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Guru Dutt Anniversary: जब बच्चों और पति को छोड़कर घर से भागना चाहती थीं गुरु दत्त की मां, गांधी जी के खत ने बदली जिंदगी

Guru Dutt की आज बर्थ एनिवर्सरी है. सिनेमा जगत में फिल्मों को एक नया आयाम देने वाले गुरु दत्त की निजी जिंदगी बहुत मुश्किलों से भरी थी. खासकर उनका बचपन ऐसा था, जहां वो घर की एक छत पर रहने के बावजूद अपने माता-पिता के झगड़ों से काफी परेशान थे.

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गुरु दत्त
गुरु दत्त

सिनेमा की बात हो और गुरु दत्त का जिक्र न हो... ये मुमकिन नहीं. गुरु दत्त का नाम हिंदी सिनेमा के उन महान निर्देशकों में शामिल है, जिन्होंने कहानियों के जरिए अपने क्रांतिकारी विचारों को लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की है.... हमेशा से हिंदी सिनेमा को दो कमर्शल और पैरलल भागों में बांटा जाता रहा है.... गुरु एक ऐसा नाम हैं, जिन्होंने इन दोनों ही जॉनर को बखूबी बैलेंस किया था.... एक तरफ उनके नाम क्लासिक कल्ट  प्यासा, कागज के फूल जैसी फिल्में हैं, तो वहीं दूसरी ओर उन्होंने बाजी, आर-पार, मिस्टर ऐंड मिसेज 55, सीआईडी जैसी फिल्में बनाकर कमर्शल सक्सेस हासिल की है. 

हालांकि, आज हम आपको गुरु दत्त के जन्मदिन के मौके पर उनकी प्रोफेशनल नहीं बल्कि निजी जिंदगी पर कुछ दिलचस्प किस्से सुनाएंगे. एक मिडिल क्लास फैमिली में जन्में गुरु दत्त अपने चार भाई बहनों में सबसे बड़े थे. यासिर उस्मान की किताब गुरु दत्त एक अधूरी दास्तां में एक किस्से के अनुसार, गुरु स्वाभाव से अपने पिता की तरह ही कम बोलने वाले थे. हालांकि पिता का खौफ उनपर इतना था कि उन्होंने कभी पिता से बात नहीं की थी. वो मां से जरूरी भर की बातें किया करते थे. 

घर छोड़कर भागना चाहती थीं मां 

किताब के एक किस्से में गुरु की बहन ललिता लाजमी बताती हैं, एक वक्त गुरू की मां (वसंती) अपने पति की बेरुखी से इतनी बैचेन हो गई थीं कि वो घर छोड़कर भाग जाना चाहती थीं. 1927 में महात्मा गांधी ने जब बैंगलोर दौरा किया था, तब वसंती गांधीजी की प्रार्थना सभा में भाग लिया करती थीं. वहां उन्हें इतनी शांति मिलती थी कि उन्होंने माहात्मा गांधी को खत लिखकर अपनी जिंदगी के बारे में बताया और उनसे उन्हें साबरमती आश्रम में शामिल करने को कहा. इस खत पर महात्मा गांधी का जवाब भी आया था और वो पत्र कुछ यूं था... 

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गांधी जी का आया था जवाब

प्रिय वंसती देवी, आपका पत्र मिला. यह भगवान की इच्छा थी. आप जहां हैं, आपको वहीं रहना चाहिए. मां और पत्नी का कर्तव्य सबसे अहम होता है. अपने बच्चों का पालन पोषण अच्छी तरह से करो, ताकि उनके पास जीवन का सामना करने का साहस और चरित्र हो. अपनी भारत माता की सेवा करो. उम्मीद कभी नहीं छोड़ना.. 
सदैव तुम्हारा मोहनदास करमचंद गांधी 

बेटे से एक साल पहले ही मैट्रिक का एग्जाम किया था क्लियर 

गुरु की मां पढ़ना चाहती थीं और अलग-अलग भाषाएं सीखना चाहती थीं. परिवार को संभालने के साथ-साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी थी. कमाल की बात यह है कि जिस साल गुरु दत्त ने अपने मैट्रिकुलेशन का एग्जाम क्लियर किया था. ठीक एक साल पहले ही उनकी मां भी दसवीं का एग्जाम देकर पास हुई थीं. 


 

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