गैंग्स ऑफ वासेपुर, मसान, शकीला, फुकरे जैसी फिल्मों में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवा चुकीं ऋचा चड्ढा हाल ही में रिलीज हुई सीरीज द ग्रेट इंडियन मर्डर में अपनी दमदार पफर्मेंस से फैंस का दिल जीततीं नजर आईं. अब ऋचा चड्ढा, एक्ट्रेस के साथ-साथ बतौर प्रोड्यूसर अपनी नई पारी की शुरूआत करने जा रही हैं.
तिग्मांशु धूलिया संग काम करने का आपका सपना पूरा हुआ. किस तरह के डायरेक्टर साबित हुए?
-तिग्मांशु धूलिया जैसे डायरेक्टर के साथ काम करने के लिए हम एक्टर्स मरते हैं. इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि ये अपने काम में इतने माहिर होते हैं कि ये फिल्म के साथ-साथ एक्टर को भी निखारते हैं. मुझे सच में सीरीज के बाद अहसास हुआ है कि मैं बतौर परफॉर्मर बेहतर हुई हूं. जब मैं मुंबई आई थी, तो मेरी विश लिस्ट में तिग्मांशु जी का नाम टॉप पर था.
आप दोनों ही गैंग्स ऑफ वासेपुर जैसी कल्ट फिल्म का हिस्सा रहे हैं?
-गैंग्स ऑफ वासेपुर की शूटिंग के दौरान मुझे असिस्टेंट डायरेक्टर और कुछ लोगों ने डरा दिया था. कहा था कि तिग्मांशु बहुत संजीदा आदमी हैं, उनके सामने ज्यादा हंसना नहीं, जोर से बात नहीं करना. हालांकि अब पता चला कि वो सब बातें तो अफवाह थीं. तिग्मांशु से आप कितने भी सवाल कर लें, उन्हें परेशान कर दें, उन्हें दिक्कत नहीं होती है. वो एक्टर्स को स्पेस देते हैं कि वो अपने प्रोसेस को खुद से निखार पाए. जब भी एक्टर शूटिंग कर रहा होता है, तो उसके जेहन में यह बात चल रही होती है कि डायरेक्टर को उसका काम कैसा लग रहा है. यहीं से प्रेशर व इनसिक्यॉरिटी बढ़ने लगती है. तिग्मांशु एक्टर के अंदर वो डर पैदा ही नहीं होने देते हैं.
डिजिटल प्लैटफॉर्म को लेकर कई एक्टर्स व मेकर्स का कहना है कि अब जबरदस्ती चीजें ठूंसी जा रही हैं? नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने भी वेब सीरीज से दूरी बना ली है. आप क्या राय रखती हैं?
-नवाज के ओपिनियन पर मैं क्यों अपनी राय रखूं. वो उनका सोचना है. उन्हें यह बात समझनी चाहिए थी कि उनकी जो फिल्म आई थी सीरियस मैन, जिसके लिए उन्हें इतनी तारीफ मिली. वो इंडस्ट्री की एकमात्र ऐसी फिल्म थी, जिसने सोलो हीरो के कॉन्सेप्ट को इंट्रोड्यूज किया है. सीरियस मैन को इतनी क्रिएटिव फ्रीडम क्यों मिली, क्योंकि वो नेटफ्लिक्स पर थी. डायरेक्टर सुधीर मिश्रा को ओटीटी ने करेज दिया कि वो नवाज और एक नई लड़की को कास्ट करे. फिल्म में हीरो-हीरोइन से कोई एक्सपेक्टेशन न रखते हुए कहानी को आगे करे. आप देखें न, ओटीटी की वजह से कई लोगों को नया करियर मिला है. मैं तो ओटीटी के पोटेंशियल को समझती हूं. अब एक्टर्स के सिर पर बॉक्स ऑफिस का प्रेशर न होना, बहुत ही बड़ी बात है. ओटीटी में वो थीम एक्स्प्लोर किए जा रहे हैं, कास्ट, एलजीबीटी, पॉलिटिक्स इन सबको बड़े परदे पर दिखाने में बहुत वक्त लगेगा. मैं तो मानती हूं कि एक्टर्स को यह बात समझनी चाहिए कि कोविड में जब बॉलीवुड डूब रहा था, तो उसमें ये डिजिटल प्लैटफॉर्म ने इंडस्ट्री को बहुत संभाला है. मुझे नवाज का तो नहीं पता, मैं तो बहुत ही शुक्रगुजार हूं.
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आप मानती हैं कि ओटीटी ने स्टार पावर को भी कहीं न कहीं तोड़ा है?
