पान नलिन की फिल्म द छेलो शो सिनेमाघरों में रिलीज को तैयार है. इस साल ऑस्कर के लिए भारत की ओर से जाने वाली ऑफिशियल फिल्म होने की वजह से यह और खास बन जाती है. तमाम इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स में ट्रैवल कर चुकी इस फिल्म और इसके एक्टर भाविन को दर्शकों का जबरदस्त प्यार मिल रहा है.
कैसे हो पाई थी कास्टिंग?
छोटी सी उम्र में इतनी संजीदगी से एक्टिंग करने वाले भाविन की कास्टिंग डायरेक्टर पान नलिन के लिए आसान नहीं रही. आजतक डॉट इन से खास बातचीत में पान बताते हैं कि किस तरह उन्हें कास्टिंग के लिए तीन हजार बच्चों के ऑडिशन लेने पड़े और क्या-क्या पापड़ बेलने पड़े थे.
पान नलिन अपने हीरो भाविन की कास्टिंग पर कहते हैं, इस बच्चे ने मुझे और मेरी फिल्म को बचा लिया. मैं एक्टर्स दर एक्टर्स तलाश करता रहा. कईयों की परफॉर्मेंस देखकर मैं डिप्रेस हो गया था कि कोई मिल ही नहीं रहा है. मैंने मुंबई से लेकर गुजरात में हर एक्टर का ऑडिशन लिया लेकिन कहीं न कहीं वो मुझे बनावटी लगता था. बच्चों पर पेरेंट्स का प्रेशर या समय से पहले समझदारी मेरे ऑडिशन के आड़े आ जाती थी.
अपने हीरो भाविन के लिए क्या बोले डायरेक्टर?
ये बच्चा पूरी तरह से रॉ है. इसकी बॉडी लैंग्वेज, आवाज व आंखें बहुत ही नैचुरल लगती हैं. मेरे लिए इस फिल्म में आंखों के एक्स्प्रेशन काफी मायने रखते हैं क्योंकि कई क्लोजअप शॉट्स होने थे. लगभग 60 बच्चों का वर्कशॉप हुआ और उनकी हर हरकतों पर नजर थी. तीन हजार ऑडिशन के बाद ये 60 बच्चे चुने गए थे. जब मुझे ये मिला, तो तसल्ली हुई कि चलो लीड की परफेक्ट कास्टिंग हो गई है. क्योंकि इसके मिलने से पहले मेरे पास सेकेंड चॉइस तक नहीं था, जो काफी डिप्रेसिंग था.
हमारा पहला फोकस था कि हम ऐसे गांव में ऑडिशन करेंगे, जहां बच्चों के बीच सिनेमा का एक्स्पोजर कम हो. हमारी कास्टिंग को काफी कुछ सहना पड़ा था. एक के साथ तो मॉब लिंचिंग तक हो गई. गांव वालों को लगा कि बच्चें चुराने आए हैं. सबने इकट्ठे होकर उसकी पिटाई कर डाली. हालांकि वहां से प्रिंसिपल गुजर रहे थे, तो उन्होंने गांव वालों को समझाया कि नहीं, ये लोग मुंबई से आए हैं, कास्टिंग कर रहे हैं आप इन्हें छोड़ दो. फिर जाकर वो कहीं बचा.
वहीं दूसरी ओर मेरे लिए भाविन की फैमिली को मनाना बहुत मुश्किल रहा. भाविन जिस कम्यूनिटी से आता है, वहां के लोगों को पैसे का प्राइड नहीं है लेकिन वे अपनी संस्कृति को लेकर बहुत गौरवान्वित होते हैं. ऐसे में उनको लगता था कि कहीं उनका बच्चा कुछ गलत न सीख ले. पैरेंट्स के साथ-साथ स्कूल को भी कन्विंन्स करना पड़ा. चूंकि मैं भी उसी कम्यूनिटी से आता हूं, तो देर सवेर वो मान गए.