देशभर के लोगों को आस्था से जोड़ने वाले महान भजन गायक नरेंद्र चंचल का 80 साल की उम्र में निधन हो गया. संगीत जगत समेत मां के श्रद्धालुओं के बीच शोक की लहर दौड़ पड़ी है. नरेंद्र चंचल संगीत की दुनिया का जाना-माना नाम थे और वे जगह-जगह माता का जगराता करते थे. सर्वप्रिय विहार स्थित घर में उन्होंने अंतिम सांस ली. वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उनके निधन पर हरभजन सिंह, दलेर मेहंदी समेत कई सेलेब्स ने दुख व्यक्त किया है.
नरेंद्र चंचल को लेकर ये सवाल कई लोगों के मन में अक्सर आता था कि हमेशा मां का सुमिरन करने वाले सिंगर के नाम के आगे चंचल क्यों लगता है. खुद एक इंटरव्यू में नरेंद्र चंचल जी ने इस बात का खुलासा किया था.
एक इंटरव्यू में बातचीत के दौरान उन्होंने इस बारे में कहा था कि- बचपन से ही लोग कहते हैं कि मैं बड़ा शरारती था. अपने स्कूल कॉलेज के दिनों में जो मुझसे सीनियर थे वो पानी का गिलास मुझे लाकर दिया करते थे. जो शास्त्री जी थे जिनसे मैं पढ़ता था उन्होंने मुझे ये नाम दिया. और ये नाम कब मेरे जीवन का हिस्सा बन गया मुझे पता ही नहीं चला. मेरा मानना है कि हर इंसान के अंदर एक शिशु तो पलता ही है. उसे मरना नहीं चाहिए. वो शिशु शरारत करता है, जिद करता है और ऐसा करते हुए वो अच्छा भी लगता है. वो चुक कर के बैठा नहीं रहता. तो मैंने अपने अंदर के उस बच्चे को आजतक मरने नहीं दिया. मुझे नहीं पता था कि मैं आगे जाकर सिंगर बनूंगा. आगे मैं जैसे-जैसे बड़ा हुआ, संगीत की दुनिया में आया और ये नाम भी मेरे संग-संग आगे चलता गया. वैसे बता दें कि भले ही उनका नाम नरेंद्र चंचल उनकी शरारतों की वजह से रख गया हो मगर उनका असली नाम नरेंद्र खरबंदा था.
कैसे सिंगर बने नरेंद्र चंचल-
उन्होंने बताया था कि मेरे घर का वातावरण तो धार्मिक था ही, मेरी मां पूजा करती थीं, माता की आराधना करती थीं, घर में कीर्तन भी होता था, मगर उन दिनों मेरा ध्यान इस तरफ कम था. घर में कीर्तन होता था तो मैं क्रिकेट खेलने चला जाता था. गायक मैं अपनी मां की वजह से बना. मेरी मां सर्दियों में मुझे उठाकर सुबह-सुबह मंदिर ले जाया करती थीं. मेरे सात भाई हैं. उन 7 भाइयों में वे मुझे ही क्यों लेकर जाती थीं ये मैं आज सोचता हूं. मंदिर मे मैं बड़ा दुखी होकर जाता था मगर जब मैं वहां से आता था तो बड़ा मग्न होकर आता था. पुराने वक्त की प्रेरणादायक कहानियां सुनना बहुत अच्छा लगता था. वही कहानी मैं अपने दोस्तों को सुनाता था. संस्कार तो थे मेरे अंदर. बस उसे सही दिशा मिल गई. पहले मैं फिल्मों में भी गया. मगर मन नहीं लगा और मैं इस तरफ आ गया.