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पर्यावरण की पढ़ाई की है अखिलेश ने

उत्तर प्रदेश की राजनीति के युवा चेहरे के तौर पर उभरे अखिलेश यादव की मेहनत रंग लाई और 12 वर्ष पहले राजनीति में अपना पहला मजबूत कदम रखने वाले सियासत के इस माहिर खिलाड़ी ने चुनावी बिसात में अपनी सधी चालों से ‘हाथी’ को मात देकर आखिरकार बाजी अपने नाम कर ली.

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उत्तर प्रदेश की राजनीति के युवा चेहरे के तौर पर उभरे अखिलेश यादव की मेहनत रंग लाई और 12 वर्ष पहले राजनीति में अपना पहला मजबूत कदम रखने वाले सियासत के इस माहिर खिलाड़ी ने चुनावी बिसात में अपनी सधी चालों से ‘हाथी’ को मात देकर आखिरकार बाजी अपने नाम कर ली.

अखिलेश का जन्म एक जुलाई 1973 को इटावा में हुआ था और तब उनके पिता युवा मुलायम सिंह यादव प्रदेश की राजनीति में पैर जमा रहे थे.

अनुशासन के पाबंद पिता मुलायम ने उन्हें प्रारम्भिक शिक्षा के लिए राजस्थान के धौलपुर मिलिट्री स्कूल भेजा, जहां पढाई पूरी करने के बाद उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय से पर्यावरणीय प्रौद्योगिकी में स्नातक और आस्ट्रेलिया के सिडनी विश्वविद्यालय से परास्नातक की उपाधि हासिल की.

युवा अखिलेश सिडनी से पढाई पूरी करके पहुंचे तो राजनीति उनकी प्रतीक्षा कर रही थी और वर्ष 2000 में वे पहली बार कन्नौज लोकसभा सीट से उपचुनाव जीत कर सक्रिय राजनीति में कदम रखा. वह सीट पिता मुलायम सिंह यादव के इस्तीफे से खाली हुई थी, जो 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में मैनपुरी और कन्नौज दो सीटो से चुने गये थे. तब के बाद से अखिलेश लगातार कन्नौज लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे है.

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बढ़ती उम्र और राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ती व्यवस्तता के बीच कुछ वर्षों पहले पार्टी मुखिया यादव ने पार्टी की प्रदेश इकाई के नेतृत्व की जिम्मेदारी युवा पुत्र अखिलेश के कंधे पर डाल दी और उन्होंने अपनी जिम्मेदारी भी क्या खूब निभाई.

16वीं विधानसभा के लिए चुनाव की औपचारिक घोषणा से पहले ही अखिलेश कभी ‘क्रांति रथ यात्रा’ तो कभी पार्टी के चुनाव चिन्ह साइकिल से युवकों और समर्थको की यात्राएं निकाल कर पूरे प्रदेश को गांव गांव शहर शहर पहुंच कर मानो मथ डाला.

पार्टी सूत्रों के अनुसार, प्रदेश में पार्टी को जमाने और समाजवाद का संदेश जन जन तक पहुंचाने के लिए अखिलेश ने दस हजार किलोमीटर यात्राएं की और आठ सौ से अधिक रैलियां संबोधित की, मगर चेहरे पर कभी थकान और आक्रोश की झलक तक दिखाई न पड़ी. सिर पर पार्टी की लाल टोपी, सफेद कुर्ते पायजामे पर काले रंग की सदरी में संयत, विनम्र मगर दृढसंकल्प भाषणों के जरिये युवा अखिलेश ने देखते ही देखते स्वयं को प्रदेश की राजनीति का सबसे जाना पहचाना चेहरा बना लिया.

पार्टी उम्मीदवारों के चयन में सूझ बूझ के साथ अहम भूमिका निभाई और डीपी यादव जैसे बाहुबलियों को पार्टी में शामिल किये जाने के कदम का विरोध करके उन्होंने राजनीति में जरुरी दृढ निर्णय शक्ति का परिचय दिया.

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अखिलेश के समझदार फैसलों का ही असर था कि छह मार्च को विधानसभा चुनाव के लिए मतों की गिनती शुरु होने के बाद से चढ़ते दिन के साथ पार्टी की स्थिति निरंतर मजबूत होती गयी, और शाम ढलने तक 403 सदस्यीय विधानसभा में पार्टी को 224 सीटों पर जीत के शानदार बहुमत के साथ प्रदेश के राजनीतिक आकाश में एक नये सूरज का उदय हो चुका था.

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