देशभर में नए नागरिकता कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के मुद्दे पर विरोध हो रहा है. इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को जवाब दिए. अमित शाह ने कहा कि एनआरसी राजीव गांधी लेकर आए तब वो सेक्युलर था, अब सोनिया गांधी विरोध कर रही हैं.
अमित शाह ने कहा, 'मैं स्पष्ट कर दूं कि एनआरसी में धर्म के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं होगी. जो कोई भी एनआरसी के तहत इस देश का नागरिक नहीं पाया जाएगा उन सबको निकाला जाएगा. इसलिए एनआरसी सिर्फ मुसलमानों के लिए है यह कहना गलत बात है.
आजतक के 'एजेंडा आजतक 2019' कार्यक्रम में बतौर अतिथि अमित शाह ने कहा, 'दूसरी बात एनआरसी लेकर कौन आया? जो लोग विरोध कर रहे हैं उनसे पूछना चाहता हूं कि इसे कौन लेकर आया. मैं कांग्रेस अध्यक्ष और गुलाम नबी आजाद से पूछना चाहता हूं कि 1985 में जब असम समझौता हुआ तब पहली बार एनआरसी की बात स्वीकार की गई. उसके बाद हमारे 1955 के नागरिकता एक्ट में 3 दिसंबर 2004 को क्लॉज 14 (ए) जोड़ा गया. इससे स्पष्ट है कि 3 दिसंबर 2004 को यूपीए की सरकार थी. हमारी सरकार नहीं थी. उसके बाद में रूल 4 जोड़ा गया, जो देशभर में एनआरसी बनाने की ताकत देता है, वो भी 9 नवंबर 2009 को जोड़ा गया. उस समय भी कांग्रेस की सरकार थी. उनके (कांग्रेस) बनाए कानून पर वो हम से ही सवाल कर रहे हैं. तो क्या आपने कानून शो केस में रखने के लिए बनाया था? जरूरी नहीं लगता था तो क्यों कानून बनाया?'
क्या है सरकार की मंशा?
CAA और NRC को मिलाकर देखने पर सवाल पर उठता है कि सरकार की मंशा क्या है? इस पर सवाल पर अमित शाह ने कहा कि इस मसले को निर्वाचन क्षेत्र के साथ जोड़कर मत देखिए. इसे थोड़ा पीछे जाकर देखना होगा. सबसे पहली बात है कि देश का विभाजन धर्म के आधार पर नहीं होना चाहिए था. लेकिन यह कटु सत्य है कि इस देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ. बंटवारा कभी धर्म के आधार पर नहीं होना चाहिए, लेकिन कांग्रेस ने बंटवारा धर्म के नाम पर सरेंडर किया और इस देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ.
अमित शाह ने कहा कि इसमें बहुत से लोगों का नुकसान हुआ. 1950 में नेहरू और लियाकत अली खान में समझौता हुआ कि दोनों देश अपने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करेंगे. तब से लेकर अब तक के आंकड़ों को देखिए, पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की संख्या कम हो गई. जब नेहरू-लियाकत समझौते पर अमल नहीं हुआ. तब ये करने की जरूरत पड़ी.
अमित शाह ने आगे कहा कि एनआरसी की शुरुआत कांग्रेस ने की. मैं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और गुलाम नबी आजाद से कहना चाहता हूं कि वो ये ऐलान कर दें कि वे पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुस्लिमों को भारत में नागरिकता दे देंगे.
अमित शाह ने 1994 के अयोध्या एक्ट का उदाहरण देते हुए कहा, 'कांग्रेस के ही एक्ट का पालन कर रहा हूं तो भी मैं सांप्रदायिक हो गया तो भाई आपने ऐसा एक्ट क्यों बनाया. नागरिकता संशोधन कानून पर बताता हूं. नेहरू जी ने समझौता करके कहा था कि हमारा वचन है कि हम अपने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करेंगे. कांग्रेस ने भी बहुत से लोगों से ये बात कही. उन्होंने (कांग्रेस) ये बात कही तो वो सांप्रदायिक नहीं हुए लेकिन हम कह रहे हैं तो कम्युनल हो गए. उसके बाद एनआरसी. एनआरसी का कॉन्सेप्ट राजीव गांधी लेकर आए और श्रीमती सोनिया गांधी विरोध कर रही हैं. राजीव गांधी लेकर आए तो सेक्यूलर था और मैं उनकी बनाई व्यवस्था लागू कर रहा हूं तो कम्युनल हूं. मेरी तो समझ में नहीं कि हम करें तो करें क्या?