-स्टार्स तो स्टार्स हैं ही, शाहरुख खान का एक ऐड आता है और पूरी दुनिया पागल हो जाती है. इसकी कोई न कोई वजह तो होगी ही न. स्टार्स सिस्टम की रिएलिटी है, जिसे नकारा नहीं जा सकता है. दीपिका पादुकोण ने जिस तरह अपने कंफर्ट जोन से हटकर एक स्टोरी की, मैं तो कहूंगी कि उन्हें क्रिटिसाइज करने के बजाय सराहना मिलनी चाहिए. दीपिका ने ऐसा कुछ किया कि उनसे एक अलग वर्ग की ऑडियंस जुड़ी है. स्टार पावर नहीं जाने वाला है, उनका पावर कम नहीं हुआ है बल्कि डावर्सिफाई जरूर हो गया है.
अब आप एक्ट्रेस से प्रोड्यूसर का सफर तय करने जा रही हैं. कितनी एक्साइटेड हैं?
-अभी तो अपने प्रोडक्शन हाउस को लेकर हम ग्राउंड वर्क ही कर रहे हैं. इंतजार कर रही हूं कि किस तरह से चीजें आगे बढ़ती हैं. क्योंकि प्रोडक्शन बहुत अलग काम है. हम तो अपनी पहली फिल्म में एक्टिंग भी नहीं कर रहे हैं. चीजें समझने में थोड़ा वक्त लगेगा. देखिए, मैं मानती हूं कि प्रोडक्शन एक पावर है. मेरा प्रोडक्शन में आने का मकसद ही यही है कि हम एक्टर्स व डायरेक्टर कितनी मेहनत करते हैं, या तो फिल्म बनती नहीं या फिर किसी कारणों से दर्शकों तक पहुंच नहीं पाती है. ऐसे में एक्टर्स को लगता है कि उन्हें क्रिएटिव कंट्रोल की जरूरत होती है.
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आपने हाल ही में एक वीडियो में सेल्फ लव की बात कही है, लेकिन इंडस्ट्री के इस सच को नहीं नकारा जा सकता है कि एक्ट्रेसेस पर गुड लुक, वेट को लेकर लगातार प्रेशर बना रहता है?
-हां, यह बात केवल इंडस्ट्री की नहीं है. यह प्रेशर तो हर जगह है. आप शादी की ऐड खोलकर पढ़ लें लड़का खुद की शक्ल देखता नहीं है लेकिन उसे लड़की पतली और गोरी चाहिए. ये रिएलिटी हमारे समाज की है, जिससे बॉलीवुड अछूता नहीं रहा है. मतलब हम फिल्में देख कर कितना भी कह लें कि लड़का तो मोटा व गंजा और एक्ट्रेस मॉडल टाइप्स की है, जोड़ी तो बड़ी बेमेल है फिर भी इसे हम तो पचा ही जाते हैं. मुझे नहीं लगता कि रजनीकांत के अलावा कोई मेल एक्टर भी इतना कंफर्टेबल है कि वो बिना लिपा-पोती के नजर आ जाए. उनपर भी लगातार प्रेशर होता है, बेचारों को स्टीरियॉइड्स लेना पड़ता है, बॉडी बनाने होते हैं. यहां बात जेंडर की है ही नहीं. इसलिए मैंने लिखा है कि कैमरे के सामने आना आसान नहीं है.
एक आउटसाइडर एक्टर पर हमेशा से परफॉर्मेंस का दवाब बना रहता है. अब लगता है कि उस प्रेशर से निकल चुकी हैं?
- मुझे नहीं पता है कि मैं उस प्रेशर से निकली हूं या नहीं लेकिन हां, कुछ साल पहले मैंने वो प्रेशर लेना बंद कर दिया था. मैं वो प्रेशर आखिर क्यों लूं, जब सबकुछ किसी और के हाथ में है. कई लोग बोलते हैं कि आप मोटे हो जाओगे, तो काम नहीं मिलेगा, फिल्म फ्लॉप होगी, तो निकाल दिए जाओगे. लेकिन मेरे साथ ऐसा कभी हुआ नहीं. मुझे हर साइज में हर तरह का रोल मिला है. मैं उन लोगों को बताना चाहूंगी कि जो शुरू-शुरू में आते हैं, अगर आप एक साइज के हैं, तो लोगों को आपको डायवर्सिटी वाले रोल्स में परखना मुश्किल हो जाता है. आप काम में अच्छे हैं, तो आपको काम मिलता रहेगा.
इंडस्ट्री से कोई कंपलेन नहीं है आपको?
-नहीं, बिलकुल भी नहीं है. क्यों होगी कंपलेन, मैं भी तो इंडस्ट्री का हिस्सा ही हूं न. दरअसल यह देखा है कि लोग अगर एक दूसरे को ब्लेम करते रहते हैं. हालांकि मैं इसे एक अच्छा अप्रोच नहीं मानती हूं. इंडस्ट्री को दोष देने से कुछ अचीव नहीं होगा. मैं इतनी पावरलेस नहीं हूं कि बार-बार किसी और को ब्लेम करती रहूं.