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Gadar 2 Review: एक्शन और डायलॉगबाजी से भरपूर है सनी देओल की 'गदर 2', सीटियां मारने को होंगे मजबूर

22 सालों के लंबे इंतजार के बाद तारा सिंह एक बार फिर बड़े पर्दे पर लौट आए हैं. फिल्म 'गदर 2' रिलीज हो गई है. अगर इस फिल्म का इंतजार आपको भी था और आप इसे देखने का प्लान बना रहे हैं तो हमारा रिव्यू पढ़ लीजिए. जानिए सनी देओल ने इस फिल्म से कितना गदर मचाया.

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फिल्म 'गदर 2' के एक सीन में सनी देओल
फिल्म 'गदर 2' के एक सीन में सनी देओल
फिल्म: गदर 2
3/5
  • कलाकार : सनी देओल, अमीषा पटेल, उत्कर्ष शर्मा
  • निर्देशक : अनिल शर्मा

सनी देओल की फिल्म 'गदर 2' का इंतजार फैंस को बेसब्री से था. इस फिल्म का पहला पार्ट 'गदर' साल 2001 में रिलीज हुआ था. यही वो फिल्म थी जिसने सनी देओल को फैंस का फेवरेट एक्टर बनाया और उन्हें 'हिंदुस्तान जिंदाबाद' का नारा दिया. अब 22 सालों के लंबे इंतजार के बाद तारा सिंह एक बार फिर बड़े पर्दे पर लौट आए हैं. आइए बताएं उन्होंने इस फिल्म के साथ सिनेमाघर में कितना गदर मचाया.

क्या है गदर 2 की कहानी?

'गदर 2' की शुरुआत काफी धुआंधार अंदाज में होती है. शुरुआत में नैरेटर नाना पाटेकर आपको तारा सिंह और सकीना की कहानी सुनाते हैं. कैसे तारा को सकीना मिली, उसे सकीना से प्यार हुआ और फिर कैसे अशरफ अली अपनी बेटी को वापस पाकिस्तान ले गया था. छोटे चरणजीत उर्फ जीते को आप एक बार फिर अपनी मां की याद में रोते देखेंगे. 'गदर' के अंत में तारा अपनी सकीना और जीते को पाकिस्तान से वापस भारत ले आया था. 

इसके आगे की कहानी कुछ इस तरह है कि तारा सिंह एक ट्रक ड्राइवर है. वो आज भी सकीना से प्यार करता है और उसके लिए गाने गाता है. तारा का काम इंडियन आर्मी के पंजाब बेस के आसपास है, जहां कर्नल देवेंद्र रावत (गौरव चोपड़ा) काम करते हैं. तारा का बेटा चरणजीत उर्फ जीते बड़ा हो गया है और कॉलेज जाने लगा है. तारा चाहता है कि वो पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने. लेकिन जीते को धर्मेंद्र और राज कपूर की तरह मुंबई जाकर एक्टर बनना है.

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दूसरी तरफ पाकिस्तान में जनरल हामिद इकबाल, तारा सिंह से दुश्मनी मोल लेकर बैठा है. जब तारा सिंह, सकीना को अशरफ अली से छुड़वाकर लाया था तब उसने हामिद के 40 जवानों को अकेले मार गिराया था. तब से उसे हिंदू और हिंदुस्तानियों से नफरत हो गई थी. अब उसकी जिंदगी का मकसद है तारा सिंह को ढूंढना और उसका खात्मा करना. इस बीच वो अपने सामने आने वाले हिंदू और हिंदुस्तानी इंसान पर खूब जुल्म कर रहा है.

ये 1971 का समय है जब पाकिस्तान के साथ भारत की लड़ाई होने जा रही है. इस बीच किसी वजह से तारा का बेटा जीते पाकिस्तान पहुंच जाता है. अब तारा को जीते को लेने एक बार फिर पाकिस्तान जाना होगा, जहां हामिद इकबाल अपने मंसूबों को अंजाम देने के लिए उसकी राह तक रहा है. क्या तारा अपने बेटे को बचाकर वापस भारत ला पाएगा? यही फिल्म में देखने वाली बात है.

