फिल्म का नाम: दि एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर
स्टारकास्ट: अनुपम खेर, अक्षय खन्ना, अहाना कुमरा, सुजैन बर्नर्ट, अर्जुन माथुर, विमल वर्मा
निर्देशक: विजय गुट्टे
सर्टिफिकेट: U
रेटिंग: 1.5 स्टार
दि एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर अनाउंसमेंट के समय से ही चर्चा में है. ट्रेलर आने के बाद से रिलीज तक फिल्म को लेकर ऐसा कुछ नया नहीं है जो हिंदी सिनेमा के पाठक न जानते हों. सिवाय इस बात के कि सोनिया अपने घर में बच्चों के साथ इटैलियन में बात करती हैं. फिल्म संजय बारू की किताब पर आधारित है. लेकिन डिस्क्लेमर में निर्माताओं ने यह भी साफ़ किया है कि सिनेमाई रूपांतरण का सहारा लिया गया है. ये दूसरी बात है कि सिनेमा के डिस्क्लेमर कितने दर्शकों को याद रहते हैं. आइए जानते हैं विजय गुट्टे के निर्देशन में बनी दि एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर कैसी फिल्म है...
फिल्म की कहानी
शुरुआती सीन से ही फिल्म की कहानी का मकसद, उसके किरदार, नायक, खलनायक सब क्लीयर हो जाते हैं. फिल्म 2004 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए को मिली जीत से शुरू होती है. चुनाव में हारने वाली एनडीए किसी भी हालत में सोनिया गांधी (सुजैन बर्नर्ट) को प्रधानमंत्री नहीं बनने देना चाहती. कांग्रेस में दो स्तर की मीटिंग होती है, एक में अहमद पटेल (विपिन शर्मा) सोनिया गांधी, राहुल गांधी (अर्जुन माथुर) और प्रियंका गांधी (अहाना कुमरा) से कमरे के अंदर मंत्रणा करते नजर आते हैं. उसी कमरे के बाहर प्रणब मुखर्जी समेत तमाम नेता नए प्रधानमंत्री को लेकर चर्चा कर रहे हैं. लेकिन बाद में सभी नेता अंदर आते हैं और सोनिया से पद संभालने की गुजारिश करते हैं.
THANK YOU @GutteVijay #SunilBohra #AkshayKhanna @mehtahansal #SachinKrishn #MayankTiwari & the entire cast & crew of @TAPMofficial for your love, support & warmth during the making of our film. One of the best experiences of my life. #TheAccidentalPrimeMinister releases today.🙏 pic.twitter.com/U60Qiss1AS
— Anupam Kher (@AnupamPKher) January 11, 2019
राहुल, पिता और इंदिरा गांधी के साथ हुए हादसों का जिक्र करते हुए सोनिया से पीएम न बनने को कहते हैं. कांग्रेस के सीनियर नेताओं के दबाव पर राहुल उन्हें झिड़कते हैं. मां से संभवत: इटैलियन (अंग्रेजी तो नहीं ही है) में कुछ बात करते हैं और गुस्से में कमरे से बाहर चले आते हैं. प्रणब जैसे नेताओं को लगता है कि संभवत: उनका नंबर आ सकता है. लेकिन सोनिया को वफादार प्रधानमंत्री चाहिए. उनके मन में है भी. जब मनमोहन सिंह (अनुपम खेर) के नाम की घोषणा होती है तो प्रणब मुखर्जी के चेहरे पर शिकन देखने लायक है.
अब मनमोहन को प्रधानमंत्री तो बना दिया गया है, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं और जनता के बीच सोनिया को स्थापित करने और पीएमओ पर नियंत्रण के मकसद से अहमद पटेल राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का गठन करवाते हैं. यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी को इसका अध्यक्ष बनाया जाता है. पीएमओ और सोनिया के बीच तालमेल के लिए सोनिया के पारिवारिक करीबी पुलक चटर्जी को अप्वॉइंट किया जाता है. इस बीच मनमोहन जर्नलिस्ट संजय बारू (अक्षय खन्ना) को अपना मीडिया सलाहकार नियुक्त करते हैं. फिर मंत्रियों की नियुक्ति से लेकर 2जी, कोयला घोटाले तक की कहानी, परमाणु मसले पर सोनिया के खिलाफ जाकर मनमोहन के इस्तीफे की धमकी और 2009 के चुनाव में राहुल को पार्टी का चेहरा बनाने, 2014 के आम चुनाव से पहले तक कांग्रेस के अंदर की रस्साकशी और तमाम चर्चित राजनीतिक प्रसंग आते हैं. इन्हें जानने के लिए फिल्म देखनी पड़ेगी.
