एक्टरः अरशद वारसी, सोहा अली खान, जावेद जाफरी, करिश्मा कोटक, गीता बसरा, विजय राज, हिमानी शिवपुरी, मनोज जोशी, शक्ति कपूर, वृजेश हीरजी, रंजीत
डायरेक्टरः समीर तिवारी
ड्यूरेशनः 130 मिनट
जॉनरः कॉमेडी
रेटिंगः 1 स्टार
हंसाना दुनिया का सबसे गंभीर काम है. दुनिया के सबसे बड़े हंसोड़ मिस्टर चार्ली चैप्लिन ने हमें यही सिखाया है. अगर फिल्मों की बात करें, तो अच्छी कॉमेडी फिल्म वही होती है, जिसमें हालात के मारे कुछ किरदार अपना कर्म करते जाते हैं और फल के रूप में हमें गुदगुदी मिलती है. इसमें अहम रोल निभाती है फिल्म की कहानी और डायलॉग. मिस्टर जो भी करवालो में इन दोनों की ही भयानक कमी है. नतीजतन, आपको झेलना पड़ता है दो घंटे से भी ज्यादा वक्त में पसरा टॉर्चर, जिसे देखकर आप सिर्फ डायरेक्टर, प्रॉड्यूसर और स्टोरी राइटर, अगर कोई था तो, उसकी समझ पर हंस सकते हैं.
बेंगलुरु में एक बालक है. नाम है डिटेक्टिव जो भी करवालो. अपनी अंधी दादी के साथ रहता है. डिटेक्टिव इतना झंडू बाम है कि ड्रग का कारोबार करने वाले गिरोह को मारता पीटता है, ताकि उनसे केबल टीवी का बिल वसूल सके. इस दौरान उसे बस यही लगता है कि ये लोग फ्लैट में सफेद आटा गूंद रहे हैं. इस डिटेक्टिव की एक गर्लफ्रेंड भी है, जो पेशे से पुलिस इंस्पेक्टर है. एक सांप. बिच्छू और स्टफ टॉ़य के चलते उनका ब्रेकअप हो गया है. बहरहाल, डिटेक्टिव को मिलता है एक कपल को पकड़ने का काम, जो अपने पिता की मर्जी के खिलाफ भाग गया है. उधर पुलिस इंस्पेक्टर शांतिप्रिया का मिशन है एक कपल की शादी में खलल डालने आ रहे इंटरनेशल किलर कार्लोस को पकड़ना. इसी पकड़म पकड़ाई में तमाम जबरिया ट्विस्ट आते हैं और फिल्म अपनी अधोगति को पाती है.
फिल्म के डायलॉग का एक नमूना झेलें. मौत, पॉटी और कार्लोस कभी भी कहीं भी आ सकते हैं... सही कहा, कार्लोस की इस पॉटी कॉमेडी को देखकर बस मौत ही नहीं आती. फिल्म में अमिताभ भट्टाचार्य के लिखे गाने कुछ सुकून बख्शते हैं, मगर जाहिर है कि हम चित्रहार देखने सिनेमा हॉल नहीं जाते हैं.जैसी लचर कहानी है, वैसा ही कमजोर डायरेक्शन है समीर तिवारी का.
अरशद वारसी फिल्म में लीड रोल में है. मगर रोल में कुछ था ही नहीं. तो वह एक्टिंग के नाम पर अझेल हरकतें करते रहे. सोहा अली खान इससे पहले ऐसी ही एक कॉमेडी फिल्म वॉर छोड़ न यार में भी नजर आई थीं. उनके लिए बस गैंग्स ऑफ वासेपुर के रामाधीर सिंह का एक वचन... तुमसे न हो पाएगा. जावेद जाफरी कार्लोस के रोल में अकसर अलग-अलग महिलाओं का भेष धरे नजर आते हैं. उनका ये भोंडा बहरूपियापन फिल्म को और भी डुबा देता है. जो भी करवालो में किरदारों और एक्टरों की भरमार है. मगर सबके सब बस एक कोने से आते, स्वांग रचाते और फिर जल्द ही दूसरे कोने के अंधेरे में गुम हो जाते नजर आते हैं.
अगर आपको कॉमेडी फिल्म का लाइलाज कीड़ा है और इसके नाम पर कुछ भी देख सकते हैं. तो ही ये फिल्म देखने जाइए. फिल्म को एक स्टार, उस बहादुरी के लिए, जो इसे बनाने वालों ने दिखाई.