
Big Boss के घर में पिछले दो हफ्ते में कंटेस्टेंट के बीच जबरदस्त अग्रेशन देखने को मिला. इस सीजन में प्रतीक सेहजपाल और अफसाना खान को सबसे ज्यादा अग्रेसिव कंटेस्टेंट माना जा रहा है.
आपको बता दें, यह पहला सीजन नहीं है, जहां कंटेस्टेंट ने अपना अग्रेशन दिखाकर लाइमलाइट बटोरी हो. इससे पहले भी सीजन में कई अग्रेसिव कंटेस्टेंट रहे हैं. डोली बिंद्रा, केआरके, सुरभी राणा, पूजा मिश्रा जैसे कई प्रतिभागी रहे हैं, जिनके अग्रेशन ने उन्हें बिग बॉस में नोटिस करवाया है. क्या वाकई में शो में अग्रेसिव होना फायदेमंद होता है. यह बता रहे हैं शो में हिस्सा ले चुके उनके अग्रेसिव कंटेस्टेंट.
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मैं पहला अग्रेसिव कंटेस्टेंट था- केआरके
लोग अभी के शो को तो बिग बॉस न कहें, तो बेहतर है. क्योंकि अब बिग बॉस पहले की तरह शो नहीं रहा. शुरुआत में तो किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि गाली दे या एक दूसरे को टच भी कर ले. जहां तक मुझे याद है, मैं पहला ऐसा कंटेस्टेंट था, जिसने उस घर में इस तरह की हरकतें की थी. मैंने गाली गलौच की थी, बोतल फेंक कर मार दी थी, जो किसी को लगी नहीं थी. मेरी इन्हीं हरकतों की वजह से उस घर से मुझे शो के बीच ही निकाल दिया गया था. यानी उस वक्त इस तरह के नियम कानून सब पर लागू हुआ करते थे. अब तो हर कोई एक दूसरे को गालियां देता है, मारता है और हर तरह की हरकतें करता है. यह तो बिग बॉस रहा नहीं. खैर, यह सही है कि लोगों को ऐसी ही चीजें पसंद आती हैं, तो घर पर जाकर लोग ये हरकतें करते हैं. अगर वो नहीं करेंगे, तो उन्हें रखा ही नहीं जाएगा. वोटिंग का घर पर रहने व निकलने से कोई लेना देना नहीं है. सब झूठ है. घर पर तब ही रह सकता है कोई गालियां दें या मारे, तो मजबूरी की वजह से ये करते हैं.

मैं पहला ऐसा कंटेस्टेंट रहा हूं, जो अग्रेसिव रहा था. मेरे ऐसा करने से मुझे फायदा मिला था. मैं उस सीजन का सुपरस्टार था. अगर वो मैं नहीं करता, तो शायद लोग यह भी नहीं जानते कि मैं कौन हूं. इससे ही शुरुआत हुई और जो लोग अगले सीजन में आए और मुझे फॉलो करते गए और यहीं से अग्रेसिवनेस बढ़ना शुरू हो गया.
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शो के बाहर बनी झगड़ालू की इमेज, लोग काम देने से कतराते थे- सुरभी राणा
यह एक ऐसा शो है, जहां अलग-अलग मानसिकता के लोगों को एक ही तरह के सिचुएशन में डाल देते हैं, तो जाहिर सी बात है लड़ाईयां होगी ही. हर इंसान के एक्सप्रेस करने का सलीका अलग होता है. अगर आपको गुससा आता है, मैंने वहां जो कुछ भी किया, वो मेरा रिएक्शन था. अब लोगों को मेरा रिएक्शन लड़ाई वाला था. देखिए इसका फायदा मुझे तो बिलकुल भी नहीं मिला है. शो को टीआरपी जरूर मिलती है, लेकिन कंटेस्टेंट के रूप में कोई फायदा नहीं मिला है. बिग बॉस के बाद तो एक भी शो नहीं किया है. न ही कलर्स चैनल का सपोर्ट मिला, न ही किसी और शो से प्रपोजल मिला है. अगर झगड़ा करने से ही फायदा मिलता, तो मैं तो अभी स्टार होती. लोग भले ही लड़ाई करने वाले बंदे को नोटिस करें, लेकिन प्यारा तो उन्हें डिप्लोमैट इंसान ही पसंद आता है. क्योंकि लोग जजमेंटल होते हैं.

शो के बाद जो मेरी इमेज बनी है, उसके बाद शायद लोगों ने मेरे प्रति धारणा बना ली थी कि मैं तो झगड़ालू महिला हूं. मैंने इसकी सफाई नहीं दी है. बिग बॉस में जितने लड़कों ने झगड़ा किया है, उन्हें कभी जज नहीं किया गया, यह तो भेदभाव वाली बात होती है. लड़कियां अगर स्ट्रॉन्गली अपनी बात रखें, तो उसे झगड़ालू करार दे दिया जाता है. बहुत ही सेक्सिस्ट है बिग बॉस का यह शो.
अग्रेसिव होने का मिलता है फायदा, लोगों का ध्यान जाता है - राजा चौधरी
मैं इस बात से तो सहमत हूं कि जो लोग अग्रेसिव होते हैं, वे दर्शक के नजर मैं फौरन आ जाते हैं. अब तो लोग बिना वजह का हो-हल्ला मचाते हैं. यह देखकर इरीटेशन होता है. बिना किसी मुद्दे के चिल्ला-चिल्लाकर बात करना और लोगों का ध्यान खींचना अब कंटेस्टेंट की स्ट्रैटेजी बन सी गई है. सीजन दर सीजन कंटेस्टेंट ज्यादा अग्रेसिव होते जा रहे हैं. मेरा अग्रेसन केवल उन्हीं बातों पर निकलता था, जब कुछ गलत हो रहा होता था.मैंने बिना वजह का हो-हल्ला नहीं मचाया है.

रही बात इससे मिलने वाले फायदे की, तो वो केवल बिग बॉस के घर तक ही सीमित होता है. बाहर बस एक इमेज बन जाती है कि फलां कंटेस्टेंट ने गुस्सा किया या फलां की जमकर लड़ाई हुई. इससे ज्यादा कुछ नहीं होता है.