फर्स्ट हाफ है स्लो 

फिल्म की शुरुआत काफी ढीले नोट पर होती है. शुरू में आपको पिछली कहानी का रिकैप दिया जाता है. इसके बाद काफी ड्रामैटिक तरीके से नई कहानी पर्दे पर दिखाई जाती है. फर्स्ट हाफ में आपको कम ही मजा आएगा. फिल्म के पहले हिस्से को देखकर लगता है कि किसी को एक्टिंग आती ही नहीं है. डायरेक्टर भी निर्देशन भूल गए हैं. अमीषा पटेल और उत्कर्ष शर्मा की एक्टिंग में खास दम नहीं है. सनी देओल अपने कंधों पर इसे चला रहे हैं. इंटरवल तक आते-आते ये ढीली फिल्म थोड़ी बेहतर होने लगती है. और जैसे ही इंटरवल खत्म होता है और फिल्म का वक्त और उसके जज्बात बदल जाते हैं.

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एक्शन और डायलॉग्स भर देंगे जोश

सेकंड हाफ को देखकर लगता है कि 'हां, गदर देखने आए हैं'. तारा सिंह और जीते पाकिस्तानी फौज और हामिद इकबाल से जिस तरह खुद को बचाते हैं और जैसे उनका सामना करते हैं उसे देखते हुए आपका दिल खुश होता है. फिल्म का सेकंड हाफ एक्शन और एडवेंचर से भरा हुआ है. तारा सिंह ने पिछली फिल्म में हैंडपंप उखाड़ा था, लेकिन इस फिल्म ने वो नेक्स्ट लेवल पर चले गए हैं. एक से बढ़कर एक दमदार सीन सेकंड हाफ में हैं. उत्कर्ष शर्मा ने बहुत बढ़िया तरीके से सनी देओल का साथ दिया है. दोनों की केमिस्ट्री एक्शन सीक्वेंस में देखते ही बनती है. आप कह ही नहीं सकते कि दोनों असल जिंदगी में बाप-बेटे नहीं हैं. उत्कर्ष का रफ एंड टफ लुक भी काफी किलर लग रहा है. सेकंड हाफ में तारा सिंह ने फिल्म और जनता दोनों में मानों जान ही फूंक दी है.

परफॉरमेंस की बात करें तो सनी देओल को तारा सिंह के किरदार में देखना काफी रिफ्रेशिंग है. उनका वही दमदार अंदाज आपको बड़े पर्दे पर देखने को मिलेगा. उनकी डायलॉग डिलीवरी, अमीषा पटेल संग रोमांस और उत्कर्ष शर्मा के साथ मस्तीभरे, एक्शन और इमोशनल सीन्स काफी बढ़िया हैं. उत्कर्ष शर्मा का काम काफी बढ़िया है. फिल्म के दूसरे हिस्से में उन्होंने कमाल ही कर दिखाया है. अमीषा पटेल ने अपने रोल को ठीकठाक निभाया है. उनके अलावा सिमरत कौर रंधावा ने भी अच्छा काम किया है. फिल्म के विलेन मनीष वाधवा ने अपना काम अच्छे से किया है. कई जगह वो ओवर होते दिखे लेकिन वो उनके किरदार की डिमांड थी. 

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लगता है कि डायरेक्टर अनिल शर्मा पहले से जानते थे कि उन्हें फिल्म के किस हिस्से पर सबसे ज्यादा मेहनत करनी है. हालांकि 'गदर 2' के बेस्ट पार्ट तक पहुंचने में उन्होंने काफी समय लिया, लेकिन इसे देखकर मजा जरूर आएगा. फिल्म की एडिटिंग अच्छी है. लेकिन इसे थोड़ा छोटा जरूर किया जा सकता था. फर्स्ट हाफ स्लो है और उसमें ज्यादा एक्शन नहीं, तो वो देखने में और ज्यादा लंबा लगता है. एक चीज जो एकदम बढ़िया है वो है फिल्म का म्यूजिक. मूवी में आने वाले सभी गाने अच्छे हैं और सीन्स को सपोर्ट करते हैं. ये फिल्म एक्शन, रोमांस, ड्रामे और इमोशन्स से भरी हुई है, जिसे आप एक मौका देना चाहें तो बुरा नहीं होगा.

 

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