मनोज बाजपेयी के लिए ये साल शानदार रहा है. इस साल वो तीन कमाल के प्रोजेक्ट्स में नजर आए- एक ही बंदा काफी है, गुलमोहर और जोरम. बिल्कुल अलग-अलग किस्म की इन फिल्मों में बिल्कुल अलहदा किरदारों को निभा ले जाना, मनोज जैसे सधे हुए एक्टर के बस की ही बात है. लेकिन हर किरदार के साथ वो इतना न्याय कर कैसे लेते हैं? इन किरदारों के साथ वो अकेले में क्या बात करते हैं?
एजेंडा आजतक 2023 क मंच पर, अपने नए शो 'किलर सूप' की टीम के साथ पहुंचे मनोज बाजपेयी ने इस सवाल का बहुत मजेदार जवाब दिया. उन्होंने कहा, 'मैं कहता हूं प्लीज मेरी इज्जत रख लेना यार तू.'
दोस्तों ने कैसे बना दिया मनोज को एक्टर
किलर सूप में मनोज की कोस्टार कोंकणा सेनशर्मा और डायरेक्टर अभिषेक चौबे भी एजेंडा आजतक के मंच पर मौजूद थे. इस मजेदार सेशन में मनोज ने बताया कि कैसे उनके दोस्तों ने उन्हें एक्टर बनने में मदद की.
आज नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से निकले सबसे नायाब हीरों में गिने जाने वाले मनोज ने बताया कि एन एस डी का समय उनके लिए 'भयावह' था. अपनी कहानी बताते हुए उन्होंने कहा कि, 'मेरे पास रिजेक्शन का स्कोप ही नहीं था. मैं थिएटर करता था और नसीरुद्दीन शाह जैसे एक्टर्स के इंटरव्यू में सुना कि उन्होंने एक्टिंग में डिप्लोमा किया है.'
मनोज ने बताया कि पहले तो उन्हें थिएटर में डिप्लोमा मिलने की बात नहीं समझ आई. उन्हें लगा कि वो जो स्टेज पर करते हैं एक्टिंग तो यही है, इसमें डिप्लोमा कैसे मिल सकता है! लेकिन उन्हें ये करना था इसलिए दिल्ली चले आए.
हालांकि, मनोज ने दिल्ली आने की वजह अपने घर पर नहीं बताई थी. उन्होंने बताया, 'मैंने मन बना लिया कि मां बाप को नहीं बताऊंगा. बोलूँगा कि दिल्ली यूनिवर्सिटी से आर्ट्स पढने जा रहा हूं, फिर यू.पी.एस.सी की तैयारी करूंगा, कलेक्टर बनूंगा.' दिल्ली आने के दूसरे दिन दिन से ही मनोज स्ट्रीट थिएटर करने लगे. लेकिन 400 से ज्यादा स्ट्रीट प्ले करने वाले मनोज को एनएसडी ने टेस्ट में एंट्रेंस रिजेक्ट कर दिया.
'प्लान बी नहीं होने की वजह से ब्लैक आउट हो गया'
मनोज ने बताया कि इसके बाद उन्हें समझ ही नहीं आया कि क्या करना है. उन्होंने बताया, 'प्लान बी नहीं होने की वजह से ब्लैक आउट हो गया. मुझे पता था कि घर पर नहीं बता सकता क्योंकि पिता कहते कि पैसे नहीं भेज पाऊंगा. क्योंकि 5 बच्चे और हैं, उन्हें भी पढ़ाना लिखाना है.' लेकिन तब मनोज के दोस्तों ने उन्हें संभाला और उनके लिए एक नया रास्ता तैयार किया.
मनोज बताते हैं, 'दोस्त डरते थे कि ये खुद को कुछ न कर ले. तो मंडी हाउस के पास ही एक थिएटर ग्रुप 365 दिन का प्रोग्राम चलाता था. 2500 रुपये फीस थी उसकी, उस जमाने में ये बहुत बड़ी बात थी. सारे दोस्तों ने कंट्रीब्यूट करके फीस जुटाई, मुझे एनरोल करवाया. और पहले दिन से ही मुझे दिखने लगा कि मैं बेहतर हो रहा हूं.'
मनोज ने कहा कि मेंटल हेल्थ के समय में जो भी ट्रॉमा में होता है वो खुद की नजर में छोटा हो चुका होता है. वो कभी नहीं आकर कहेगा कि मैं परेशान हूं मेरी मदद कीजिए. इसलिए आसपास ऐसे लोग होने जरूरी हैं जो समझें और मदद के लिए तैयार रहें.
इस 365 दिन के कोर्स में मनोज सिर्फ एक दिन मिस कर गए और इसकी वजह ये थी कि वो दिल्ली में, लक्ष्मी मगर से पैदल मंडी हाउस जाया करते थे. एक दिन बहुत बारिश हो गई तो वो आधे रास्ते ही पहुंच सके.
'फोर्टी-फोरवा' की लव स्टोरी
इस खास बातचीत में ये भी सामने आया कि मनोज को स्कूल के समय में 'फोर्टी फोरवा' भी कहा जाता था. इसकी वजह उनका एक क्रश था. स्कूल में एक लड़की पर उनका दिल आ गया था जिसका रोल नंबर 44 यानी अंग्रेजी में फोर्टी-फोर था. इसलिए उन्हें क्लास के बच्चे 'फोर्टी फोरवा' बुलाने लगे.