए हथियारों का ये जखीरा अचानक लगी लॉटरी से कम नहीं. वो किसी हाल में इसे खोना नहीं चाहेगा. फॉरेन पॉलिसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वाइट हाउस को शायद अपने ही वेपन्स वापस लेने के लिए तालिबान को अच्छी-खासी रकम देनी पड़ जाए. 

क्या कीमत चुका सकता है यूएस

अमेरिका बीते कुछ समय से काबुल से अपने डिप्लोमेटिक रिश्ते ठीक करता हुआ दिखने लगा. ये बात भी इस तरफ इशारा हो सकती है कि डिप्लोमेटिक मान्यता देकर वाइट हाउस अपने हथियार वापस पाने की जुगत में हो. बता दें कि तालिबान को अब भी ज्यादातर देश आतंकी संगठन मानते और दूरी बरतते हैं. ऐसे में अमेरिका अगर काबुल को स्वीकार कर ले तो कई और देश भी उससे रिश्ता रखना शुरू कर देंगे.

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हाल में दोनों सत्ताओं के बीच दोस्ती के संकेत भी दिखने लगे. दरअसल, कुछ समय पहले ही तालिबान में अपनी जेल में बंद एक अमेरिकी नागरिक को रिहा किया. बदले में यूएस सरकार ने भी तीन तालिबानी नेताओं पर से इनामी राशि हटा ली. साथ ही अफगान सेंट्रल बैंक की एक बड़ी रकम पर से प्रतिबंध भी हटा लिया. ये इशारा काफी है कि दोनों देश डिप्लोमेटिक एंगेजमेंट की तरफ बढ़ रहे हैं. 

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