पॉलिटिकल डाक्यूमेंट्रीफिल्म बायोपिक नहीं है. यह किसी किताब में दर्ज तमाम छोटी बड़ी राजनीतिक घटनाओं का सिनेमाई रूपान्तरण है. कहानी बिखरी हुई है. कई बार यह एक पॉलिटिकल डाक्यूमेंट्री बन जाती है. हिंदी की परंपरागत फिल्मों में इस तरह से कहानियां नहीं दिखाई जातीं. यहां कहानी के लिए रियल विजुअल्स का दिल खोलकर इस्तेमाल किया गया है. अच्छा यह है कि फिल्म में संजय बारू के रूप में अक्षय खन्ना नरेटर के रूप में समझाते रहते हैं और तमाम घटनाओं को समझने में मदद मिलती है.
अनुपम खेर, अक्षय खन्ना, सुजैन बर्नर्ट, विपिन शर्मा, अर्जुन माथुर और अहाना कुमरा का अभिनय बढ़िया हैं. दूसरे कलाकारों के लुक भी मूल किरदारों से मैच करते नजर आते हैं. कास्टिंग के लिहाज से फिल्म काफी दिलचस्प है. वैसे पूरी फिल्म की जान अनुपम और अक्षय की अदाकारी के अलावा रेफरेंस के तौर पर इस्तेमाल ऑरिजिनल विजुअल ही हैं. हालांकि विजुअल की बहुत ज्यादा भरमार कई बार फिल्म देखते हुए परेशान भी करती है. पहली ही फिल्म में निर्देशन के लिए विजय गुट्टे की तारीफ़ की जा सकती है.
अभिनय, कास्टिंग और संवाद उम्दा
ये फैमिली फिल्म नहीं है. ये उन दर्शकों को ज्यादा पसंद आएगी जिन्हें राजनीति घटनाएं पसंद हैं. फिल्म में कोई गाना नहीं है. हालांकि इसका बैकग्राउंड स्कोर प्रभावित करता है. फिल्म के संवादों को अच्छे से लिखा गया है. अनुपम खेर, अक्षय खन्ना और विपिन शर्मा के हिस्से तमाम अच्छे संवाद आए हैं.
दि एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर पूरी तरह से प्रोपगेंडा फिल्म है. हर उस प्रतीक और घटना का इस्तेमाल किया गया है जिससे गांधी परिवार की छवि नकारात्मक नजर आती है. सोनिया गांधी को एक कॉकस से घिरे नेता तत्कालीन सरकार की सुप्रीम पावर के रूप में दिखाया गया है. राहुल गांधी को उतना अनुभवहीन, गैरजिम्मेदार और 'मूर्ख' दिखाया गया है जितना सोशल मीडिया में बीजेपी के नेता समर्थक उनके बारे में बोलते रहते हैं.
संदेश यही है कि मनमोहन सिंह बेहद ईमानदार व्यक्ति थे. सोनिया के लिए उन्हें मजबूरन प्रधानमंत्री बनना पड़ा. उन्हें सोनिया ने अच्छे काम नहीं करने दिए, न उनका श्रेय लेने दिया. मनमोहन सरकार में जो भ्रष्टाचार के मामले आए सोनिया और उनके कॉकस ने मनमोहन सिंह के मत्थे शिफ्ट कर दिया. राहुल को मां सोनिया से इटैलियन में बात करते दिखाने के आधार पर फिल्म का मकसद आसानी से समझा जा सकता है.
बोल्ड कदम लेकिन अंजाम बुरा
हिंदी सिनेमा आमतौर पर चर्चित राजनीतिक मुद्दों पर सीधे सीधे कुछ दिखाने से बचता रहा है. एक लिहाज से ये फिल्म एक बोल्ड कदम है. पर आने वाले दिनों में फिल्मों का माध्यम बायस्ड राजनीतिक कंटेंट से भरा नजर आ सकता है.